॥ अजा एकादशी पूजा विधि ॥
- अजा एकादशी का व्रत करने वाले जातक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रिया से निपटने के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- पूजा से पहले घट स्थापना की जाती है, जिसमें घड़े पर लाल रंग का वस्त्र सजाया जाता है और उसकी पूजा की जाती है।
- इसके बाद चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और गंगाजल से चारों तरफ छिड़काव करें।
- इसके बाद रोली का टीका लगाते हुए अक्षत अर्पित करें।
- इसके बाद भगवान को पीले फूल अर्पित करें और व्रत कथा का पाठ करें। साथ ही विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ कर सकते हैं। फिर घी में थोड़ी हल्दी मिलाकर भगवान विष्णु की आरती करें।
- जया एकादशी के दिन पीपल के पत्ते पर दूध और केसर से बनी मिठाई रखकर भगवान को अर्पित करें। इस दिन दान का भी विशेष महत्व बताया है।
- एकादशी के व्रत धारी पूरे दिन भगवान का ध्यान लगाएं और शाम के समय आरती करने के बाद फलाहार कर लें।
- अगले दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद गरीब व जरूरतमंद को भोजन कराएं और फिर स्वयं व्रत का पारण करें।
॥ अजा एकादशी व्रत कथा ॥
प्राचीनकाल में हरिशचंद्र नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था। उसने किसी कर्म के वशीभूत होकर अपना सारा राज्य व धन त्याग दिया, साथ ही अपनी स्त्री, पुत्र तथा स्वयं को बेच दिया। वह राजा चांडाल का दास बनकर सत्य को धारण करता हुआ मृतकों का वस्त्र ग्रहण करता रहा। मगर किसी प्रकार से सत्य से विचलित नहीं हुआ। कई बार राजा चिंता के समुद्र में डूबकर अपने मन में विचार करने लगता कि मैं कहाँ जाऊँ, क्या करूँ, जिससे मेरा उद्धार हो।
इस प्रकार राजा को कई वर्ष बीत गए। एक दिन राजा इसी चिंता में बैठा हुआ था कि गौतम ऋषि आ गए। राजा ने उन्हें देखकर प्रणाम किया और अपनी सारी दु:खभरी कहानी कह सुनाई। यह बात सुनकर गौतम ऋषि कहने लगे कि राजन तुम्हारे भाग्य से आज से सात दिन बाद भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अजा नाम की एकादशी आएगी, तुम विधिपूर्वक उसका व्रत करो।
गौतम ऋषि ने कहा कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे। इस प्रकार राजा से कहकर गौतम ऋषि उसी समय अंतर्ध्यान हो गए। राजा ने उनके कथनानुसार एकादशी आने पर विधिपूर्वक व्रत व जागरण किया। उस व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए। स्वर्ग से बाजे बजने लगे और पुष्पों की वर्षा होने लगी। उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित और अपनी स्त्री को वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा। व्रत के प्रभाव से राजा को पुन: राज्य मिल गया। अंत में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग को गया।
हे राजन! यह सब अजा एकादशी के प्रभाव से ही हुआ। अत: जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
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