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जब नीम करोली बाबा ने एक ट्रेन रोक दी थी – एक अनसुनी और सच्ची कहानी

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भारत संतों और फकीरों की भूमि है। यहाँ तर्क (Logic) जहाँ खत्म होता है, वहां से आस्था (Faith) शुरू होती है। आज पूरी दुनिया, चाहे वो Steve Jobs हों, Mark Zuckerberg हों या हमारे Virat Kohli, सब ‘कैंची धाम’ की शरण में शांति ढूँढने जाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि बाबा नीम करोली, जो हनुमान जी के अवतार माने जाते हैं, उनका नाम ‘नीम करोली’ कैसे पड़ा?

यह कहानी उसी घटना से जुड़ी है, जब विज्ञान और मशीन एक साधारण से दिखने वाले साधु के सामने नतमस्तक हो गए थे। यह किस्सा है उस वक्त का जब भारत में अंग्रेजों का राज था और एक ट्रेन अपनी पटरी से हिलने को तैयार नहीं थी।

फर्स्ट क्लास का डिब्बा और बाबा नीम करोली

यह बात आजादी से पहले की है। एक बार महाराज-जी (बाबा नीम करोली) ट्रेन से सफर कर रहे थे। उन्होंने ट्रेन के [First Class] कंपार्टमेंट में चढ़ने का फैसला किया और जाकर आराम से बैठ गए। बाबा हमेशा की तरह एक साधारण से कंबल में लिपटे हुए थे।
तभी वहां एक [Ticket Collector – TC] आया। वह एक एंग्लो-इंडियन था और उसे अपने पद का काफी घमंड (Ego) था। उसने जब एक साधु को फर्स्ट क्लास में बैठे देखा, तो उसका पारा चढ़ गया। उसने बाबा से टिकट माँगा। बाबा तो फकीर थे, उनके पास टिकट कहाँ से होता?

टीसी ने बिना कोई लिहाज किए, बाबा को बुरी तरह अपमानित किया और अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकते ही उन्हें नीचे उतार दिया। वह स्टेशन ‘नीम करोली’ गाँव के पास था। बाबा ने कोई विरोध नहीं किया। वे चुपचाप उतरे और पटरी के पास ही एक पेड़ के नीचे अपना चिमटा गाड़कर बैठ गए।

जब इंजन तो चला, पर पहिये नहीं घूमे

बाबा को उतारने के बाद टीसी ने हरी झंडी दिखाई और ड्राइवर को ट्रेन चलाने का इशारा किया। ड्राइवर ने पूरा ज़ोर (Throttle) लगा दिया। इंजन घरघराया, भाप बनी, लेकिन ट्रेन का एक भी पहिया अपनी जगह से नहीं हिला।

शुरुआत में लगा कि कोई तकनीकी खराबी (Technical Fault) है। इंजीनियरों ने सब कुछ चेक किया। मशीनरी एकदम ठीक थी, इंजन में पावर थी, लेकिन ट्रेन ऐसे जाम हो गई थी जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उसे पीछे से पकड़ रखा हो।

ट्रेन में बैठे यात्री परेशान होने लगे। कई बड़े-बड़े अधिकारी भी सफर कर रहे थे, लेकिन किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर माजरा क्या है।

अहंकार की हार और माफ़ी

जब काफी देर हो गई और ट्रेन टस से मस नहीं हुई, तो वहां मौजूद कुछ भारतीय यात्रियों और रेलवे के पुराने कर्मचारियों ने टीसी को सलाह दी। उन्होंने कहा, “साहब, आपने उस साधु को अपमानित करके नीचे उतारा है, शायद यह उसी का नतीजा है। आप उनसे माफ़ी मांग लीजिये।”

शुरुआत में टीसी अपनी अकड़ में था, लेकिन जब कोई और रास्ता (Option) नहीं बचा, तो वह उस पेड़ के पास गया जहाँ बाबा मुस्कुराते हुए बैठे थे। टीसी ने उनसे माफ़ी मांगी और वापस ट्रेन में बैठने की विनती की।

बाबा ने उसकी बात सुनी और ट्रेन में बैठने के लिए तैयार हो गए, लेकिन उन्होंने रेलवे के सामने दो शर्तें (Conditions) रखीं:

  • बाबा ने कहा कि रेलवे को यहाँ (नीम करोली गाँव में) एक स्टेशन बनाना होगा, ताकि गाँव वालों को परेशानी न हो।
  • भविष्य में रेलवे साधु-संतों के साथ बुरा बर्ताव नहीं करेगा। रेलवे के अधिकारियों ने तुरंत ये शर्तें मान लीं।

बाबा नीम करौरी – वो ‘जादुई’ पल

जैसे ही बाबा अपनी जगह से उठे और ट्रेन के डिब्बे में कदम रखा, एक चमत्कार हुआ। बिना ड्राइवर के कुछ किये, ट्रेन का इंजन जो अब तक जाम था, अपने आप चल पड़ा। ट्रेन चल पड़ी और वहां मौजूद हर व्यक्ति हैरान रह गया।

उस दिन सबको समझ आ गया कि यह कोई साधारण साधु नहीं हैं। जिस गाँव में यह घटना हुई, उसका नाम ‘नीम करोली’ था, और इसी घटना के बाद लक्ष्मी नारायण शर्मा जी को दुनिया ‘नीम करोली बाबा’ के नाम से जानने लगी।

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