सनातन धर्म में व्रतों और त्योहारों का विशेष महत्व है, और इन्हीं में से एक अत्यंत पावन पर्व है अष्टमी रोहिणी। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है और माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजन करने से भक्तों को अतुलनीय पुण्य और प्रभु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यदि आप भी इस शुभ दिन पर भगवान कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो यह विस्तृत मार्गदर्शिका आपके लिए ही है।
अष्टमी रोहिणी क्या है?
अष्टमी रोहिणी, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के संयोग से बनती है। यह संयोग भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव, जन्माष्टमी, से जुड़ा हुआ है, क्योंकि उनका जन्म इसी शुभ योग में हुआ था। हालांकि, जन्माष्टमी एक अलग तिथि पर मनाई जाती है, अष्टमी रोहिणी का संयोग भी कृष्ण भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह दिन भगवान के प्रति श्रद्धा और प्रेम व्यक्त करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है।
अष्टमी रोहिणी व्रत के नियम और विधि
अष्टमी रोहिणी का व्रत अत्यंत पवित्रता और निष्ठा के साथ किया जाना चाहिए। यहाँ इसके विस्तृत नियम और विधि दी गई है:
- व्रत के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद, हाथ में जल लेकर भगवान कृष्ण का स्मरण करें और व्रत का संकल्प लें। मन में यह भावना रखें कि आप यह व्रत पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ करेंगे।
- पूजा स्थल को साफ-सुथरा करें। भगवान कृष्ण की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं।
- पूजा सामग्री में फूल (विशेषकर तुलसी दल), फल, धूप, दीप, चंदन, रोली, अक्षत, माखन-मिश्री, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल का मिश्रण), और नैवेद्य (मिठाई) शामिल करें।
- सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें और उनका पूजन करें। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए उन्हें आसन पर विराजमान होने का आह्वान करें।
- भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं। उसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर वस्त्र पहनाएं। उन्हें चंदन, रोली, अक्षत, फूल और तुलसी दल अर्पित करें। धूप और दीप प्रज्वलित करें। भगवान को माखन-मिश्री और अन्य नैवेद्य अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम या कृष्ण चालीसा का पाठ करें। ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें। भगवान कृष्ण की आरती करें।
- यह व्रत निराहार रहकर किया जाता है। यदि स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या है, तो फलाहार कर सकते हैं। नमक का सेवन वर्जित होता है। सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।
- व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद, रोहिणी नक्षत्र समाप्त होने के बाद या अष्टमी तिथि समाप्त होने के बाद किया जाता है। पारण के लिए सात्विक भोजन जैसे खीर या फल का सेवन करें।
अष्टमी रोहिणी व्रत के लाभ
अष्टमी रोहिणी का व्रत करने से कई अलौकिक लाभ प्राप्त होते हैं:
- माना जाता है कि यह व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- जो दंपत्ति संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है।
- इस व्रत के प्रभाव से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
- भगवान कृष्ण की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- यह व्रत आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है और व्यक्ति को ईश्वर के करीब लाता है।
- स्वास्थ्य लाभ और रोगों से मुक्ति के लिए भी यह व्रत प्रभावी माना जाता है।
श्रीकृष्ण कृपा पाने के उपाय
अष्टमी रोहिणी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा पाने के लिए कुछ अतिरिक्त उपाय किए जा सकते हैं:
- इस दिन गायों की सेवा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। उन्हें चारा खिलाएं या उनकी देखभाल करें। भगवान कृष्ण को गायें अत्यंत प्रिय हैं।
- घर में बाल गोपाल की मूर्ति स्थापित करें और नियमित रूप से उनका पूजन करें। उन्हें माखन-मिश्री और तुलसी दल अर्पित करें।
- भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित कथाएं जैसे श्रीमद्भागवत महापुराण का श्रवण करें या उसका पाठ करें।
- अपनी क्षमतानुसार गरीबों और जरूरतमंदों को दान करें। अन्न, वस्त्र या धन का दान अत्यंत पुण्यदायी होता है।
- भगवान कृष्ण को मोर पंख और बांसुरी अत्यंत प्रिय हैं। इन्हें अपने पूजा स्थल पर रखें और इनकी नियमित रूप से पूजा करें।
- घर में तुलसी का पौधा लगाएं और उसकी नित्य पूजा करें। तुलसी को भगवान विष्णु और कृष्ण का स्वरूप माना जाता है।
- अपने जीवन में अहिंसा और सत्य के मार्ग का अनुसरण करें। भगवान कृष्ण ने स्वयं धर्म की स्थापना के लिए इन सिद्धांतों पर बल दिया था।
- भगवान कृष्ण के भजन और कीर्तन में भाग लें या घर पर ही उनका जाप करें। यह मन को शांत करता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
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