श्री कुन्थुनाथ भगवान जैन धर्म के 17वें तीर्थंकर हैं, जिनकी आराधना से आत्मशुद्धि, शांति और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। जैन श्रद्धालु कुन्थुनाथ भगवान की आरती विशेष रूप से रविवार और पर्व-दिवसों पर करते हैं। यदि आप श्री कुन्थुनाथ आरती PDF, सही विधि (vidhi) और इससे मिलने वाले लाभ (laabh) की जानकारी खोज रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए है।
|| श्री कुन्थुनाथ आरती (Kunthunath Bhagwan Aarti PDF) ||
श्री कुन्थुनाथ प्रभु की हम आरती करते हैं
आरती करके जनम जनम के पाप विनशते हैं ।
सांसारिक सुख के संग आत्मिक सुख भी मिलते हैं
श्री कुन्थुनाथ प्रभु की हम आरती करते हैं ।
जब गर्भ में प्रभु तुम आये
पितु सुरसेन श्री कांता माँ हर्षाये
सुर वंदन करने आये
श्रावण वदि दशमी, गर्भ कल्याण मनाये
हस्तिनापुरी उस पावन धरती को नमते हैं
आरती करके जनम जनम के पाप विनशते हैं ।
सांसारिक सुख के संग आत्मिक सुख भी मिलते हैं
वैसाख सुदी एकम में,
जन्मे जब सुर गृह में बाजे बजते थे
सुर शैल शिखर ले जाकर
सब इन्द्र सपारी करे नवहन जिन शिशु पर
जन्मकल्यानक से पावन उस गिरी को जजते हैं
आरती करके जनम जनम के पाप विनशते हैं ।
सांसारिक सुख के संग आत्मिक सुख भी मिलते हैं
|| इति श्री कुन्थुनाथ आरती ||
|| श्री कुन्थुनाथ आरती विधि (पूजा विधि) ||
- आरती से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन को शांत और पवित्र रखें।
- पूजा के लिए एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें। यह आपके घर का पूजा स्थल हो सकता है।
- आरती के लिए आवश्यक सामग्री एकत्रित करें: घी या तेल का दीपक (कम से कम 5 बत्तियों वाला), सुगंधित धूप या अगरबत्ती, ताजे फूल (जैसे गुलाब, गेंदा), साबुत चावल, फल, मिठाई या सूखे मेवे का प्रसाद, एक जल कलश, छोटी घंटी, आरती की सभी सामग्री रखने के लिए एक थाली।
- भगवान कुन्थुनाथ की प्रतिमा या चित्र को एक स्वच्छ चौकी पर स्थापित करें। सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें। धूप या अगरबत्ती जलाएं। भगवान कुन्थुनाथ को जल अर्पित करें। फूल, अक्षत और नैवेद्य चढ़ाएं।
- अब आप घंटी बजाते हुए, पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ श्री कुन्थुनाथ आरती का गायन करें। आरती के दौरान दीपक को भगवान के समक्ष गोलाकार घुमाएं।
- आरती समाप्त होने के बाद, भगवान से प्रार्थना करें और अपनी मनोकामनाएं व्यक्त करें। आरती का प्रकाश सभी उपस्थित लोगों को दिखाएं ताकि वे उसे ग्रहण कर सकें। अंत में, प्रसाद वितरित करें।
|| श्री कुन्थुनाथ आरती के लाभ (Laabh) ||
- आरती का नियमित पाठ मन को शांत और स्थिर करता है, जिससे तनाव और चिंताएं कम होती हैं।
- यह घर और आसपास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
- आरती के माध्यम से भक्त भगवान के गुणों का स्मरण करते हैं, जिससे उनकी आध्यात्मिक प्रगति होती है और आत्मज्ञान की प्राप्ति में सहायता मिलती है।
- सच्ची श्रद्धा और भक्ति से की गई आरती से भगवान कुन्थुनाथ प्रसन्न होते हैं और भक्तों की न्यायोचित मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- जैन धर्म में माना जाता है कि भक्तिपूर्ण उपासना से अशुभ कर्मों का क्षय होता है।
- आरती का पाठ करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
- नियमित आरती से भगवान के प्रति श्रद्धा और भक्ति गहरी होती है।
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