॥ श्री मयूरेश स्तोत्र पाठ विधि ॥
- भगवान गणेश से भक्तों को मयूरेश स्तोत्र का पाठ करने से पहले सुबह स्नान आदि कर तन-मन को शांत कर लेना चाहिए।
- इसके बाद भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठ कर मयूरेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
- यह स्तोत्र के जाप से ब्रह्मभाव की प्राप्ति होती है और समस्त पापों का नाश होता है।
- ये स्तोत्र मनुष्यों को सम्पूर्ण मनोवांछित वस्तु देने वाला तथा सारे उपद्रवों का शमन करने वाला है।
- यह शुभ स्तोत्र मानसिक चिन्ता और सभी रोगों को भी हर लेता है और भोग एवं मोक्ष प्रदान करता है।
॥ श्री मयूरेश स्तोत्रम् एवं अर्थ ॥
ब्रह्मोवाच
पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा।
मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
अर्थ: ब्रह्माजी बोले- जो पुराणपुरुष हैं और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की क्रीड़ाएं करते हैं जो माया के स्वामी हैं तथा जिनका स्वरूप दुर्विभाव्य है, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूं।
परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम्।
गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
अर्थ: जो परात्पर, चिदानन्दमय, निर्विकार, सबके हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित गुणातीत एवं गुणमय हैं, उन मयूरेश को मैं नमस्कार करता हूं।
सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया।
सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
अर्थ: जो स्वेच्छा से ही संसार की सृष्टि पालन और संहार करते हैं, उन सर्वविघ्नहारी देवता मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूं।
नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम्।
नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम्॥
अर्थ: जो अनेकानेक दैत्यों के प्राणनाशक हैं और नाना प्रकार के रूप धारण करते हैं, उन नाना अस्त्र-शस्त्रधारी मयूरेश को मैं भक्तिभाव से नमस्कार करता हूं।
इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम्।
सदसद्व्यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
अर्थ: इन्द्र आदि देवताओं का समुदाय दिन-रात जिनका स्तवन करते हैं तथा जो सत्य, असत्य, व्यक्त और अव्यक्त रूप हैं, उन मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूं।
सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम्।
सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
अर्थ: जो सर्वशक्तिमय, सर्वरूपधारी और संपूर्ण विद्याओं के प्रवक्ता हैं, उन भगवान मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूं।
पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम्।
भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
अर्थ: जो पार्वती जी को पुत्र रूप से आनन्द प्रदान करते और भगवान शंकर का भी आनंद बढ़ाते हैं, उन भक्त आनन्दवर्धन मयूरेश को मैं नित्य नमस्कार करता हूं।
मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम्।
समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम्॥
अर्थ: मुनि जिनका ध्यान करते, मुनि जिनके गुण गाते तथा जो मुनियों की कामना पूर्ण करते हैं, उन समष्टि-व्यष्टि रूप मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूं।
सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम्।
सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
अर्थ: जो समस्त वस्तु विषयक अज्ञान के निवारक, सम्पूर्ण ज्ञान के उद्भावक, पवित्र, सत्य ज्ञान स्वरूप तथा सत्य नामधारी हैं, उन मयूरेश को मैं नमस्कार करता हूं।
अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम्।
अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम्॥
अर्थ: जो अनेक कोटि ब्रह्माण्ड के नायक, जगदीश्वर, अनन्त वैभव-संपन्न तथा सर्वव्यापी विष्णु रूप हैं, उन मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूं।
मयूरेश उवाच
इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रनाशनम्।
सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम्॥
कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात्।
आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम्॥
अर्थ: मयूरेश ने कहा, “यह स्तोत्र ब्रह्मभाव की प्राप्ति कराने वाला और समस्त पापों का नाशक है। मनुष्यों को सम्पूर्ण मनोवांछित वस्तु देने वाला तथा सारे उपद्रवों का शमन करने वाला है। सात दिन इसका पाठ किया जाये तो कारागार में बंद मनुष्य को भी छुड़ा लाता है। यह शुभ स्तोत्र मानसिक चिन्ता तथा व्याधि यानी सभी रोगों को भी हर लेता है और भोग एवं मोक्ष प्रदान करता है।”
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