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पद्मनाभ द्वादशी व्रत 2025 – जानिए पूजन विधि, कथा और पद्मनाभ भगवान के चमत्कारी स्वरूप

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सनातन धर्म में व्रतों और त्योहारों का विशेष महत्व है, और इन्हीं में से एक है ‘पद्मनाभ द्वादशी व्रत’। यह व्रत भगवान विष्णु के ‘पद्मनाभ’ स्वरूप को समर्पित है, जो अनंत शयन पर कमल की नाभि से ब्रह्मा जी को उत्पन्न करते हुए ब्रह्मांड की रचना का प्रतीक हैं। यह दिन भक्तों को भगवान विष्णु की असीम कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का सुअवसर प्रदान करता है। आइए, 2025 में आने वाली पद्मनाभ द्वादशी के महत्व, पूजन विधि, प्रामाणिक कथा और भगवान के चमत्कारी स्वरूप के बारे में विस्तार से जानते हैं।

पद्मनाभ द्वादशी का महत्व – क्यों करें यह व्रत?

पद्मनाभ द्वादशी, जिसे ‘उत्थान द्वादशी’ या ‘देवोत्थान द्वादशी’ के रूप में भी जाना जाता है, विशेष रूप से तब मनाई जाती है जब भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागृत होते हैं। हालांकि, पद्मनाभ द्वादशी कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है, जो चातुर्मास की समाप्ति का प्रतीक है। इस दिन व्रत रखने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान पद्मनाभ की सच्चे मन से पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत वैवाहिक जीवन में मधुरता लाने और संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपतियों के लिए भी अत्यंत फलदायी माना जाता है।

पद्मनाभ द्वादशी 2025 – शुभ मुहूर्त और तिथि

वर्ष 2025 में पद्मनाभ द्वादशी का व्रत शनिवार, 04 अक्टूबर 2025 को रखा जाएगा।

  • द्वादशी तिथि प्रारंभ: 03 अक्टूबर 2025, को शाम 04:30 बजे से
  • द्वादशी तिथि समाप्त: 04 अक्टूबर 2025, को शाम 06:15 बजे तक

उदया तिथि के अनुसार, पद्मनाभ द्वादशी का व्रत 04 अक्टूबर 2025 को ही मान्य होगा।

पद्मनाभ द्वादशी व्रत की पूजन विधि

पद्मनाभ द्वादशी के दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा का विधान है। यहाँ एक सरल और विस्तृत पूजन विधि दी गई है:

  • द्वादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के मंदिर को साफ करें। अब हाथ में जल और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लें कि आप पूर्ण श्रद्धा और निष्ठा के साथ यह व्रत रखेंगे।
  • भगवान पद्मनाभ की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पूजा स्थल को फूलों, दीपकों और रंगोली से सजाएँ। पूजन सामग्री में तुलसी दल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल), फल, मिष्ठान, धूप, दीप, चंदन, कुमकुम, अक्षत, पीताम्बर वस्त्र (भगवान के लिए), और नैवेद्य (भोग) तैयार रखें।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करते हुए भगवान विष्णु का आह्वान करें।
  • भगवान की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर साफ वस्त्र से पोंछ लें। भगवान को पीताम्बर वस्त्र और आभूषण अर्पित करें।
  • भगवान को चंदन, कुमकुम का तिलक लगाएं और पीले फूल, विशेषकर कमल के फूल, और तुलसी दल अर्पित करें। शुद्ध देसी घी का दीपक प्रज्वलित करें और धूपबत्ती जलाएं।
  • भगवान को अपनी श्रद्धा अनुसार नैवेद्य अर्पित करें। इसमें मौसमी फल, मिठाई और विशेष रूप से सिंघाड़े का आटा या चावल से बनी खीर शामिल हो सकती है। ध्यान रखें कि भोग में तुलसी दल अवश्य रखें।
  • भगवान विष्णु के विभिन्न मंत्रों जैसे “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”, “विष्णु सहस्रनाम” या “श्री हरि स्तोत्र” का जाप करें। पद्मनाभ स्तोत्र का पाठ करना विशेष फलदायी होता है। व्रत की कथा पढ़ें या सुनें। अंत में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की आरती करें।
  • हाथ जोड़कर भगवान से अपनी भूलों के लिए क्षमा याचना करें और अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
  • द्वादशी के अगले दिन (त्रयोदशी) शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें। पारण के लिए सात्विक भोजन ग्रहण करें।

