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आदि पेरुक्कू 2025 कब है? जानिए महिलाओं के लिए क्यों होता है यह दिन खास, आदि पेरुक्कू कैसे मनाएं?

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आदि पेरुक्कू, जिसे पद्मिनी एकादशी, पेरुक्कू उत्सव या पेरुक्कू पर्व के रूप में भी जाना जाता है, दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु में मनाया जाने वाला एक विशेष पर्व है। यह दिन नदी, जल स्रोत और स्त्री शक्ति की पूजा का प्रतीक माना जाता है। खासकर महिलाएं इस दिन का विशेष रूप से पालन करती हैं क्योंकि यह उनकी सुख-समृद्धि, वैवाहिक जीवन और संतान सुख से जुड़ा होता है।

आदि पेरुक्कू, जिसे आदि अम्मन या पथिन्नेट्टम पेरुक्कू के नाम से भी जाना जाता है, तमिलनाडु का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो मानसून के मौसम के आगमन और नदियों में पानी के स्तर में वृद्धि का जश्न मनाता है। यह दिन प्रकृति, विशेषकर जल के लिए आभार व्यक्त करने और भविष्य की समृद्धि और खुशहाली के लिए प्रार्थना करने का प्रतीक है। महिलाओं के लिए यह दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि वे अनुष्ठानों और पूजा-पाठ में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं, जिससे परिवार के कल्याण और समृद्धि की कामना की जाती है।

आदि पेरुक्कू 2025 तिथि और मुहूर्त

आदि पेरुक्कू तमिल महीने आदि के 18वें दिन मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह आमतौर पर जुलाई के अंत या अगस्त की शुरुआत में पड़ता है। आदि पेरुक्कू 2025 की सही तिथि 3 अगस्त 2025, रविवार को होगी। पंचांग के अनुसार, इस दिन का शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहेगा:

  • आदि मास का 18वां दिन: 3 अगस्त 2025, रविवार
  • सुबह का शुभ मुहूर्त: 06:00 AM से 07:30 AM (लगभग)
  • दोपहर का शुभ मुहूर्त: 10:30 AM से 12:00 PM (लगभग)
  • शाम का शुभ मुहूर्त: 06:00 PM से 07:30 PM (लगभग)

आदि पेरुक्कू का महत्व – प्रकृति के प्रति कृतज्ञता

आदि पेरुक्कू सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ मानव के गहरे संबंध का प्रतीक है। तमिलनाडु जैसे कृषि प्रधान राज्य में, नदियों और जल स्रोतों का जीवन में अत्यधिक महत्व है। मानसून की शुरुआत खेतों में नई जान फूंकती है और किसानों को अपनी फसलों की बुवाई के लिए तैयार करती है। यह त्योहार इस प्राकृतिक चक्र के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है, जो जीवन को पोषण देता है।

जल देवी को समर्पित यह दिन, पानी के महत्व को रेखांकित करता है, जो जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। लोग नदियों, झीलों और अन्य जल निकायों की पूजा करते हैं, यह मानते हुए कि वे जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक हैं। यह एक अनुस्मारक है कि हमें प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना चाहिए और उन्हें संरक्षित करना चाहिए।

महिलाओं के लिए आदि पेरुक्कू क्यों है खास?

आदि पेरुक्कू महिलाओं के लिए एक विशेष महत्व रखता है, और यह दिन उनके द्वारा निभाए जाने वाले विभिन्न अनुष्ठानों और परंपराओं के माध्यम से और भी पवित्र हो जाता है।

