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वैकुण्ठ एकादशी की संपूर्ण पूजा विधि – 5 सरल चरणों में करें श्री हरि को प्रसन्न और पाएं बैकुंठ धाम।

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हिंदू धर्म में, एकादशी तिथि का अपना एक विशेष महत्व है, और जब बात वैकुण्ठ एकादशी की आती है, तो इसका आध्यात्मिक मूल्य (Spiritual value) कई गुना बढ़ जाता है। पौष मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को ‘मोक्षदा एकादशी’ और ‘पुत्रदा एकादशी’ (यदि यह पौष माह में पड़े) के नाम से भी जाना जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु का निवास स्थान, वैकुण्ठ धाम का ‘वैकुण्ठ द्वार’ पृथ्वीवासियों के लिए खुल जाता है। यह दिन भक्तों को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाकर साक्षात् वैकुण्ठ की ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करता है। इस पवित्र तिथि पर सच्ची श्रद्धा और विधि-विधान से की गई पूजा-अर्चना श्री हरि विष्णु को तुरंत प्रसन्न करती है। आइए, जानते हैं वह संपूर्ण पूजा विधि, जिसे आप केवल 5 सरल चरणों में पूरा कर सकते हैं।

वैकुण्ठ एकादशी का महत्व (Significance)

माना जाता है कि वैकुण्ठ एकादशी का व्रत रखने से, व्यक्ति को वर्ष की 23 एकादशियों के व्रत का फल मिलता है। यह व्रत पापों का नाश करता है और मन, वचन, कर्म की शुद्धता प्रदान करता है। दक्षिण भारत के मंदिरों, विशेषकर तिरुपति और श्रीरंगम में, इस दिन ‘स्वर्ग वासल’ या ‘परमपद वासल’ (Vaikuntha Dwara) खोला जाता है, जिसमें से गुजरना मोक्ष (Salvation) प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।

वैकुण्ठ एकादशी की संपूर्ण पूजा विधि: 5 सरल चरण (5 Simple Steps)

वैकुण्ठ एकादशी का व्रत दशमी तिथि (एक दिन पहले) से शुरू होकर द्वादशी तिथि (एक दिन बाद) तक चलता है। पूजा-पाठ के लिए आप इन 5 चरणों का अनुसरण कर सकते हैं:

चरण 1: संकल्प एवं शुद्धिकरण (Sankalp and Purification)

  • समय: एकादशी के सूर्योदय से पूर्व।
  • पवित्र स्नान – सूर्योदय से पहले उठकर गंगाजल मिले पानी से स्नान करें।
  • व्रत संकल्प – स्वच्छ वस्त्र पहनकर, हाथ में जल, अक्षत और फूल लेकर भगवान विष्णु के सामने खड़े हों और व्रत का संकल्प (Pledge) लें। कहें, “हे प्रभु! मैं वैकुण्ठ एकादशी का निर्जला/फलाहार व्रत कर रहा/रही हूँ। आप मुझे इसे निर्विघ्न पूरा करने की शक्ति प्रदान करें।”
  • मंदिर की तैयारी – पूजा स्थल को साफ करें। यदि संभव हो तो घर के उत्तर-पूर्वी कोने (North-East Corner) में भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

चरण 2: श्री हरि का आह्वान (Invocation of Lord Hari)

  • समय – शुभ मुहूर्त में।
  • स्थापना – भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल का मिश्रण) से अभिषेक (Abhishek) कराएं।
  • सजावट – उन्हें पीले वस्त्र, पीले फूल, चंदन, रोली, अक्षत, और तुलसी दल (Tulsi leaves) अर्पित करें। तुलसी दल के बिना विष्णु पूजा अधूरी मानी जाती है।
  • दीप प्रज्ज्वलन – एक घी का दीपक जलाएं और धूप-अगरबत्ती दिखाएं। इस दिन दीपक में तिल का तेल डालना अत्यंत शुभ माना जाता है।

चरण 3: विशेष अर्चना और मंत्र जाप (Special Worship and Mantra Chanting)

  • समय – दिन भर।
  • मंत्र जाप – यह एकादशी का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। पूरे दिन, जितना संभव हो, भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
  • मुख्य मंत्र – “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
  • अन्य मंत्र – “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।”
  • विष्णु सहस्रनाम (Vishnu Sahasranama) का पाठ या श्रवण करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • कथा श्रवण – वैकुण्ठ एकादशी (या संबंधित एकादशी जैसे मोक्षदा एकादशी) की व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
  • व्रत पालन – अन्न और चावल का सेवन सख्त वर्जित (Strictly prohibited) है। सामर्थ्य अनुसार निर्जला व्रत रखें, अन्यथा फलाहार करें।

चरण 4: भोग और सात्विक दान (Offering and Satvik Charity)

  • समय – संध्या काल या आरती के समय।
  • भोग – भगवान को फल, पंचामृत, मेवा और विशेष रूप से तुलसी मिश्रित भोग लगाएं।
  • दीपदान – संध्याकाल में, तुलसी के पौधे के पास या मंदिर में एक अतिरिक्त दीपक अवश्य जलाएं।
  • दान-पुण्य – इस पवित्र दिन पर दान का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। गरीबों को अन्न (चावल रहित), गर्म कपड़े या धन का दान करें। गौ-सेवा (Cow service) करना भी अत्यंत शुभ फलदायी है।

चरण 5: पारण विधि (Breaking the Fast – Paran)

  • समय – द्वादशी तिथि (अगले दिन) के शुभ मुहूर्त में।
  • पारण का समय – व्रत तोड़ने को ‘पारण’ कहते हैं। यह द्वादशी तिथि के सूर्योदय के बाद और हरि वासर (व्रत पारण का निषिद्ध समय) समाप्त होने के बाद ही किया जाता है।
  • पारण की क्रिया – पारण के समय सबसे पहले भगवान विष्णु को भोग लगाए हुए पदार्थ ग्रहण करें। इसके बाद ही सामान्य भोजन करें। भोजन सात्विक होना चाहिए।
  • ब्राह्मण भोजन – पारण से पहले किसी ब्राह्मण, पुरोहित या जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

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