हनुमान तांडव स्तोत्र भगवान हनुमान की महिमा का वर्णन करने वाला एक प्रभावशाली स्तोत्र है, जो उनके अद्वितीय पराक्रम, भक्ति और गुणों का गुणगान करता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भक्तों के सभी प्रकार के संकट, रोग और शोक दूर होते हैं, और उन्हें साहस, शक्ति तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी माना जाता है जो जीवन में आने वाली बाधाओं और चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
हनुमान तांडव स्तोत्र में भगवान हनुमान के विभिन्न रूपों और लीलाओं का वर्णन किया गया है, जैसे कि उनका सिंदूरवर्ण, लोहिताम्बर भूषण, और शोणापुच्छ। यह स्तोत्र भगवान राम और लक्ष्मण के प्रति उनकी अटूट भक्ति, समुद्र पार करने की उनकी अद्वितीय क्षमता, और राक्षसों के संहार में उनकी वीरता को भी दर्शाता है। इस स्तोत्र के माध्यम से, भक्त भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उनके जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं और वे सफलता की ओर अग्रसर होते हैं।
हनुमान तांडव स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार के दिन शुभ माना जाता है। इसका पाठ करने से मनोबल में वृद्धि होती है, नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है, और जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है। भक्तों को यह स्तोत्र श्रद्धा और समर्पण के साथ पढ़ना चाहिए ताकि वे भगवान हनुमान की कृपा से अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकें।
हनुमान तांडव स्तोत्र के पाठ के साथ-साथ, भक्त इसके अर्थ और महत्व को समझकर अपने जीवन में इसे आत्मसात कर सकते हैं, जिससे उन्हें आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति की प्राप्ति होगी।
हनुमान तांडव स्त्रोत (Hanuman Tandav Stotram)
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं,
दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम् ।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं,
समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम् ॥ १॥
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं
वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ
आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना,
भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ,
विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम् ॥ ३॥
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः,
कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम् ।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः
कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः ॥ ४॥
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं,
फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत् ।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्,
सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम् ॥ ५॥
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं
गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम् ।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं
विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥ ६॥
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं
दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम् ।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम्
सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥ ७॥
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता
महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां
निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥ ८॥
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः
कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न शत्रुतो
भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥ ९॥
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे ।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥
॥ॐ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्॥
|| हनुमान जी की आरती ||
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे।
रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई।
सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठाए।
लंका जारि सिया सुधि लाए॥
लंका सो कोट समुद्र-सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे।
सियारामजी के काज सवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।
आनि संजीवन प्राण उबारे॥
पैठि पाताल तोरि जम-कारे।
अहिरावण की भुजा उखारे॥
बाएं भुजा असुरदल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारें।
जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरती गावे।
बसि बैकुण्ठ परम पद पावे॥