।।महर्षि व्यास कृत श्री भगवती देवी स्तोत्र।।
जय भगवति देवि नमो वरदे,
जय पापविनाशिनि बहुफलदे ।।
जय शुम्भनिशुम्भ कपालधरे,
प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे ।।
अर्थात्— हे वरदायिनी देवि ! हे भगवति ! तुम्हारी जय हो । हे पापों को नष्ट करने वाली और अनन्त फल देने वाली देवि ! तुन्हारी जय हो । हे शुम्भ-निशुम्भ के मुण्डों को धारण करने वाली देवि ! तुम्हारी जय हो । हे मनुष्यों की पीड़ा हरने वाली देवि ! मैं माँ आपको प्रणाम करता हूँ ।
जय चन्द्रदिवाकर नेत्रधरे,
जय पावकभूषित वक्त्रवरे ।
जय भैरवदेहनिलीन परे,
जय अन्धकदैत्य विशोषकरे ।।
अर्थात्—हे सूर्य-चन्द्रमा रूपी नेत्रों को धारण करने वाली देवि माँ ! तुम्हारी सदा ही जय हो । हे अग्नि के समान देदीप्यमान मुख से शोभित होने वाली ! तुम्हारी जय हो । हे भैरव-शरीर में लीन रहने वाली और अन्धकासुर का शोषण करने वाली देवि ! तुम्हारी जय हो, जय हो देवी माँ ।
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे,
जय लोकसमस्तक पापहरे ।
जय देवि पितामह विष्णुनते,
जय भास्कर शक्र शिरोऽवनते ।।
अर्थात्—हे महिषासुर का मर्दन करने वाली देवी, शूलधारिणी और लोक के समस्त पापों को दूर करने वाली भगवति ! तुम्हारी जय हो । ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इन्द्र से नमस्कृत होने वाली हे देवि ! आपकी जय हो, जय हो ।
जय षण्मुख सायुध ईशनुते,
जय सागरगामिनि शम्भुनुते ।
जय दु:खदरिद्र विनाश करे,
जय पुत्रकलत्र विवृद्धि करे ।।
अर्थात्—सशस्त्र शंकर और कार्तिकेयजी के द्वारा वन्दित होने वाली देवि माँ ! आपकी जय हो । शिव के द्वारा प्रशंसित एवं सागर में मिलने वाली गंगारुपिणी देवि ! आपकी जय हो । दु:ख और दरिद्रता का नाश तथा संतान और कुल की वृद्धि करने वाली हे देवि ! आपकी जय हो, जय हो ।
जय देवि समस्त शरीर धरे,
जय नाकविदर्शिति दु:ख हरे ।
जय व्याधि विनाशिनि मोक्ष करे,
जय वांछितदायिनि सिद्धि वरे ।।
अर्थात्—हे देवि ! आपकी जय हो । आप समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्ग लोक के दर्शन कराने वाली और दु:खहारिणी माता हो । हे व्याधिनाशिनी देवि ! आपकी जय हो । मोक्ष तुम्हारे करतलगत है । हे मनोवांछित फल देने वाली माँ, अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न करने वाली देवि ! आपकी सदा ही जय हो ।
एतद् व्यासकृतं स्तोत्रं,
य: पठेन्नियत: शुचि: ।
गृहे वा शुद्ध भावेन,
प्रीता भगवती सदा ।।
अर्थात्—जो मनुष्य कहीं भी रह कर पवित्र भावना से नियम-पूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्र का पाठ करता है, अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर माँ भगवती सदा ही प्रसन्न रहती हैं ।
॥ इति महर्षि व्यासकृतं श्री भगवती स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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