श्री सुमतिनाथ चालीसा का पाठ करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है। यह चालीसा जैन धर्म के पांचवें तीर्थंकर, भगवान सुमतिनाथ को समर्पित है। इसका नियमित पाठ करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है, नकारात्मक विचार दूर होते हैं और आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है। यह चालीसा विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभदायक है जो ज्ञान की खोज में हैं या जिन्हें अपनी बुद्धि और स्मृति को बढ़ाने की आवश्यकता है।
|| श्री सुमतिनाथ चालीसा (Sumtinath Chalisa PDF) ||
श्री सुमतिनाथ का करूणा निर्झर,
भव्य जनो तक पहूँचे झर–झर ।
नयनो में प्रभु की छवी भऱ कर,
नित चालीसा पढे सब घर–घर ।।
जय श्री सुमतिनाथ भगवान,
सब को दो सदबुद्धि–दान ।
अयोध्या नगरी कल्याणी,
मेघरथ राजा मंगला रानी ।।
दोनो के अति पुण्य प्रजारे,
जो तीर्थंकर सुत अवतारे ।
शुक्ला चैत्र एकादशी आई,
प्रभु जन्म की बेला आई ।।
तीन लोक में आनंद छाया,
नारकियों ने दुःख भुलाया ।
मेरू पर प्रभु को ले जा कर,
देव न्हवन करते हर्षाकार ।।
तप्त स्वर्ण सम सोहे प्रभु तन,
प्रगटा अंग–प्रत्संग में योवन ।
ब्याही सुन्दर वधुएँ योग,
नाना सुखों का करते भोग ।।
राज्य किया प्रभु ने सुव्यवस्थित,
नही रहा कोई शत्रु उपस्थित ।
हुआ एक दिन वैराग्य जब,
नीरस लगने लगे भोग सब ।।
जिनवर करते आत्म चिन्तन,
लौकान्तिक करते अनुमोदन ।
गए सहेतुक नावक वन में,
दीक्षा ली मध्याह्म समय में ।।
बैसाख शुक्ला नवमी का शुभ दिन,
प्रभु ने किया उपवास तीन दिन ।
हुआ सौमनस नगर विहार,
धुम्नधुति ने दिया आहार ।।
बीस वर्ष तक किया तप घोर,
आलोकित हुए लोका लोक ।
एकादशी चैत्र की शुक्ला,
धन्य हुई केवल–रवि निकाला ।।
समोशरण में प्रभु विराजे,
दृवादश कोठे सुन्दर साजें ।
दिव्यध्वनि जब खिरी धरा पर,
अनहद नाद हुआ नभ उपर ।।
किया व्याख्यान सप्त तत्वो का,
दिया द्रष्टान्त देह–नौका का ।
जीव–अजीव–आश्रव बन्ध,
संवर से निर्जरा निर्बन्ध ।।
बन्ध रहित होते है सिद्ध,
है यह बात जगत प्रसिद्ध ।
नौका सम जानो निज देह,
नाविक जिसमें आत्म विदेह ।।
नौका तिरती ज्यो उदधि में,
चेतन फिरता भवोदधि में ।
हो जाता यदि छिद्र नाव में,
पानी आ जाता प्रवाह में ।।
ऐसे ही आश्रव पुद्गल में,
तीन योग से हो प्रतीपल में ।
भरती है नौका ज्यो जल से,
बँधती आत्मा पुण्य पाप से ।।
छिद्र बन्द करना है संवर,
छोड़ शुभाशुभ–शुद्धभाव धर ।
जैसे जल को बाहर निकाले,
संयम से निर्जरा को पाले ।।
नौका सुखे ज्यों गर्मी से,
जीव मुक्त हो ध्यानाग्नि से ।
ऐसा जान कर करो प्रयास,
शाश्वत सुख पाओ सायास ।।
जहाँ जीवों का पुन्य प्रबल था,
होता वही विहार स्वयं था ।
उम्र रही जब एक ही मास,
गिरि सम्मेद पे किया निवास ।।
शुक्ल ध्यान से किया कर्मक्षय,
सन्धया समय पाया पद अक्षय ।
चैत्र सुदी एकादशी सुन्दर,
पहुँच गए प्रभु मुक्ति मन्दिर ।
चिन्ह प्रभु का चकवा जान,
अविचल कूट पूजे शुभथान ।।
इस असार संसार में,
सार नही है शेष ।
अरुणा चालीसा पढे,
रहे विषाद न लेश ।।
|| श्री सुमतिनाथ चालीसा पाठ की विधि ||
- सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान सुमतिनाथ की प्रतिमा या चित्र के सामने बैठें।
- मन को शांत करें और भगवान का ध्यान करें।
- चालीसा का पाठ शुरू करने से पहले, भगवान सुमतिनाथ से आशीर्वाद लें।
- चालीसा का पाठ स्पष्ट उच्चारण के साथ करें।
- पाठ के बाद भगवान से अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करें।
|| श्री सुमतिनाथ चालीसा के लाभ ||
श्री सुमतिनाथ चालीसा का नियमित पाठ करने के कई लाभ हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- यह चालीसा छात्रों और ज्ञान की खोज में लगे लोगों के लिए अत्यंत लाभकारी है।
- पाठ करने से मन शांत रहता है और तनाव कम होता है।
- नकारात्मक विचार दूर होते हैं और जीवन में सकारात्मकता आती है।
- यह चालीसा आत्म-विश्वास को बढ़ाने में मदद करती है।
- पाठ करने से जीवन में आने वाली बाधाएं और कठिनाइयां दूर होती हैं।
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