भारतीय संस्कृति में अन्न को ‘ब्रह्म’ (Brahma) के समान पूजनीय माना गया है। यह सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि जीवन का आधार, ऊर्जा और साक्षात देवी का रूप है। और जब हम अन्न की बात करते हैं, तो अनायास ही ‘मां अन्नपूर्णा’ (Maa Annapurna) का नाम मुख पर आ जाता है।
मार्गशीर्ष माह (Margashirsha Month) की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली अन्नपूर्णा जयंती, इसी दिव्य मातृशक्ति को समर्पित है। लेकिन क्या आप जानते हैं, इस जयंती से जुड़ी एक ऐसी कथा है, जब स्वयं देवों के देव महादेव (Mahadev) भगवान शिव को भी भिक्षा पात्र लेकर अपनी पत्नी, माता पार्वती के इस रूप से अन्न मांगना पड़ा था? यह कथा केवल देवी की महिमा नहीं, बल्कि अन्न के सर्वोच्च महत्व (Supreme Importance) का भी एक अनूठा पाठ है। आइए, जानते हैं अन्नपूर्णा जयंती की वह अनसुनी और अद्भुत कथा, जो हमें जीवन के सबसे बड़े सत्य से परिचित कराती है।
अन्न को ‘माया’ बताने का भ्रम (The Illusion of Calling Food ‘Maya’)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय की बात है, जब कैलाश पर भगवान शिव गहन चिंतन (Deep Contemplation) में लीन थे। उन्होंने अपनी अर्धांगिनी माता पार्वती से कहा कि यह सम्पूर्ण संसार एक ‘माया’ (Illusion) है। संसार में जो कुछ भी है, वह नश्वर है, जिसमें अन्न भी शामिल है। उन्होंने अन्न और भौतिक जीवन की आवश्यकताओं को कम महत्व (Less Important) का बताया।
भोलेनाथ के मुख से ऐसी बातें सुनकर माता पार्वती को गहरा दुःख हुआ। उन्होंने सोचा, “यदि मेरे स्वामी अन्न को मात्र मोह और माया बताते हैं, तो मैं उन्हें यह दिखाऊंगी कि संसार के पालन-पोषण में मेरी शक्ति और अन्न का क्या वास्तविक महत्व है।”
सृष्टि से अन्न का लोप और हाहाकार (Disappearance of Food and Chaos in Creation)
माता पार्वती ने भगवान शिव की इस बात को चुनौती के रूप में लिया और संसार से ‘अन्न’ को समेटने का निश्चय किया। उन्होंने अपने दिव्य प्रभाव से धरती पर से सारा अन्न और अनाज गुप्त (Hidden) कर दिया।
नतीजा भयानक था।
एक क्षण में ही, पूरी पृथ्वी पर अकाल (Famine) छा गया। खेत बंजर हो गए, नदियों का जल सूखने लगा और कहीं भी अन्न का एक दाना भी शेष नहीं रहा। इंसान से लेकर पशु-पक्षी तक, सभी भूख से त्राहि-त्राहि करने लगे। देवताओं, ऋषि-मुनियों और साधारण मनुष्यों का जीवन संकट में आ गया। हर तरफ केवल भूख और निराशा (Hunger and Despair) का साम्राज्य था।
शिव बने भिक्षुक और काशी की ओर प्रस्थान (Shiva Becomes a Beggar and Journeys to Kashi)
जब भूख की ज्वाला ब्रह्मांड के सबसे बड़े योगी, भगवान शिव तक पहुँची, तब उन्हें अपने कथन की त्रुटि (Mistake) का बोध हुआ। उन्हें यह एहसास हुआ कि ज्ञान और वैराग्य (Knowledge and Detachment) अपनी जगह है, लेकिन जीवन के निर्वाह (Sustenance of Life) के लिए अन्न एक अपरिहार्य सत्य (Indispensable Truth) है।
सृष्टि के कल्याण और अपनी भूख शांत करने के लिए, भगवान शिव ने भिक्षुक (Beggars) का रूप धारण किया। उनके एक हाथ में भिक्षापात्र था और दूसरे में उनका त्रिशूल। वह सृष्टि के कोने-कोने में अन्न की तलाश में भटकने लगे, लेकिन उन्हें कहीं कुछ नहीं मिला।
अंत में, उन्हें ज्ञात हुआ कि उनकी शक्ति, उनकी ही प्रिया, माता पार्वती ने ‘अन्नपूर्णा’ (Goddess Annapurna) का रूप धारण कर लिया है और वह काशी (Kashi) नगरी में एक भव्य रसोई (Grand Kitchen) चला रही हैं।
महादेव को मिली ‘अक्षय भिक्षा’ (Mahadev Receives ‘Akshaya Bhiksha’)
जब भगवान शिव भिक्षुक के रूप में काशी पहुँचे, तो उन्होंने माता अन्नपूर्णा को देखा, जो प्रेम और करुणा (Love and Compassion) से भरकर सभी भूखे जीवों को भोजन करा रही थीं। शिव उनके समक्ष गए और अपना भिक्षापात्र आगे कर, बड़े विनम्र भाव (Humble Manner) से बोले:
“हे देवी! मैंने अन्न को ‘माया’ कहकर उसका अनादर किया। अब मेरी आँखें खुल गई हैं। मैंने जान लिया है कि अन्न ही ‘ब्रह्म’ है, जीवन का आधार है। आप इस जगत की पालक (Nurturer) और अन्न की स्वामिनी हैं। मेरी और इस संसार की भूख शांत करें।”
माता अन्नपूर्णा, जो वास्तव में पार्वती ही थीं, अपने स्वामी के पछतावे और सृष्टि के दुःख को देखकर द्रवित हो गईं। उन्होंने मुस्कुराते हुए भगवान शिव के भिक्षापात्र को अक्षय अन्न (Everlasting Food) से भर दिया। उन्होंने भगवान शिव को आशीर्वाद दिया कि अब संसार में कभी अन्न की कमी नहीं होगी।
अन्नपूर्णा जयंती का संदेश और महत्व (Message and Importance of Annapurna Jayanti)
यह घटना मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन हुई थी, इसलिए इस दिन को ‘अन्नपूर्णा जयंती’ के रूप में मनाया जाता है।
मुख्य संदेश
- अन्न का सम्मान – यह कथा हमें सिखाती है कि अन्न का कभी अनादर नहीं करना चाहिए और न ही इसे बर्बाद (Waste) करना चाहिए। भोजन को हमेशा प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए।
- मातृशक्ति की महत्ता – यह दर्शाता है कि भौतिक संसार का संचालन और पोषण ‘मातृशक्ति’ (Matri-Shakti) के बिना असंभव है।
- विनम्रता (Humility) – स्वयं महादेव को भिक्षा मांगनी पड़ी, जो यह सीख देता है कि अहंकार (Ego) से बड़ा कोई शत्रु नहीं है।
जयंती पर क्या करें?
- रसोई की पूजा – इस दिन रसोई घर (Kitchen) को साफ कर, गैस चूल्हे और अन्न भंडार की पूजा करना शुभ माना जाता है।
- अन्न दान – जरूरतमंदों को अन्न का दान (Donation) करना सर्वोत्तम कार्य माना गया है।
- व्रत कथा – माता अन्नपूर्णा की कथा सुनना और ‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं अन्नपूर्णा देव्यै नमः’ मंत्र का जाप करना फलदायी होता है।
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