भारतीय संत परंपरा में अनेकों ऐसे नाम हैं जिन्होंने अपनी भक्ति और प्रेम से ईश्वर को भी विवश कर दिया। इन्हीं में से एक हैं, दक्षिण भारत की महान संत कवयित्री और भगवान विष्णु की अनन्य भक्त, अन्दल। हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को अन्दल जयंती मनाई जाती है, जो इस वर्ष, 2025 में 28 जुलाई, सोमवार को पड़ेगी। यह दिन उनकी अद्भुत भक्ति, समर्पण और ईश्वर के प्रति अगाध प्रेम का प्रतीक है, जिसने उन्हें स्वयं भगवान रंगनाथ (विष्णु का एक रूप) की वामांगी बनने का सौभाग्य प्रदान किया।
कौन थीं अन्दल? एक दिव्य अवतार की कथा
अन्दल को ‘गोदा’ या ‘गोदा देवी’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है ‘पृथ्वी से उत्पन्न हुई’। उनका जन्म आज से लगभग 5000 साल पहले तमिलनाडु के श्रीविल्लिपुत्तूर नामक स्थान पर हुआ था। वे विष्णुचित्त (पेरियाझवार) नामक एक परम वैष्णव संत को एक तुलसी के पौधे के नीचे मिली थीं। विष्णुचित्त ने उन्हें अपनी पुत्री के रूप में पाला और उन्हें भगवान विष्णु की भक्ति में लीन कर दिया।
बचपन से ही अन्दल भगवान विष्णु के प्रति अगाध प्रेम रखती थीं। वे स्वयं को उनकी प्रेमिका मानती थीं और उनकी सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनकी भक्ति इतनी अनूठी थी कि वे भगवान को अर्पित करने से पहले, स्वयं उन मालाओं को धारण कर लेती थीं जो मंदिर के लिए बनाई जाती थीं। इस प्रकार, वे ‘सूडीकोडुत्टा सुदरकोडी’ (वह जिन्होंने पहले पहनकर ही फूल दिए) के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
अन्दल, कैसे बन गईं विष्णु की वामांगी?
अन्दल की भक्ति का चरमोत्कर्ष तब आया जब उन्होंने भगवान रंगनाथ से विवाह करने का संकल्प लिया। वे केवल उन्हीं से विवाह करना चाहती थीं। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर, स्वयं भगवान रंगनाथ श्रीविल्लिपुत्तूर आए और अन्दल को श्रीरंगम ले जाने का आदेश दिया। श्रीरंगम में, अन्दल ने मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश किया और भगवान रंगनाथ की मूर्ति में समाहित हो गईं, हमेशा के लिए उनकी वामांगी बन गईं। यह घटना भारतीय आध्यात्मिकता में भक्ति की पराकाष्ठा और ईश्वर के साथ भक्त के एकाकार होने का अद्वितीय उदाहरण है।
अन्दल जयंती 2025 – तिथि और शुभ मुहूर्त
• अन्दल जयंती 2025: 28 जुलाई 2025, सोमवार
• आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी प्रारंभ: 27 जुलाई 2025, रात 08:35 बजे
• आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी समाप्त: 28 जुलाई 2025, रात 10:15 बजे
पूजा विधि – अन्दल जयंती पर कैसे करें आराधना?
अन्दल जयंती का दिन अन्दल देवी और भगवान विष्णु के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने का एक विशेष अवसर है। इस दिन की पूजा विधि अत्यंत सरल और भक्तिपूर्ण है:
- जयंती के दिन प्रातःकाल उठकर पवित्र स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर के पूजा स्थान को स्वच्छ करें और अन्दल देवी तथा भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। यदि अन्दल देवी की प्रतिमा उपलब्ध न हो, तो भगवान विष्णु की प्रतिमा पर्याप्त है।
- पूजा प्रारंभ करने से पूर्व हाथ में जल लेकर व्रत या पूजा का संकल्प लें।
- अन्दल देवी को तुलसी के पत्ते और ताजे फूल (विशेषकर चमेली और गुलाब) अत्यंत प्रिय थे। भगवान को अर्पित करने से पहले, कुछ फूल स्वयं धारण कर लें, यह अन्दल की भक्ति का स्मरण कराएगा। रंग-बिरंगी मालाएं विशेष रूप से अर्पित करें।
- भगवान को दूध, दही, घी, मिश्री, फल और मीठे पकवानों का भोग लगाएं। चावल से बनी खीर और मोदक विशेष रूप से पसंद किए जाते हैं।
- अन्दल द्वारा रचित ‘तिरुप्पावै’ और ‘नाचियार तिरुमोझी’ का पाठ करें। ये उनकी अनुपम भक्ति और भगवान के प्रति प्रेम का सार हैं। इन स्तोत्रों का पाठ करने से मन को शांति मिलती है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
- शुद्ध घी का दीपक जलाएं और सुगंधित धूपबत्ती अर्पित करें।
- अन्दल देवी और भगवान विष्णु की आरती करें।
- भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें, जैसे “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “श्रीमन नारायण नारायण नारायण”।
- पूजा के उपरांत प्रसाद परिवार के सदस्यों और मित्रों में वितरित करें।
आध्यात्मिक महत्व – अन्दल जयंती क्यों है विशेष?
अन्दल जयंती केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि गहन आध्यात्मिक महत्व का दिन है:
- अन्दल का जीवन और उनकी भक्ति हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम और समर्पण ईश्वर को भी भक्त के वश में कर सकता है। वे भक्त-भगवान संबंध की एक उत्कृष्ट मिसाल हैं।
- अन्दल उस स्त्री शक्ति का प्रतीक हैं जिसने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और भक्ति से सामाजिक बंधनों को तोड़कर ईश्वर को प्राप्त किया। वे महिला संतों और कवयित्रियों के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं।
- अन्दल ने अपना सर्वस्व भगवान को समर्पित कर दिया था। उनकी जयंती हमें सिखाती है कि जब हम स्वयं को पूर्ण रूप से ईश्वर को समर्पित करते हैं, तो वे हमें अपनी शरण में ले लेते हैं।
- अन्दल का मार्ग ज्ञान या कर्म का नहीं, बल्कि विशुद्ध प्रेम का मार्ग था। वे प्रेम भक्ति की शक्ति का प्रमाण हैं।
- अन्दल का भगवान में समाहित होना, जीव के परमात्मा से एकाकार होने का प्रतीक है। यह मोक्ष की अवधारणा को एक भावनात्मक और व्यक्तिगत स्तर पर दर्शाता है।
- अन्दल की रचनाएं ‘तिरुप्पावै’ और ‘नाचियार तिरुमोझी’ तमिल साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। ये न केवल भक्तिपूर्ण हैं बल्कि साहित्यिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
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