|| पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा ||
पुराणों में अधिकमास, जिसे मलमास भी कहा जाता है, के पुरुषोत्तम मास बनने की एक बेहद रोचक कथा है। इस कथा के अनुसार बारह महीनों के अलग-अलग स्वामी हैं, लेकिन स्वामीविहीन होने के कारण अधिकमास को मलमास कहा जाने लगा, जिससे उसकी निंदा होने लगी। इस बात से दु:खी होकर मलमास श्रीहरि विष्णु के पास गया और अपनी व्यथा सुनाई।
भक्तवत्सल श्रीहरि उसे लेकर गोलोक पहुँचे। वहाँ श्रीकृष्ण विराजमान थे। करुणासिंधु भगवान श्रीकृष्ण ने मलमास की व्यथा सुनकर उसे वरदान दिया: “अब से मैं तुम्हारा स्वामी हूँ। मेरे सभी दिव्य गुण तुम में समाविष्ट हो जाएंगे। मैं पुरुषोत्तम के नाम से विख्यात हूँ और तुम्हें भी यही नाम देता हूँ। आज से तुम मलमास के स्थान पर पुरुषोत्तम मास के नाम से जाने जाओगे।”
शास्त्रों के अनुसार, हर तीसरे साल सर्वोत्तम अर्थात पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति होती है। इस मास के दौरान जप, तप, और दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। इस मास में श्रीकृष्ण, श्रीमद्भगवतगीता, श्रीराम कथा वाचन, और विष्णु भगवान की उपासना की जाती है। इस माह उपासना का अपना विशेष महत्व है। इस माह में तुलसी अर्चना का भी विशेष महत्व बताया गया है।
पुरुषोत्तम मास में कथा पढ़ने और सुनने से बहुत लाभ प्राप्त होता है। इस मास में धरती पर शयन और एक समय भोजन करने से अनंत फल मिलते हैं। सूर्य की बारह संक्रान्तियों के आधार पर ही वर्ष में 12 माह होते हैं, और हर तीसरे वर्ष पुरुषोत्तम मास आता है।
पंचांग के अनुसार, सभी तिथि-वार, योग-करण, और नक्षत्रों के अलावा सभी मास के कोई न कोई देवता स्वामी होते हैं, लेकिन पुरुषोत्तम मास का कोई स्वामी नहीं होने के कारण सभी मङ्गल कार्य, शुभ और पितृ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
दान, धर्म, और पूजन का महत्व शास्त्रों में बताया गया है। इस माह में व्रत-उपवास, दान-पूजा, यज्ञ-हवन, और ध्यान करने से मनुष्य के सारे पाप कर्मों का नाश होता है और उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस माह में किया गया एक रुपया दान भी सौ गुना फल देता है।
इसलिए अधिकमास के महत्व को ध्यान में रखते हुए इस माह में दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। इस माह में भागवत कथा, श्रीराम कथा श्रवण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। धार्मिक तीर्थ स्थलों पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति और अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है।
पुरुषोत्तम मास का अर्थ है जिस माह में सूर्य संक्रान्ति नहीं होती वह अधिकमास कहलाता है। इनमें विशेष रूप से सभी मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं, लेकिन यह माह धर्म-कर्म के कार्य करने में बहुत फलदायी है। इस मास में किए गए धार्मिक आयोजन पुण्य फलदायी होने के साथ ही अन्य महीनों की अपेक्षा करोड़ गुना अधिक फल देने वाले माने गए हैं।
पुरुषोत्तम मास में दीपदान, वस्त्र एवं श्रीमद्भागवत कथा ग्रंथ दान का विशेष महत्व है। इस मास में दीपदान करने से धन-वैभव में वृद्धि के साथ ही पुण्य लाभ भी प्राप्त होता है।
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