पशुपतिनाथ व्रत भगवान शिव को समर्पित एक विशेष व्रत है। यह व्रत 5 सोमवार को किया जाता है और माना जाता है कि इससे भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
पशुपतिनाथ व्रत को रखने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है। भगवान शिव का एक विशेष रूप पशुपतिनाथ के रूप में पूजित होता है, जिन्हें समस्त जीव-जंतुओं के स्वामी माना जाता है। इस व्रत के माध्यम से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और सभी कष्टों का निवारण होता है।
पशुपतिनाथ व्रत के माध्यम से भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। इस पशुपतिनाथ व्रत को विधिपूर्वक करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है। भगवान शिव की भक्ति और उपासना से सभी कष्टों का निवारण होता है और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पशुपति व्रत विधि
- जिस सोमवार से आप पशुपति व्रत करना प्रारंभ कर रहे हैं, उस सोमवार को स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पांच सोमवार व्रत करने का संकल्प लें।
- पास के शिवालय (मंदिर) जाएं।
- पूजा की थाली में धूप, दीप, चंदन, लाल चंदन, बिल्व पत्र, पुष्प, फल और जल लेकर भगवान शिव का अभिषेक करें।
- इस थाली को घर आकर सुरक्षित रख दें।
- शाम के समय (प्रदोष काल) में स्वच्छ होकर पुनः मंदिर जाएं। थाली में मीठा प्रसाद और छह घी के दिए (दीपक) लेकर जाएं।
- मीठे भोग प्रसाद को बराबर तीन भागों में बांट लें। दो भाग भगवान शिव को समर्पित करें और एक भाग अपनी थाली में रखें।
- छः दिए में से पांच दिए भगवान शिव के सम्मुख प्रज्वलित करें।
- बिना जलाया हुआ एक दिया अपनी थाली में रखकर घर वापस आएं। इसे घर में प्रवेश करने से पहले मुख्य द्वार के दाहिने ओर चौखट पर रखकर जलाएं।
- घर में प्रवेश करने के बाद एक भाग भोग प्रसाद को स्वयं ग्रहण करें। इस प्रसाद को किसी और व्यक्ति को न दें।
- इस व्रत में आप प्रसाद के साथ भोजन भी कर सकते हैं। हो सके तो मीठा भोजन ही करें।
पशुपति व्रत के नियम
- इस व्रत को सोमवार के दिन ही किया जाता है।
- सुबह और शाम (प्रदोष काल) में मंदिर जाना अनिवार्य है।
- किसी कारण आप व्रत करने में असमर्थ हैं तो उस सोमवार को व्रत नहीं करना चाहिए।
- जिस मंदिर (शिवालय) में प्रथम सोमवार को गए हैं, उसी मंदिर में पांचों सोमवार जाएं।
- सायंकाल (प्रदोष काल) में पूजा का विशेष महत्व है।
- व्रत करने वाले को दिन में सोना नहीं चाहिए और भगवान शंकर का ध्यान करते रहना चाहिए।
- व्रत में दिन में फलाहार भी कर सकते हैं।
- यदि आप दुबारा व्रत करना चाहते हैं, तो एक सोमवार छोड़कर व्रत प्रारंभ कर सकते हैं।
- व्रत के दौरान श्रद्धानुसार दान भी करें।
पशुपति व्रत पूजा सामग्री
पशुपतिनाथ व्रत के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
- भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग
- जल, दूध, दही, शहद, घी और शक्कर (अभिषेक के लिए)
- बेलपत्र, धतूरा और भांग
- पुष्प (विशेषकर सफेद और नीले फूल)
- धूप, दीपक और अगरबत्ती
- पशुपतिनाथ जी की आरती सामग्री
- पंचामृत
- चंदन का लेप
- ताजे फल और मिठाई
- रुद्राक्ष माला
- गंगाजल
- नारियल
- शमी पत्र
- शिव चालीसा
पशुपति व्रत उद्यापन विधि
- पांचवें सोमवार को व्रत का समापन होता है।
- इस दिन, भगवान शिव की विशेष पूजा करें और ब्राह्मणों को भोजन दान करें।
- गरीबों और जरूरतमंदों को दान दें।
- इसके बाद, व्रत का उद्यापन करें।
- उद्यापन के लिए, किसी पंडित को बुलाकर हवन करवाएं।
- हवन में भगवान शिव को समर्पित सामग्री अर्पित करें।
- अंत में, दक्षिणा देकर पंडित को विदा करें।
- प्रसाद का वितरण करें और सभी भक्तों को प्रसाद ग्रहण कराएं।
पशुपतिनाथ व्रत के फायदे
- भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
- मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- पापों का नाश होता है।
- रोगों और कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- सुख, समृद्धि और वैभव प्राप्त होता है।
- मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पशुपतिनाथ व्रत में मंत्रों का जाप
- ॐ पशुपतये नमः।।
- ॐ नमः शिवाय।।
- ॐ नमो भगवते रुद्राय॥
- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।
- कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि॥
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