॥ दोहा ॥
सुवन केहरी जेवर, सुत महाबली रनधीर ।
बन्दौं सुत रानी बाछला, विपत निवारण वीर ॥
जय जय जय चौहान, वन्स गूगा वीर अनूप ।
अनंगपाल को जीतकर, आप बने सुर भूप ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय जाहर रणधीरा ।
पर दुख भंजन बागड़ वीरा ॥१॥
गुरु गोरख का है वरदानी ।
जाहरवीर जोधा लासानी ॥२॥
गौरवरण मुख महा विशाला ।
माथे मुकट घुंघराले बाला ॥३॥
कांधे धनुष गले तुलसी माला ।
कमर कृपान रक्षा को डाला ॥४॥
जन्में गूगावीर जग जाना ।
ईसवी सन हजार दरमियाना ॥५॥
बल सागर गुण निधि कुमारा ।
दुखी जनों का बना सहारा ॥६॥
बागड़ पति बाछला नन्दन ।
जेवर सुत हरि भक्त निकन्दन ॥७॥
जेवर राव का पुत्र कहाये ।
माता पिता के नाम बढ़ाये ॥८॥
पूरन हुई कामना सारी ।
जिसने विनती करी तुम्हारी ॥९॥
सन्त उबारे असुर संहारे ।
भक्त जनों के काज संवारे ॥१०॥
गूगावीर की अजब कहानी ।
जिसको ब्याही श्रीयल रानी ॥११॥
बाछल रानी जेवर राना ।
महादुःखी थे बिन सन्ताना ॥१२॥
भंगिन ने जब बोली मारी ।
जीवन हो गया उनको भारी ॥१३॥
सूखा बाग पड़ा नौलक्खा ।
देख-देख जग का मन दुक्खा ॥१४॥
कुछ दिन पीछे साधू आये ।
चेला चेली संग में लाये ॥१५॥
जेवर राव ने कुआ बनवाया ।
उद्घाटन जब करना चाहा ॥१६॥
खारी नीर कुए से निकला ।
राजा रानी का मन पिघला ॥१७॥
रानी तब ज्योतिषी बुलवाया ।
कौन पाप मैं पुत्र न पाया ॥१८॥
कोई उपाय हमको बतलाओ ।
उन कहा गोरख गुरु मनाओ ॥१९॥
गुरु गोरख जो खुश हो जाई ।
सन्तान पाना मुश्किल नाई ॥२०॥
बाछल रानी गोरख गुन गावे ।
नेम धर्म को न बिसरावे ॥२१॥
करे तपस्या दिन और राती ।
एक वक्त खाय रूखी चपाती ॥२२॥
कार्तिक माघ में करे स्नाना ।
व्रत इकादसी नहीं भुलाना ॥२३॥
पूरनमासी व्रत नहीं छोड़े ।
दान पुण्य से मुख नहीं मोड़े ॥२४॥
चेलों के संग गोरख आये ।
नौलखे में तम्बू तनवाये ॥२५॥
मीठा नीर कुए का कीना ।
सूखा बाग हरा कर दीना ॥२६॥
मेवा फल सब साधु खाए ।
अपने गुरु के गुन को गाये ॥२७॥
औघड़ भिक्षा मांगने आए ।
बाछल रानी ने दुख सुनाये ॥२८॥
औघड़ जान लियो मन माहीं ।
तप बल से कुछ मुश्किल नाहीं ॥२९॥
रानी होवे मनसा पूरी ।
गुरु शरण है बहुत जरूरी ॥३०॥
बारह बरस जपा गुरु नामा ।
तब गोरख ने मन में जाना ॥३१॥
पुत्र देन की हामी भर ली ।
पूरनमासी निश्चय कर ली ॥३२॥
काछल कपटिन गजब गुजारा ।
धोखा गुरु संग किया करारा ॥३३॥
बाछल बनकर पुत्र पाया ।
बहन का दरद जरा नहीं आया ॥३४॥
औघड़ गुरु को भेद बताया ।
तब बाछल ने गूगल पाया ॥३५॥
कर परसादी दिया गूगल दाना ।
अब तुम पुत्र जनो मरदाना ॥३६॥
लीली घोड़ी और पण्डतानी ।
लूना दासी ने भी जानी ॥३७॥
रानी गूगल बाट के खाई ।
सब बांझों को मिली दवाई ॥३८॥
नरसिंह पंडित लीला घोड़ा ।
भज्जु कुतवाल जना रणधीरा ॥३९॥
रूप विकट धर सब ही डरावे ।
जाहरवीर के मन को भावे ॥४०॥
भादों कृष्ण जब नौमी आई ।
जेवरराव के बजी बधाई ॥४१॥
विवाह हुआ गूगा भये राना ।
संगलदीप में बने मेहमाना ॥४२॥
रानी श्रीयल संग परे फेरे ।
जाहर राज बागड़ का करे ॥४३॥
अरजन सरजन काछल जने ।
गूगा वीर से रहे वे तने ॥४४॥
दिल्ली गए लड़ने के काजा ।
अनंग पाल चढ़े महाराजा ॥४५॥
उसने घेरी बागड़ सारी ।
जाहरवीर न हिम्मत हारी ॥४६॥
अरजन सरजन जान से मारे ।
अनंगपाल ने शस्त्र डारे ॥४७॥
चरण पकड़कर पिण्ड छुड़ाया ।
सिंह भवन माड़ी बनवाया ॥४८॥
उसीमें गूगावीर समाये ।
गोरख टीला धूनी रमाये ॥४९॥
पुण्य वान सेवक वहाँ आये ।
तन मन धन से सेवा लाए ॥५०॥
मनसा पूरी उनकी होई ।
गूगावीर को सुमरे जोई ॥५१॥
चालीस दिन पढ़े जाहर चालीसा ।
सारे कष्ट हरे जगदीसा ॥५२॥
दूध पूत उन्हें दे विधाता ।
कृपा करे गुरु गोरखनाथ ॥५३॥
॥ इति श्री जाहरवीर चालीसा संपूर्णम् ॥
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