|| दोहा ||
शक्ति पीठ सूभ कांगड़ा बरिजेस्वरी सूभ धाम |
ब्रह्ममा विष्णु ओर शिव करते तुम्हे प्रडम ||
धीयाँ भारू मा आपका ज्योति अखंध स्वरूप |
टीन लोक के प्राडो को देते छाया धूप ||
|| चौपाई ||
जय जय गौरी कांगदे वा;ओ |
बरिजेस्वरी आमम्बा महाकाली ||
सती रूप का अंश लिया है |
नागरकोट मई वाज़ किया है ||
पिन्दडी रूप सूभ दर्शन भारी |
चाँदी आसान छवि है नियरी ||
घंटा धुआनी डुआर बाजे |
ढोल दपप डमरू संग गाजे ||
राजा जगत सिंग स्वपन दिखाया |
कनखल का इतिहास बताया ||
ममतामयी सब भाव दिखाया |
पर्वत वाला छेत्रा बताया ||
सभी देवता पूजन आए |
लंगर भेरो आनंद पाए ||
डुआरे सिंग आ पहरा देता |
सेर का पाँजा दुख हर लेता ||
मंगल आरती पंडित करते |
जिससे विघन सारे है हटते ||
धीयानू भक्त ने सिष चड़ाया |
दर्शन देकर सिष मिलाया ||
आस पास मंदिर है प्यारे |
जिनके दर्शन भाग्या सवरे ||
डाई ओर है तारा मंडर |
भूचाल मई रहा वही पर ||
एसी है मा छवि टिहरी |
नागरकोट की विपद निवारी ||
चमत्कार कितने मा दिखाए |
भारतवासी पूजन आए ||
राजा मानसिंघ भक्त बनाया |
मलिन होकर रूप दिखाया ||
मुगल बादशाह तुमको माता माना |
महिमा को टुंरी पहचाना ||
सेना लेकर जब भी आया |
भक्ति देख मॅट घबराया ||
राजा त्रिलोक चाँद तुमको धीयया |
चोपड़ खेली संग महामाया ||
एक बनिया वायपार को आया |
नदी बीच नोका जब लाया ||
लगा डूबने मा चिल्लाया |
उसका बेड़ा पार लगाया ||
बेहन आपकी जवाला मई |
चिंतापुर्णी भी हरसाई ||
चामुंडा से प्रेम तुम्हारा |
सक्चा मई तेरा डुआरा ||
कलयुग मई शक्ति कहलाई |
सबने पूजा तू सुखदाई ||
वज्रा रूप धार दुस्त सहारे |
पापी शक्ति देखके हारे ||
मर्यादा की रक्षा करती |
खड़ाग ओर त्रिशूल हो धरती ||
ध्ृम की लाज बचाने वाली |
कही संत हो कही विकराली ||
अंधकार के हटती बदल |
तेरा है मा सुकछ का आँचल ||
आसवीं चेट नवरात्रा मनु |
सांमुख तेरे दर्शन पौ ||
अंनपूर्णा तुम्ही बनी हो |
मेरी मॅट ओर पिता तुम्ही हो ||
डुआरे पीपल भोग लगौ |
अन्न आपसे पाकर ख़ौ ||
मेकर सकरांति जब आए |
मंदिर की शोभा बाद जाए ||
सारी रात मा का पूवूना होता |
सारे जागे, कोई ना सोता ||
जहा छिनन्ह, धीयानू का पियारा |
तुमने उसको नही विसरा ||
वेरषा मा जब रुककर होती |
वेरषा बूँद धीयानू मच धोती ||
खेटे मई हर्याली छाती |
सबके मान को जो हरसती ||
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