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माघ महीना व्रत कथा एवं पूजा विधि

Magh Mahina Vrat Katha Avm Pooja Vidhi Hindi

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|| माघ पूर्णिमा पूजा विधि ||

  • माघ पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान करना चाहिए। यदि गंगा स्नान संभव न हो तो पानी में गंगाजल मिलकर स्नान कर सकते हैं।
  • स्नान के उपरांत ॐ नमो नारायणाय मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य दें।
  • फिर तिलांजलि देने के लिए सूर्य की ओर मुख करके खड़े हो जाएं और जल में तिल डालकर उसका तर्पण करें।
  • इसके बाद पूजा प्रारंभ करें।
  • भोग में चरणामृत, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, फल, फूल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा आदि चीजें अर्पित करें।
  • अंत में आरती और प्रार्थना करें।
  • पूर्णिमा पर चंद्रमा और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।

|| माघ माह का महत्व ||

माघ मास में ‘कल्पवास’ का विशेष महत्त्व है। ‘माघ काल’ में संगम के तट पर निवास को ‘कल्पवास’ कहते हैं। माघ माह में जहां कहीं भी जल हो तो ऐसा माना जाता है कि वह गंगाजल के समान पवित्र हो जाता है। जो भी माघ माह में गंगा स्नान करता हैं लक्ष्मीपति भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करता है।

माघ माह में स्नान करने से सुख-सौभग्य, धन-संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त हो जाते हैं।

मान्यता है कि माघ माह में देवता धरती पर आकर मनुष्य रूप धारण करते हैं और प्रयाग में स्नान करने के साथ ही दान और जप करते हैं।

इसीलिए प्रयाग में स्नान का खास महत्व है। जहां स्नान करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो इस तिथि का महत्व और बढ़ जाता है।

|| माघ महीना व्रत कथा ||

प्राचीन काल में नर्मदा तट पर शुभव्रत नामक ब्राह्मण निवास करते थे। शुभव्रत सभी वेद शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता थे लेकिन उनका स्वभाव धन संग्रह करने का अधिक था। इसी के चलते उन्होंने अपने जीवन में बहुत सा धन एकत्रित किया लेकिन वृद्धावस्था में पहुंचते पहुंचते उन्हें कई बीमारियों ने घेर लिया।

इस अवस्था में आकर शुभव्रत को आभास हुआ कि उन्होंने अपने जीवन के सभी वर्षों को धन संचय करने में गवां दिया।

शुभव्रत ने विचार किया कि उन्हें परलोक सिधार जाना चाहिए और इसी बीच उन्हें एक श्लोक स्मरण हुआ जिसमें माघ मास में स्नान की विशेषता बताई गई।

उसी समय उन्होंने माघ स्नान का संकल्प लिया और ‘माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति..’ श्लोक के आधार पर नर्मदा में स्नान करने लगे।

उन्होंने 9 दिनों तक प्रात: नर्मदा में स्नान किया और 10वें दिन स्नान के बाद उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।

|| माघ मास के नियम ||

माघ मास में स्नान व दान का विशेष महत्व होता है। इस महीने संगम नदी के तट पर कल्पवास शुरू हो जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कल्पवास करने से व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है और उसे स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस माह में सभी स्थानों के शुद्ध जल को गंगातुल्य माना जाता है। इसलिए यदि आप गंगा स्नान नहीं कर सकते तो प्रतिदिन घर में स्नान करें। इससे श्रीहरि की कृपा अपने भक्तों पर सदैव बनी रहती है।

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