|| हेरम्बा संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा PDF ||
हेरम्बा संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश को समर्पित है, विशेष रूप से उनके हेरम्ब स्वरूप को। हेरम्ब गणेश के 32 स्वरूपों में से एक हैं, जिनके पांच मुख और दस हाथ होते हैं। इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
हेरम्बा संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। यहाँ एक प्रचलित कथा दी गई है:
एक समय की बात है, सतयुग में राजा पृथु नाम के एक बहुत ही धर्मात्मा राजा थे, जिन्होंने सौ यज्ञ किए थे। उनके राज्य में दयादेव नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वेदों का ज्ञाता होने के बावजूद, वह निःसंतान था, जिससे वह बहुत दुखी रहता था। शास्त्रों में निःसंतान जीवन को व्यर्थ माना गया है और यह भी कहा गया है कि ऐसे व्यक्ति द्वारा अपने पितरों को दिया गया जल भी गर्म जल के रूप में प्राप्त होता है।
पुत्र प्राप्ति की कामना से राजा पृथु ने कई दान, यज्ञ और पुण्य कार्य किए, परंतु उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई। एक दिन महर्षि लोमश राजा के पास आए। राजा ने उनका सत्कार किया और अपनी व्यथा सुनाई। महर्षि लोमश ने राजा से कहा कि हे राजन, आप संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत करें। यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित है और इसे करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
महर्षि लोमश ने राजा को व्रत की विधि बताई। राजा पृथु ने महर्षि के बताए अनुसार, पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से गणेश चतुर्थी का व्रत किया। उनकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए। भगवान गणेश ने राजा से उनकी इच्छा पूछी। राजा ने पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगा। भगवान गणेश ने राजा को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गए।
इस व्रत के प्रभाव से राजा पृथथु को एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिससे उनके राज्य में खुशियाँ लौट आईं। इसके बाद राजा पृथु ने पूरे राज्य में संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने का संदेश फैलाया, जिससे सभी लोग इस व्रत को करने लगे और अपने दुखों से मुक्ति पाने लगे।
एक और प्रचलित कथा
एक समय भगवान विष्णु का विवाह माता लक्ष्मी के साथ तय हुआ। विवाह की तैयारियाँ शुरू हुईं और सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, लेकिन गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया गया। इसका कारण जो भी रहा हो, जब बारात निकलने का समय आया और सभी देवता अपने-अपने वाहनों पर बैठ गए, तभी नारद जी वहाँ आए और उन्होंने देवताओं से पूछा कि आप सभी कहाँ जा रहे हैं और गणेश जी कहाँ हैं?
देवताओं ने बताया कि वे विष्णु भगवान के विवाह में जा रहे हैं, लेकिन गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया गया। नारद जी ने कहा कि बिना गणेश जी की पूजा और उन्हें निमंत्रण दिए कोई भी शुभ कार्य सफल नहीं होता। उन्होंने देवताओं को सलाह दी कि गणेश जी को अपनी मूषक सेना आगे भेजने के लिए कहें, ताकि वे रास्ता खोद दें और रथों के पहिए धरती में धंस जाएँ।
देवताओं ने ऐसा ही किया और गणेश जी ने अपनी मूषक सेना को आगे भेज दिया। जब बारात वहाँ से गुजरी तो रथों के पहिए धरती में धंस गए और बारात आगे नहीं बढ़ पाई। सभी देवता चिंतित हो गए और इस समस्या का समाधान सोचने लगे।
तभी एक खाती (लकड़ी का काम करने वाला) वहाँ आया। उसने रथों के पहिए देखे और समझ गया कि यह किसी दैवीय बाधा के कारण हुआ है। उसने देवताओं से पूछा कि क्या उन्होंने सर्वप्रथम गणेश जी को प्रसन्न किया है और उनकी पूजा की है? देवताओं ने अपनी भूल स्वीकार की कि उन्होंने गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया था।
खाती ने कहा कि आप सर्वप्रथम ‘श्री गणेशाय नम:’ कहकर गणेश जी की वंदना करें और उन्हें प्रसन्न करें। देवताओं ने ऐसा ही किया। खाती ने भी मन ही मन गणेश जी की वंदना की और देखते ही देखते सभी पहियों को ठीक कर दिया।
इस घटना के बाद से यह मान्यता प्रचलित हो गई कि किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा अवश्य करनी चाहिए, अन्यथा कार्य में बाधाएँ आती हैं।
हेरम्बा संकष्टी चतुर्थी के दिन भक्त सुबह उठकर स्नान करते हैं और साफ वस्त्र धारण करते हैं। इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित कर उनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखा जाता है, जिसका समापन चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद किया जाता है।
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