  • देवी-देवताओं की पूजा और प्रार्थनाएँ – महिलाएं इस दिन देवी अम्मन, देवी पार्वती, और गंगा जैसी जल देवियों की विशेष पूजा करती हैं। वे घर में और मंदिरों में दीये जलाती हैं, फूल चढ़ाती हैं और मंत्रों का जाप करती हैं। यह पूजा परिवार के सदस्यों के लिए समृद्धि, स्वास्थ्य और कल्याण की कामना के लिए की जाती है। वे विशेष रूप से अपने पतियों की लंबी उम्र और अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करती हैं।
  • मंगला सूत्रा (मंगलसूत्र) का नवीनीकरण – कई महिलाएं इस दिन अपने मंगला सूत्रा (मंगलसूत्र) को नवीनीकृत करती हैं या उसका शुद्धिकरण करती हैं। यह पति के लिए सौभाग्य और लंबी उम्र का प्रतीक है। वे अपने मंगलसूत्र को हल्दी और चंदन से शुद्ध करती हैं, और कुछ महिलाएं नए धागे में पिरोकर पहनती हैं। यह अनुष्ठान उनके वैवाहिक जीवन को और मजबूत करने का प्रतीक है।
  • विविध प्रकार के चावल (Chithra Annam) तैयार करना – यह दिन विभिन्न प्रकार के चावल के व्यंजन (जिसे चित्रानम कहा जाता है) तैयार करने के लिए जाना जाता है। महिलाएं रंगीन चावल, जैसे कि नींबू चावल, इमली चावल, नारियल चावल, दही चावल, और मीठे पोंगल सहित कई प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाती हैं। ये व्यंजन देवी-देवताओं को प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाते हैं और फिर परिवार और दोस्तों के बीच बांटे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन व्यंजनों को बनाने और बांटने से घर में खुशहाली और प्रचुरता आती है।
  • नदियों और जल निकायों के किनारे अनुष्ठान – महिलाएं नदियों, झीलों या तालाबों के किनारे इकट्ठा होती हैं और जल देवी की पूजा करती हैं। वे नदी में फूल और दीपक चढ़ाती हैं, और जल को प्रणाम करती हैं। कुछ महिलाएं पानी में स्नान भी करती हैं, जिसे शुद्धिकरण का प्रतीक माना जाता है। यह अनुष्ठान उन्हें प्रकृति के साथ जुड़ने और उसके आशीर्वाद को प्राप्त करने में मदद करता है।
  • बेटियों और युवा लड़कियों को सम्मान – आदि पेरुक्कू के दौरान, बेटियों और अविवाहित युवा लड़कियों को विशेष सम्मान दिया जाता है। उन्हें नए कपड़े दिए जाते हैं, और स्वादिष्ट व्यंजन परोसे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि युवा लड़कियों को देवी शक्ति का प्रतीक माना जाता है, और उन्हें सम्मानित करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और खुशहाली आती है। यह एक सामाजिक पहलू भी है जो परिवार में महिलाओं की भूमिका को मजबूत करता है।

आदि पेरुक्कू कैसे मनाएं? अनुष्ठान और परंपराएं

आदि पेरुक्कू को विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है, लेकिन कुछ सामान्य अनुष्ठान और परंपराएं हैं जिनका पालन किया जाता है:

  • त्योहार से पहले, लोग अपने घरों की गहन सफाई करते हैं और उन्हें सजाते हैं। प्रवेश द्वार पर रंगोली या कोलम बनाई जाती है, जो स्वागत और शुभता का प्रतीक है। घर को फूलों और आम के पत्तों से भी सजाया जाता है।
  • सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करना इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कुछ लोग नदियों या तालाबों में स्नान करते हैं, जबकि अन्य घर पर ही पवित्र जल से स्नान करते हैं। यह शरीर और मन को शुद्ध करने का प्रतीक है।
  • पूजा स्थल को साफ करके, देवी-देवताओं की मूर्तियों या तस्वीरों को स्थापित किया जाता है। विभिन्न प्रकार के चित्रानम और अन्य पारंपरिक व्यंजन तैयार किए जाते हैं और देवी-देवताओं को प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाते हैं। इसमें हल्दी, कुमकुम, चंदन, फूल, धूप और दीपक भी शामिल होते हैं।
  • विवाहित महिलाएं अपने मंगलसूत्र की पूजा करती हैं। वे उसे हल्दी और कुमकुम से सजाती हैं, और भगवान के सामने रखती हैं। कुछ महिलाएं अपने मंगलसूत्र में एक नया पीला धागा पिरोती हैं, जो वैवाहिक सुख और पति की लंबी उम्र के लिए होता है।
  • यदि संभव हो, तो लोग पास की नदी, झील या तालाब पर जाते हैं। वे वहां नारियल, फूल, फल, और चावल के व्यंजन चढ़ाते हैं। कुछ लोग पानी में सिक्के या छोटे गहने भी डालते हैं, जो समृद्धि और धन की कामना का प्रतीक है। यह जल देवी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है।
  • त्योहार के दिन, परिवार और दोस्त एक-दूसरे के घरों में जाते हैं और एक साथ भोजन करते हैं। यह खुशियां बांटने और सामाजिक बंधन को मजबूत करने का समय है। पारंपरिक व्यंजनों को सभी के साथ साझा किया जाता है।
  • कुछ क्षेत्रों में, आदि पेरुक्कू के अवसर पर लोक नृत्य और संगीत कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। ये सांस्कृतिक कार्यक्रम त्योहार की खुशी को और बढ़ाते हैं।

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