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Krishnapingal Sankashti Chaturthi 2025 – गणपति भक्तों के लिए खास दिन, जानिए कृष्णापिंगला संकष्टी चतुर्थी का आध्यात्मिक महत्व, क्यों है यह चतुर्थी विशेष और चमत्कारी?

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हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय देवता माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणपति की पूजा करने का विधान है। गणपति के विभिन्न स्वरूपों और अवतारों में से एक कृष्णापिंगला संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है। यह चतुर्थी भगवान गणेश के उस स्वरूप को समर्पित है, जो शांति और ज्ञान के प्रतीक हैं। वर्ष 2025 में आने वाली कृष्णापिंगला संकष्टी चतुर्थी भक्तों के लिए एक अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण दिन है। इस लेख में हम इस विशेष चतुर्थी के आध्यात्मिक महत्व, इसकी विशेषताओं और चमत्कारी प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

कृष्णापिंगला संकष्टी चतुर्थी क्या है?

‘संकष्टी’ शब्द का अर्थ है ‘कष्टों को हरने वाली’, और ‘चतुर्थी’ का अर्थ है ‘चौथा दिन’। इस प्रकार संकष्टी चतुर्थी का अर्थ है वह चतुर्थी जो सभी कष्टों और बाधाओं को दूर करती है। प्रत्येक माह में दो चतुर्थी आती हैं – एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। कृष्णापिंगला संकष्टी चतुर्थी विशेष रूप से ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पड़ती है। ‘कृष्णापिंगला’ नाम भगवान गणेश के उस स्वरूप को संदर्भित करता है, जिसमें वे श्याम वर्ण (कृष्ण) और कुछ पीलापन (पिंगला) लिए हुए होते हैं, जो उनके शांत और ज्ञानी स्वरूप को दर्शाता है।

कृष्णापिंगला संकष्टी चतुर्थी 2025 का महत्व

वर्ष 2025 में पड़ने वाली कृष्णापिंगला संकष्टी चतुर्थी कई कारणों से विशेष महत्व रखती है:

  • भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, यानी वे सभी बाधाओं को दूर करने वाले हैं। इस दिन उनकी आराधना करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली हर प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं, चाहे वे आर्थिक हों, शारीरिक हों या मानसिक।
  • कृष्णापिंगला संकष्टी चतुर्थी ज्ञान और बुद्धि के देवता गणेश को समर्पित है। इस दिन व्रत और पूजा करने से छात्रों को विद्या में सफलता मिलती है, और सामान्य व्यक्तियों को सही निर्णय लेने की क्षमता तथा बुद्धि का विकास होता है।
  • यह चतुर्थी भगवान गणेश के शांत और स्थिर स्वरूप को दर्शाती है। इस दिन उपासना करने से मन में शांति आती है, तनाव दूर होता है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
  • ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवान गणेश को बुध ग्रह का अधिष्ठाता देवता माना जाता है। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से बुध ग्रह से संबंधित दोषों का निवारण होता है, जिससे वाणी, बुद्धि और व्यापार में लाभ होता है।
  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। यह पुण्य अगले जन्म में भी सुख-शांति और समृद्धि प्रदान करता है।
  • सच्चे मन से की गई प्रार्थना और व्रत इस दिन विशेष रूप से फलदायी होता है। भगवान गणेश भक्तों की सभी सच्ची मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।

कृष्णापिंगला संकष्टी चतुर्थी क्यों है विशेष और चमत्कारी?

  • चंद्रावलोकन का महत्व: संकष्टी चतुर्थी का व्रत चंद्रमा के दर्शन और अर्घ्य देने के बाद ही पूर्ण माना जाता है। इस दिन चंद्रमा के दर्शन का विशेष महत्व है क्योंकि चंद्र देव को मन और भावनाओं का कारक माना जाता है। चंद्रमा को अर्घ्य देने से मन शांत होता है और मानसिक तनाव दूर होता है। कृष्णापिंगला संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रमा का दर्शन और पूजन अत्यंत शुभ माना गया है।
  • मोदक और दूर्वा का अर्पण: भगवान गणेश को मोदक अत्यंत प्रिय हैं। इस दिन मोदक का भोग लगाने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। दूर्वा घास भी गणेश जी को बहुत प्रिय है। 21 दूर्वा की गांठें गणेश जी को अर्पित करने से वे भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं। ये दोनों चीजें इस चतुर्थी को और भी चमत्कारी बनाती हैं।
  • गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ: इस दिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। यह अथर्वशीर्ष गणेश जी को समर्पित एक शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसके पाठ से सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
  • संकल्प शक्ति: इस दिन जो भक्त सच्चे मन से संकल्प लेकर व्रत रखते हैं और पूजा करते हैं, उनकी संकल्प शक्ति में वृद्धि होती है और वे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होते हैं। यह संकल्प उन्हें आध्यात्मिक और भौतिक दोनों ही क्षेत्रों में उन्नति प्रदान करता है।
  • पुराणों में उल्लेख: विभिन्न पुराणों और धर्मग्रंथों में इस चतुर्थी के महत्व का विशेष रूप से उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने गणेश को सभी देवताओं में श्रेष्ठ होने का आशीर्वाद दिया था, जिससे यह चतुर्थी और भी पवित्र हो जाती है।

कृष्णापिंगला संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा विधि

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। व्रत का संकल्प लें और मन ही मन भगवान गणेश का स्मरण करें।
  • पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें और एक चौकी पर भगवान गणेश की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
  • दीपक प्रज्वलित करें और धूप-अगरबत्ती जलाएं। भगवान गणेश को लाल पुष्प, रोली, चावल, चंदन और 21 दूर्वा की गांठें अर्पित करें।
  • मोदक, लड्डू या अन्य मीठे पकवान का भोग लगाएं।
  • “ॐ गं गणपतये नमः” या “वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।” मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें।
  • संकष्टी चतुर्थी की कथा का श्रवण करें या पढ़ें। अंत में गणेश जी की आरती करें।
  • शाम को चंद्रमा के उदय होने पर उन्हें अर्घ्य दें और व्रत का पारण करें।

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