|| जरा इतना बता दे कान्हा ||
जरा इतना बता दे कान्हा,
कि तेरा रंग काला क्यों ।
श्लोक
श्याम का काला बदन,
और श्याम घटा से काला,
शाम होते ही,
गजब कर गया मुरली वाला ॥
जरा इतना बता दे कान्हा,
कि तेरा रंग काला क्यों,
तु काला होकर भी जग से,
इतना निराला क्यों ॥
मैंने काली रात में जन्म लिया,
और काली गाय का दूध पीया,
कजरे का रंग भी काला,
कमली का रंग भी काला,
इसी लिए मै काला ॥
सखी रोज़ ही घर में बुलाती है,
और माखन बहुत खिलाती है,
सखिओं का दिल भी काला,
इसी लिए मै काला ॥
मैंने काले नाग पर नाच किया,
और काले नाग को नाथ लिया,
नागों का रंग भी काला,
यमुना का रंग भी काला,
इसी लिए मै काला ॥
सावन में बिजली कड़कती है,
बादल भी बहुत बरसतें है,
बादल का रंग भी काला,
बिजली का रंग भी काला,
इसी लिए मै काला ॥
सखी नयनों में कजरा लगाती है,
और नयनों में मुझे बिठाती है,
कजरे का रंग भी काला,
नयनों का रंग भी काला,
इसी लिए मै काला ॥
जरा इतना बता दें कान्हा,
कि तेरा रंग काला क्यों,
तु काला होकर भी जग से,
इतना निराला क्यों ॥
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