॥ आरती ॥
जय शनि देवा, जय शनि देवा,
जय जय जय शनि देवा।
अखिल सृष्टि में कोटि-कोटिजन
करें तुम्हारी सेवा।
जय शनि देवा…॥
जा पर कुपित होउ तुम स्वामी,
घोर कष्ट वह पावे।
धन वैभव और मान-कीर्ति,
सब पलभर में मिट जावे।
राजा नल को लगी शनि दशा,
राजपाट हर लेवा।
जय शनि देवा…॥
जा पर प्रसन्न होउ तुम स्वामी,
सकल सिद्धि वह पावे।
तुम्हारी कृपा रहे तो,
उसको जग में कौन सतावे।
ताँबा, तेल और तिल से जो,
करें भक्तजन सेवा।
जय शनि देवा…॥
हर शनिवार तुम्हारी,
जय-जय कार जगत में होवे।
कलियुग में शनिदेव महात्तम,
दु:ख दरिद्रता धोवे।
करू आरती भक्ति भाव से
भेंट चढ़ाऊं मेवा।
जय शनि देवा…॥