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गुरुवायुर एकादशी व्रत कैसे करें? सही पूजा सामग्री, मंत्र और पारण का समय, पाएं पूर्ण लाभ (Guruvayur Ekadashi Vrat Complete Guide)

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सनातन धर्म में एकादशी का व्रत भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को समर्पित है और इसका विशेष महत्व है। हर एकादशी अपने आप में पवित्र और फलदायी होती है, लेकिन केरल के प्रसिद्ध गुरुवायुर मंदिर (Guruvayur Temple) में मनाई जाने वाली गुरुवायुर एकादशी का महत्व असाधारण है। इसे दक्षिण भारत का “द्वारका” भी कहा जाता है। यह एकादशी आमतौर पर मलयालम कैलेंडर के अनुसार वृश्चिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है, जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार नवंबर या दिसंबर महीने में पड़ती है। यह एकादशी 41 दिनों तक चलने वाले प्रसिद्ध “मंडल पूजा उत्सव” के दौरान आती है, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।

इस विशेष व्रत को विधि-विधान से करने पर भक्तों को भगवान श्री कृष्ण (Lord Krishna) और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जीवन के कष्ट दूर होते हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं गुरुवायुर एकादशी व्रत की संपूर्ण और सही विधि, आवश्यक पूजा सामग्री, प्रभावशाली मंत्र और पारण का सटीक समय।

गुरुवायुर एकादशी 2025 – तिथि और पारण समय (Date & Parana Time)

साल 2025 में गुरुवायुर एकादशी व्रत और पारण का समय (नई दिल्ली के अनुसार) इस प्रकार है:

  • एकादशी तिथि प्रारंभ – नवम्बर 30, 2025 को 09:29 PM बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त – दिसम्बर 01, 2025 को 07:01 PM बजे
  • गुरुवायुर एकादशी व्रत – 01 दिसम्बर 2025 (सोमवार)
  • पारण (व्रत तोड़ने) का समय – 2 दिसम्बर को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 06:57 AM से 09:03 AM
  • द्वादशी समाप्ति क्षण – 2 दिसम्बर को, शाम 03:57 बजे
  • ध्यान दें – एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अनिवार्य है। साथ ही, हरि वासर के दौरान पारण नहीं करना चाहिए, जो कि द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती है।

गुरुवायुर एकादशी व्रत की सही विधि (Puja Vidhi)

गुरुवायुर एकादशी का व्रत दशमी तिथि (व्रत से एक दिन पहले) की शाम से शुरू होकर द्वादशी तिथि (व्रत के अगले दिन) की सुबह पारण के बाद समाप्त होता है।

दशमी के दिन के नियम (On Dashami Tithi)

  • दशमी के दिन सात्विक भोजन (Sattvic Food) ही करें। शाम को सूर्यास्त से पहले भोजन कर लें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। रात्रि में चावल और मसूर की दाल का सेवन न करें।

एकादशी के दिन की तैयारी (Preparation on Ekadashi)

  • सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं और साफ, स्वच्छ वस्त्र (Clean Clothes) धारण करें। पूजा स्थल पर भगवान विष्णु या श्री कृष्ण की मूर्ति/चित्र स्थापित करें। व्रत का संकल्प (Vrat Sankalp) लें कि आप पूरी निष्ठा के साथ यह व्रत करेंगे।

पूजा विधि (Worship Method)

  • भगवान की मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण) से स्नान कराएं। इसके बाद चंदन, रोली (कुमकुम) और पीले पुष्पों (Yellow Flowers) से उनका श्रृंगार करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं और धूप, अगरबत्ती लगाएं। भगवान को फल, मिठाई और विशेष रूप से तुलसी दल (Tulsi Leaves) अर्पित करें। तुलसी दल के बिना एकादशी का भोग अधूरा माना जाता है। चावल का उपयोग न करें। संभव हो तो पूरे दिन उपवास रखें। रात्रि में जागरण (Night Vigil) करें और भगवान विष्णु/श्री कृष्ण के भजनों का कीर्तन करें।

आवश्यक पूजा सामग्री (Essential Puja Samagri)

गुरुवायुर एकादशी की पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री होनी चाहिए:

  • भगवान विष्णु/श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र
  • पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल)
  • चंदन और रोली (कुमकुम)
  • पीले या मौसमी फूल
  • तुलसी दल
  • धूप, दीप (शुद्ध घी का)
  • फल और मिठाई (नैवेद्य)
  • अक्षत (चावल/अखंडित चावल) – पूजा में उपयोग किया जा सकता है, लेकिन खाने में नहीं।
  • पीले वस्त्र (भगवान के लिए और स्वयं पहनने के लिए)

गुरुवायुर एकादशी के प्रभावशाली मंत्र (Powerful Mantras)

व्रत के दौरान इन मंत्रों का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है। आप तुलसी की माला से कम से कम 108 बार इनका जाप करें:

  • विष्णु मूल मंत्र (Moola Mantra of Vishnu) – ॐनमोभगवतेवासुदेवाय”
  • श्री कृष्ण मंत्र (Lord Krishna Mantra) – ॐश्रीकृष्णायगोविंदायहरेमुरारे।हेनाथनारायणवासुदेवाय।।”
  • विष्णु सहस्रनाम (Vishnu Sahasranama) – यदि संभव हो तो इसका पाठ करें या श्रवण करें।

व्रत के नियम और पारण (Rules and Parana)

  • सामर्थ्य के अनुसार निर्जल (बिना जल के), फलाहार (केवल फल), या केवल जल ग्रहण करके व्रत करें। यदि पूर्ण उपवास संभव न हो तो एक समय का सात्विक भोजन (जैसे आलू, शकरकंद) कर सकते हैं, लेकिन अन्न का सेवन वर्जित है।
  • एकादशी के दिन चावल, मसूर की दाल, गाजर, शलजम, गोभी का सेवन न करें। क्रोध, झूठ और किसी की निंदा न करें।
  • व्रत का पारण द्वादशी तिथि को, सूर्योदय के बाद और हरि वासर समाप्त होने के बाद करना चाहिए। पारण के समय सबसे पहले किसी ब्राह्मण या गरीब को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
  • पारण हमेशा किसी अन्न या फल को खाकर किया जाता है। आमतौर पर तुलसी दल मिला हुआ जल ग्रहण करके व्रत तोड़ा जाता है।

गुरुवायुर एकादशी का महत्व और लाभ (Significance and Benefits)

गुरुवायुर एकादशी को मोक्षदा एकादशी के समान फल देने वाला माना जाता है।

  • मोक्ष की प्राप्ति – मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति (Redemption from Sins) मिलती है और अंत में मोक्ष (Salvation) प्राप्त होता है।
  • धन और समृद्धि – भगवान श्री कृष्ण की कृपा से जीवन में धन, समृद्धि (Wealth and Prosperity) और खुशहाली आती है।
  • मनोकामना पूर्ति – यह व्रत सभी मनोकामनाओं (Desires) को पूर्ण करने वाला माना जाता है।
  • दक्षिण का द्वारका – गुरुवायुर मंदिर को दक्षिण का द्वारका कहा जाता है, इसलिए इस दिन यहां व्रत रखने और पूजा करने का फल सीधे भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के समान होता है।

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