वासुदेव द्वादशी 2025 – यह पावन पर्व 7 जुलाई 2025, सोमवार को मनाया जाएगा। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को पड़ने वाला यह व्रत भगवान श्री कृष्ण, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। देवशयनी एकादशी के अगले दिन पड़ने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ भी होता है। संतान प्राप्ति और सुख-समृद्धि की कामना के लिए इस व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन विधि-विधान से पूजा-अर्चना और नियमों का पालन करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पूजा सामग्री में तुलसी, फल, फूल, पंचामृत आदि शामिल होते हैं।
सनातन धर्म में अनेक ऐसे व्रत और त्यौहार हैं जो भगवान विष्णु को समर्पित हैं, और इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण व्रत है वासुदेव द्वादशी। यह व्रत भगवान वासुदेव (भगवान कृष्ण के पिता वसुदेव) और माता देवकी को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने पर संतान सुख की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। आइए, इस लेख में हम वासुदेव द्वादशी 2025 की तिथि, व्रत विधि, नियमों और आवश्यक पूजा सामग्री की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं।
वासुदेव द्वादशी 2025 – तिथि और महत्व
वासुदेव द्वादशी का पर्व हर साल श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। साल 2025 में वासुदेव द्वादशी सोमवार, 07 जुलाई 2025 को मनाई जाएगी।
इस दिन का विशेष महत्व उन दंपत्तियों के लिए है जो संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं। यह व्रत भगवान कृष्ण के जन्म से पहले उनके माता-पिता के संघर्ष और तपस्या को याद दिलाता है। इस दिन व्रत रखने से संतान संबंधी बाधाएं दूर होती हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
वासुदेव द्वादशी व्रत विधि
वासुदेव द्वादशी का व्रत अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाना चाहिए। यहाँ व्रत की पूरी विधि विस्तार से बताई गई है:
- द्वादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद, हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प करें। संकल्प लेते समय कहें, “हे भगवान वासुदेव और माता देवकी, मैं आज आपकी प्रसन्नता और संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत कर रहा/रही हूँ। मेरा यह व्रत निर्विघ्न संपन्न हो।”
- घर के मंदिर या किसी साफ-सुथरी जगह पर भगवान वासुदेव और माता देवकी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। यदि प्रतिमा उपलब्ध न हो तो भगवान कृष्ण और देवकी की बाल स्वरूप की तस्वीर भी रखी जा सकती है।
- एक तांबे या पीतल के कलश में जल भरकर रखें। कलश के मुख पर आम के पत्ते लगाकर उस पर नारियल रखें। कलश के नीचे थोड़ा चावल या जौ रखें।
- पूजा आरंभ – सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें। भगवान वासुदेव और माता देवकी को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण) से स्नान कराएं। इसके बाद, उन्हें शुद्ध जल से स्नान कराएं। उन्हें नए वस्त्र या मौली (कलावा) अर्पित करें। चंदन का तिलक लगाएं। पुष्प, माला, तुलसी दल और दूर्वा अर्पित करें। धूप और दीप दिखाएं। नैवेद्य में फल, मिठाई (विशेषकर माखन-मिश्री या पंजीरी) और पंचामृत अर्पित करें। वासुदेव और देवकी माता से जुड़े भजन या मंत्रों का जाप करें। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- वासुदेव द्वादशी की व्रत कथा का श्रद्धापूर्वक पाठ करें या सुनें। यह कथा भगवान कृष्ण के जन्म और उनके माता-पिता के संघर्ष पर आधारित होती है।
- पूजा के अंत में भगवान वासुदेव और माता देवकी की आरती करें। आरती के बाद प्रसाद सभी में वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें।
- दिन भर फलाहार पर रहें या अपनी शारीरिक क्षमतानुसार निर्जल व्रत करें। कुछ लोग इस दिन रात में जागरण कर भगवान का भजन-कीर्तन करते हैं।
- द्वादशी तिथि समाप्त होने पर, त्रयोदशी तिथि को प्रातः काल स्नान करके ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करके व्रत का पारण करें।
वासुदेव द्वादशी व्रत के नियम
व्रत के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है:
- इस दिन पूर्ण सात्विक भोजन करें। लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि का सेवन बिल्कुल न करें।
- व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- किसी से भी कटु वचन न बोलें और मन को शांत रखें।
- व्रत के दौरान शारीरिक और मानसिक स्वच्छता बनाए रखें। दिन में सोने से बचें।
- मन में क्रोध, लोभ या ईर्ष्या जैसे नकारात्मक विचारों को न आने दें।
- यदि आप पूर्ण व्रत कर रहे हैं, तो अन्न का त्याग करें।
वासुदेव द्वादशी पूजा सामग्री की सूची
पूजा शुरू करने से पहले सभी आवश्यक सामग्री एकत्र कर लें ताकि पूजा में कोई बाधा न आए:
- भगवान वासुदेव और माता देवकी की प्रतिमा या चित्र
- चौकी या पाटा (मूर्ति स्थापित करने के लिए)
- लाल या पीला वस्त्र (चौकी पर बिछाने के लिए)
- कलश (तांबे या पीतल का)
- जल (कलश में भरने के लिए)
- आम के पत्ते
- नारियल
- चावल या जौ
- दीपक और बाती
- घी या तेल
- माचिस
- धूप और धूपदानी
- अगरबत्ती
- चंदन (पाउडर या पेस्ट)
- रोली या कुमकुम
- अक्षत (चावल)
- पुष्प (गुलाब, गेंदा, कमल आदि)
- तुलसी दल
- दूर्वा
- माला
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल)
- गंगाजल (शुद्ध जल के लिए)
- नैवेद्य (फल, मिठाई, माखन-मिश्री, पंजीरी)
- पान के पत्ते और सुपारी
- लौंग और इलायची
- दक्षिणा (पंडित जी या ब्राह्मणों के लिए)
- एक छोटा घंटा
- कपूर
- कलावा (मौली)
- लाल चुनरी (माता देवकी के लिए)
- व्रत कथा की पुस्तक
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