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श्राद्ध पक्ष में क्या करें और क्या न करें? जानें 16 दिन के नियम और परंपराएं

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सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है। यह 16 दिवसीय अवधि हमारे पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उन्हें सम्मान देने का समय है। भाद्रपद मास की पूर्णिमा से अश्विन मास की अमावस्या तक चलने वाले इन 16 दिनों में, परिवार के दिवंगत सदस्यों की आत्मा की शांति और उनके मोक्ष के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि अपनी जड़ों से जुड़ने और अपनी परंपराओं को समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी है। हम श्राद्ध पक्ष के नियमों, परंपराओं और उन बातों पर विस्तार से चर्चा करेंगे जो आपको इस दौरान करनी चाहिए और नहीं करनी चाहिए, ताकि आप अपने पितरों को सच्ची श्रद्धा अर्पित कर सकें।

श्राद्ध पक्ष का महत्व

श्राद्ध का अर्थ है ‘श्रद्धा से दिया गया’। ऐसी मान्यता है कि इन 16 दिनों में हमारे पितर सूक्ष्म रूप में पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा दिए गए तर्पण और पिंड दान को ग्रहण करते हैं। इससे उन्हें शांति मिलती है और वे संतुष्ट होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पितृ दोष से मुक्ति और परिवार में सुख-शांति के लिए भी श्राद्ध पक्ष में किए गए कर्मों का विशेष फल बताया गया है।

श्राद्ध पक्ष – 16 दिन के नियम और परंपराएं

श्राद्ध पक्ष के हर दिन का अपना महत्व है और यह उस तिथि के अनुसार किया जाता है जिस तिथि को पितरों का निधन हुआ होता है।

क्या करें (नियम और परंपराएं)

  • तर्पण और पिंड दान – यह श्राद्ध का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। काले तिल, जौ, कुश, दूध और गंगाजल से तर्पण किया जाता है। पिंड दान में चावल, जौ का आटा, तिल और घी से बने पिंड पितरों को अर्पित किए जाते हैं।
  • ब्राह्मण भोजन – श्राद्ध वाले दिन ब्राह्मणों को आदरपूर्वक भोजन कराएं। उन्हें दान-दक्षिणा दें। ऐसी मान्यता है कि पितर ब्राह्मणों के रूप में आकर भोजन ग्रहण करते हैं।
  • कौए, गाय और कुत्ते को भोजन – श्राद्ध का भोजन निकालने के बाद पहला हिस्सा कौए, गाय और कुत्ते को अवश्य दें। इन्हें पितरों का रूप माना जाता है।
  • पितरों का आह्वान – श्राद्ध करने से पहले पितरों का आह्वान करें और उनसे प्रार्थना करें कि वे आपके द्वारा दिए गए तर्पण और पिंड को ग्रहण करें।
  • पवित्रता और सात्विकता – इन 16 दिनों में शरीर और मन दोनों की शुद्धता बनाए रखें। सात्विक भोजन ग्रहण करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • गरीबों और जरूरतमंदों को दान – अपनी सामर्थ्य अनुसार गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें। इससे पितरों को शांति मिलती है।
  • कुश और तिल का प्रयोग – श्राद्ध कर्म में कुश और काले तिल का विशेष महत्व है। इनका प्रयोग सभी अनुष्ठानों में अवश्य करें। कुश को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है और तिल पितरों को आकर्षित करते हैं।
  • गंगाजल का प्रयोग – गंगाजल को अत्यंत पवित्र माना जाता है। श्राद्ध कर्म में गंगाजल का प्रयोग अवश्य करें।
  • नित्य दीपक जलाना – श्राद्ध पक्ष में रोजाना शाम को घर के दक्षिण दिशा में एक दीपक जलाएं। यह पितरों को मार्ग दिखाने के लिए होता है।
  • भागवत कथा का पाठ या श्रवण – यदि संभव हो तो इस दौरान श्रीमद्भागवत महापुराण का पाठ करें या सुनें। इससे पितरों को मोक्ष मिलता है।
  • श्राद्ध की तिथि का ज्ञान – अपने पितरों की मृत्यु तिथि के अनुसार ही श्राद्ध करें। यदि तिथि ज्ञात न हो तो अमावस्या तिथि (सर्वपितृ अमावस्या) को श्राद्ध किया जा सकता है।

क्या न करें (वर्जित कार्य)

  • शुभ कार्य न करें – श्राद्ध पक्ष में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नए व्यापार का शुभारंभ जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं करने चाहिए।
  • नए वस्त्र या आभूषण न खरीदें – इस दौरान नए कपड़े या आभूषण खरीदने से बचें।
  • मांसाहार और तामसिक भोजन – मांसाहार, प्याज, लहसुन और अन्य तामसिक भोजन का सेवन बिल्कुल न करें। शुद्ध सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।
  • बाल या नाखून न काटें – श्राद्ध पक्ष में बाल और नाखून काटने से बचना चाहिए।
  • शराब और धूम्रपान – किसी भी प्रकार के नशे का सेवन न करें। यह पितरों का अपमान माना जाता है।
  • दूसरों की निंदा या अपशब्द – इस दौरान किसी की निंदा न करें, न ही किसी को अपशब्द कहें। मन को शांत और पवित्र रखें।
  • नई चीजें खरीदना – कोशिश करें कि इस अवधि में बहुत जरूरी न हो तो नई वस्तुएं जैसे गाड़ी, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स आदि न खरीदें।
  • खेतों में हल चलाना – यदि आप किसान हैं, तो श्राद्ध पक्ष में हल चलाने से बचें।
  • बासी भोजन – पितरों को बासी भोजन नहीं अर्पित करना चाहिए और न ही स्वयं ग्रहण करना चाहिए।
  • यात्रा से बचें – अनावश्यक यात्राओं से बचना चाहिए, खासकर लंबी यात्राओं से।
  • कठोर शब्दों का प्रयोग – परिवार के सदस्यों और बाहर वालों के साथ कठोर शब्दों का प्रयोग न करें। शांति और प्रेम का माहौल बनाए रखें।

सर्वपितृ अमावस्या का महत्व

श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन, अश्विन अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या के रूप में जाना जाता है। यह उन सभी पितरों के लिए श्राद्ध करने का दिन है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, या जिनका श्राद्ध किसी कारणवश नहीं हो पाया हो। इस दिन किए गए श्राद्ध से सभी ज्ञात और अज्ञात पितरों को शांति मिलती है।

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