ज्येष्ठ माह की अमावस्या का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह तिथि पितरों की आत्मा की शांति और वंशजों की सुख-समृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन स्नान, दान, तर्पण और पिंडदान का विशेष विधान है। आइए जानते हैं 2025 में ज्येष्ठ अमावस्या कब है, इस दिन क्या करें और क्या न करें, और पिंडदान व तर्पण की सही विधि क्या है।
ज्येष्ठ अमावस्या 2025 कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, अमावस्या उस तिथि को कहा जाता है जब चंद्रमा आकाश में अदृश्य होता है। यह तिथि प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन आती है। ज्येष्ठ अमावस्या, वर्ष की सबसे गरम अवधि में आती है और इसका विशेष महत्व पितरों की शांति, पिंडदान और तर्पण में होता है।
ज्येष्ठ अमावस्या 2025 की तिथि और समय
- तिथि प्रारंभ: 26 मई 2025, सोमवार को प्रातः 10:45 बजे
- तिथि समाप्त: 27 मई 2025, मंगलवार को दोपहर 09:20 बजे तक
- अमावस्या व्रत और तर्पण हेतु श्रेष्ठ समय: 26 मई को दोपहर से सूर्यास्त तक
ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व
ज्येष्ठ अमावस्या को ‘वट सावित्री अमावस्या’ या ‘शनि जयंती’ के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन भगवान शनिदेव का जन्म हुआ था, इसलिए उनकी पूजा का भी विशेष महत्व है। वहीं, विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं।
यह दिन पितरों को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पितृलोक से पितर अपने वंशजों को देखने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। इसलिए, उन्हें संतुष्ट करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तर्पण और पिंडदान का विशेष महत्व है।
ज्येष्ठ अमावस्या पर क्या करें?
- ज्येष्ठ अमावस्या के दिन किसी पवित्र नदी या कुंड में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यदि यह संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। स्नान के पश्चात सूर्य देव को जल अर्पित करें।
- अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करें। तर्पण में काले तिल, जौ, चावल और जल का प्रयोग किया जाता है।
- यदि संभव हो तो किसी योग्य ब्राह्मण की सहायता से पिंडदान अवश्य करें। यह पितरों को मोक्ष प्रदान करने में सहायक माना जाता है।
- इस दिन अन्न, वस्त्र, जूते-चप्पल, छाता, तिल आदि का दान करना चाहिए। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है और पितर प्रसन्न होते हैं।
- ब्राह्मणों को भोजन कराना और उन्हें दक्षिणा देना शुभ फलदायी होता है।
- शनि देव की कृपा और पितरों की शांति के लिए पीपल या वट वृक्ष की पूजा करें।
- शाम के समय किसी मंदिर या नदी किनारे दीपदान करें।
- शनिदेव की कृपा पाने के लिए शनि चालीसा का पाठ करें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
ज्येष्ठ अमावस्या पर क्या न करें?
- इस दिन तामसिक भोजन जैसे मांस-मदिरा का सेवन न करें।
- कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू करने से बचें।
- इस दिन बाल और नाखून काटना वर्जित माना जाता है।
- किसी से भी झगड़ा या विवाद न करें। शांति और सौहार्द बनाए रखें।
- किसी भी व्यक्ति का निरादर न करें, विशेषकर बड़ों का। झूठ बोलने से बचें।
- धारदार चीजों जैसे कैंची, चाकू आदि का इस्तेमाल सावधानी से करें।
पिंडदान और तर्पण की सही विधि
तर्पण विधि
- स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- एक तांबे के पात्र में शुद्ध जल लें। इसमें काले तिल, जौ, सफेद फूल और थोड़ा सा कच्चा दूध मिलाएं।
- कुश (पवित्र घास) को अपने दाहिने हाथ की अनामिका उंगली में धारण करें।
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें या खड़े हों। अपने पितरों का स्मरण करते हुए ‘ॐ पितृभ्यः नमः’ मंत्र का जाप करें।
- अब अंजुली में जल लेकर धीरे-धीरे धरती पर छोड़ें। यह क्रिया कम से कम 7 बार दोहराएं।
- प्रत्येक बार जल छोड़ते समय अपने पितरों का नाम लें और कहें, “अमुक गोत्रस्य अमुक शर्मणः (पितर का नाम) प्रेतस्य/प्रेतायाः इदं तिलोदकं तेभ्यः स्वधा।”
- तर्पण के बाद पितरों से अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करें और उनका आशीर्वाद मांगें।
पिंडदान विधि
पिंडदान की विधि थोड़ी जटिल होती है और इसे किसी योग्य ब्राह्मण या पुरोहित की देखरेख में करना अधिक उचित रहता है। फिर भी, एक सामान्य जानकारी के लिए:
- स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पिंड बनाने के लिए चावल का आटा, दूध, घी और काले तिल मिलाएं।
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठें। अपने पितरों का ध्यान करें और उन्हें आमंत्रित करें।
- पितरों के नाम से पिंड बनाएं और उन्हें कुश पर रखें।
- पिंडों पर जल, फूल, अक्षत, धूप, दीप आदि अर्पित करें।
- पितरों के निमित्त तर्पण करें।
- ब्राह्मण को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा दें।
- पिंडों को जल में प्रवाहित कर दें या गाय को खिला दें।
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