|| आरती ||
माँ वाराही जय-जय, मइया वाराही जय-जय |
मणिपूरक मणिबंधन, पाँव सजे तेरे ||
|| ऊँ माँ वाराही जय-जय ||
लाल चुनर माँ ओढ़े, माँग सिंदूर धरती |
दुष्ट दलों को हनती, जग पावन करती ||
|| ऊँ माँ वाराही जय-जय ||
कानन कुंडल शोभत, मुकुट भव्य भाता |
माथ पे बिंदिया राजत, छत्र है छवि पाता ||
|| ऊँ माँ वाराही जय-जय ||
क्षमा राखि मम् अवगुण, ज्ञान ज्योति करिए |
सब विधि होहुँ सहायक, भक्त मान रखिए ||
|| ऊँ माँ वाराही जय-जय ||
सकल निरामय अंबुज, तुम्हरे पग साजे |
केहिं विधि करूँ वंदना, अनहद स्वर बाजे ||
|| ऊँ माँ वाराही जय-जय ||
परमेश्वरि! अतुलेश्वरि! भुवनेश्वरि! माता |
विश्वेश्वरी, अधीश्वरि! जग में विख्याता ||
|| ऊँ माँ वाराही जय-जय ||
रूप वराह धरे प्रभु, तुम तब शक्ति बनीं |
प्रखर दीप्त मुखमंडल, सब जग तेज करी ||
|| ऊँ माँ वाराही जय-जय ||
तुम्हीं चंडिका, काली, महागौरि!राधा |
तुम्हीं चंचला, लक्ष्मी, हर लो सब बाधा ||
|| ऊँ माँ वाराही जय-जय ||
सई नदी के तीरे, माँ मंदिर सोहै |
भव्य, अनोखा, अनुपम, दिव्य रूप मोहै ||
|| ऊँ माँ वाराही जय-जय ||
अपनी गोद बिठाती, भक्त जो बन जाता |
शार्दूल बन वाहन, इच्छित वर पाता ||
|| ऊँ माँ वाराही जय-जय ||
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