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क्या आपकी हर मनोकामना अधूरी रह जाती है? इस मासिक शिवरात्रि पर आजमाएं शिव पूजन की यह प्राचीन विधि

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अक्सर हमारे जीवन में एक ऐसा दौर आता है जब हमें लगता है कि हमारी मेहनत और प्रार्थनाएं बेकार जा रही हैं। हम मंदिरों के चक्कर लगाते हैं, उपवास रखते हैं, फिर भी मनचाहा फल नहीं मिलता। शास्त्रों में कहा गया है कि महादेव तो ‘भोले’ हैं, वे बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कभी-कभी हमारी पूजा की विधि या भाव में कुछ ऐसी कमी रह जाती है, जिससे हम उस दिव्य ऊर्जा से नहीं जुड़ पाते?

इस मासिक शिवरात्रि पर, हम आपको शिव पूजन की उस प्राचीन और अचूक विधि के बारे में बताएंगे, जिसका उल्लेख शिव पुराण में मिलता है। यह केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि महादेव से जुड़ने का एक गहरा आध्यात्मिक मार्ग है।

मासिक शिवरात्रि का महत्व – क्यों है यह खास?

हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। यह दिन शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन चंद्रमा अपनी कमजोर स्थिति में होता है, और चंद्रमा हमारे मन का कारक है। भगवान शिव, जो ‘चंद्रशेखर’ हैं, उनकी उपासना करने से मन पर नियंत्रण प्राप्त होता है और संकल्प शक्ति (Will Power) बढ़ती है। जब संकल्प मजबूत होता है, तभी मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं।

मासिक शिवरात्रि प्राचीन शिव पूजन विधि

यदि आप अपनी किसी विशेष इच्छा (विवाह, नौकरी, स्वास्थ्य या धन) को पूरा करना चाहते हैं, तो इस विधि को अत्यंत श्रद्धा के साथ अपनाएं:

1. ब्रह्म मुहूर्त में संकल्प (The Power of Intention)

पूजा की शुरुआत केवल जल चढ़ाने से नहीं होती, बल्कि ‘संकल्प’ से होती है। सुबह उठकर स्नान के बाद हाथ में थोड़ा जल और अक्षत लेकर महादेव के सामने अपनी उस इच्छा को स्पष्ट रूप से कहें जिसे आप पूरा करना चाहते हैं। याद रखें, महादेव को आपकी भाषा नहीं, आपके भाव चाहिए।

2. ‘पंचामृत’ अभिषेक का सही क्रम

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, अभिषेक का एक विशिष्ट वैज्ञानिक क्रम है। शिवलिंग पर सीधे पानी न डालकर इस क्रम का पालन करें:

  • दूध: लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए।
  • दही: पारिवारिक सुख और शांति के लिए।
  • घी: वंश वृद्धि और शक्ति के लिए।
  • शहद: वाणी में मधुरता और सौभाग्य के लिए।
  • शक्कर/गंगाजल: सुख-समृद्धि और मोक्ष के लिए।

3. ‘त्रिदल’ बिल्वपत्र और चंदन का तिलक

महादेव को बिल्वपत्र अर्पित करना सबसे प्रिय है, लेकिन एक विशेष सावधानी रखें। बिल्वपत्र के तीनों दल (पत्ते) साबुत होने चाहिए। उन पर सफेद चंदन से ‘ॐ’ लिखें और चिकनी सतह की ओर से शिवलिंग पर चढ़ाएं। ऐसा करते समय “ॐ नमः शिवाय” का जाप मन ही मन चलता रहना चाहिए।

4. प्रदोष काल की महिमा

मासिक शिवरात्रि पर प्रदोष काल (सूर्यास्त के समय) में की गई पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है। इस समय शिव मंदिर में एक शुद्ध घी का दीपक जलाएं और शिव चालीसा या रुद्राष्टकम का पाठ करें।

इस विधि को क्या “अद्वितीय” बनाता है? (The Human Touch)

ज्यादातर लोग पूजा को एक ‘टास्क’ की तरह करते हैं। इस बार इसे एक रिश्ते की तरह निभाएं।

  • मौन का पालन करें – पूजा के दौरान और उसके एक घंटे बाद तक कम से कम बोलें। अपनी ऊर्जा को बाहर निकालने के बजाय भीतर शिव के नाम के साथ स्टोर करें।
  • मानसिक पूजा – यदि आप मंदिर नहीं जा सकते, तो शांत बैठकर कल्पना करें कि आप महादेव का अभिषेक कर रहे हैं। शिव पुराण कहता है कि ‘मानस पूजा’ का फल प्रत्यक्ष पूजा से भी अधिक हो सकता है।

इन गलतियों से बचें

  • शिवलिंग की पूरी परिक्रमा कभी न करें (जलाधारी को न लांघें)।
  • शिव जी को कभी भी केतकी का फूल या तुलसी अर्पित न करें।
  • पूजा में काले कपड़े पहनने से बचें; सफेद या पीले वस्त्र धारण करना शुभ होता है।

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