पद्मनाभ द्वादशी व्रत कथा

पद्मनाभ द्वादशी व्रत से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा इस प्रकार है:

प्राचीन काल में एक धर्मात्मा राजा था, जिसका नाम ‘पद्मनाभ’ था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था और अपनी प्रजा का सदैव कल्याण करता था। एक बार अकाल के कारण उसके राज्य में घोर दरिद्रता छा गई। राजा ने अपनी प्रजा को इस संकट से उबारने के लिए ऋषि-मुनियों से मार्गदर्शन मांगा। ऋषि-मुनियों ने उन्हें कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप का व्रत करने और उनकी विशेष पूजा करने का विधान बताया।

राजा पद्मनाभ ने अपनी पत्नी और प्रजा के साथ मिलकर पूर्ण श्रद्धा और निष्ठा से यह व्रत किया। उन्होंने द्वादशी के दिन भगवान विष्णु का विधि-विधान से पूजन किया, कथा सुनी और रात्रि जागरण कर भगवान के गुणों का गान किया। उनके इस समर्पण और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और उनके राज्य को धन-धान्य से परिपूर्ण कर दिया। राजा पद्मनाभ के नाम से ही यह द्वादशी ‘पद्मनाभ द्वादशी’ के नाम से विख्यात हुई।

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु जब क्षीरसागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में लीन होते हैं, तब उनकी नाभि से एक कमल प्रकट होता है, जिस पर ब्रह्मा जी विराजमान होकर सृष्टि की रचना करते हैं। यह ‘पद्मनाभ’ स्वरूप ही सृष्टि के आरंभ और पालन का प्रतीक है। इस दिन भगवान के इस स्वरूप की पूजा करने से सृष्टि के समस्त शुभ तत्वों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पद्मनाभ भगवान का चमत्कारी स्वरूप

भगवान विष्णु का पद्मनाभ स्वरूप अत्यंत विलक्षण और चमत्कारी है। यह स्वरूप हमें कई गहरे आध्यात्मिक रहस्यों से परिचित कराता है:

  • भगवान विष्णु का शेषनाग पर शयन करना यह दर्शाता है कि वे सृष्टि के प्रलय और सृजन के चक्र के साक्षी हैं। शेषनाग अनंतता और काल के प्रतीक हैं।
  • भगवान की नाभि से कमल का उत्पन्न होना और उस पर ब्रह्मा का विराजमान होना सृष्टि के सृजन का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि समस्त ब्रह्मांड भगवान विष्णु से ही उत्पन्न हुआ है।
  • भगवान की चार भुजाएं उनके सर्वव्यापकत्व, सर्वशक्तिमत्ता और चारों दिशाओं में नियंत्रण का प्रतीक हैं। इन भुजाओं में शंख (पवित्र ध्वनि और सृष्टि), चक्र (कालचक्र और धर्म), गदा (शक्ति और संहार), और पद्म (शुद्धता और सृजन) धारण करना उनके विभिन्न गुणों को दर्शाता है।
  • भगवान की शांत और ध्यानस्थ मुद्रा यह दर्शाती है कि वे सृष्टि के समस्त क्रियाकलापों के बावजूद परम शांति और स्थिरता में स्थित हैं।
  • भगवान के चरणों में देवी लक्ष्मी का विराजमान होना धन, समृद्धि और ऐश्वर्य का प्रतीक है। पद्मनाभ भगवान के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा करने से भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की समृद्धि प्राप्त होती है।

केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर भगवान विष्णु के इसी चमत्कारी स्वरूप को समर्पित है। यह मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला, स्वर्ण मंडित मूर्तियों और अतुलनीय संपत्ति के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भगवान पद्मनाभ की विशाल मूर्ति है, जिसमें वे शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं और उनकी नाभि से कमल निकला हुआ है। यह मंदिर आध्यात्मिक शक्ति और दिव्यता का एक अद्वितीय केंद्र है।

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