विज्ञान भैरव तंत्र देवी और भैरव के संवाद के रूप में प्रकट हुआ है, जिसमें शिव को रचयिता माना गया है। इसमें १६३ छंद हैं, जिनमें तंत्र-साधना के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ योग, ध्यान और आत्मज्ञान के मार्गों का विस्तृत विवेचन करता है। इसमें ११२ धारणाओं का वर्णन है, जो साधक के आत्मिक उत्थान में सहायक होती हैं।
विज्ञान भैरव तंत्र पर दो प्रमुख टीकाएँ उपलब्ध हैं: आचार्य क्षेमराज की टीका और भट्ट आनन्द की ‘विज्ञानकौमुदी-दीपिका’। क्षेमराज की टीका २४वें छंद तक ही उपलब्ध है, जबकि भट्ट आनन्द की टीका पूरी है। क्षेमराज ने अपने गुरु अभिनवगुप्त के मार्गदर्शन में इस ग्रंथ पर टीका लिखी, जो उनके पाण्डित्य का प्रमाण है। शिवोपाध्याय ने २५वें छंद से १६३वें छंद तक की टीका लिखी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने क्षेमराज के अधूरे कार्य को पूरा किया।