दूर्वा अष्टमी का व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से संतान सुख, सौभाग्य और परिवार की वृद्धि के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान गणेश और दूर्वा घास का विशेष पूजन होता है।
|| दूर्वा अष्टमी व्रत कथा (Durva Ashtami Vrat Katha PDF) ||
दूर्वा अष्टमी व्रत से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से कुछ प्रमुख कथाएं इस प्रकार हैं:
भगवान गणेश और अनलासुर की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार अनलासुर नामक एक राक्षस था, जो अपनी अग्नि से चारों ओर हाहाकार मचा रहा था। उसके प्रकोप से देवता भी परेशान थे। तब सभी देवता भगवान गणेश के पास पहुंचे और उनसे सहायता मांगी। भगवान गणेश ने देवताओं की रक्षा के लिए विशाल रूप धारण किया और अनलासुर राक्षस को निगल लिया।
परंतु अनलासुर को निगलने के बाद भगवान गणेश के पेट में भीषण जलन होने लगी। यह जलन इतनी भयंकर थी कि कोई भी इसे शांत नहीं कर पा रहा था। तब कुछ ऋषियों ने भगवान गणेश को दूर्वा घास अर्पित की। दूर्वा घास खाते ही भगवान गणेश के पेट की जलन शांत हो गई। तब से दूर्वा घास भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय हो गई और इसे पवित्र माना जाने लगा। इसी कारण दूर्वा अष्टमी पर भगवान गणेश की पूजा में दूर्वा अर्पित की जाती है।
समुद्र मंथन और दूर्वा की उत्पत्ति की कथा
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया था, तो उसमें से अमृत निकला था। उस अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिरीं और जहां वे गिरीं, वहां दूर्वा घास उत्पन्न हुई। अमृत के स्पर्श से दूर्वा अजर-अमर हो गई और इसी कारण इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। कुछ कथाओं में यह भी कहा गया है कि भगवान विष्णु के रोम से दूर्वा की उत्पत्ति हुई थी।
दूर्वा अष्टमी व्रत का महत्व और पूजा विधि
दूर्वा अष्टमी का व्रत करने से सुख, सौभाग्य और दूर्वा के अंकुरों के समान वंश की वृद्धि होती है। यह व्रत संतान प्राप्ति और संतान के कल्याण के लिए भी बहुत फलदायी माना जाता है।
- दूर्वा अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। उन्हें सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, वस्त्र आदि अर्पित करें।
- इसके बाद भगवान गणेश को 21 जोड़े दूर्वा (दूब घास) अर्पित करें। आप दो, तीन या पांच दूर्वा भी चढ़ा सकते हैं।
- भगवान गणेश को तिल और मीठे आटे की रोटी या मोदक का भोग लगाएं।
- इस दिन दूर्वा घास का भी विशेष पूजन किया जाता है। कहीं-कहीं मिट्टी से दूर्वा और सर्पों की मूर्ति बनाकर भी पूजा की जाती है।
- पूजन के बाद व्रत कथा का श्रवण करें और आरती करें। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं फलाहार करती हैं।
- दूर्वा अष्टमी का व्रत हमें प्रकृति के महत्व और पवित्रता का भी संदेश देता है। यह त्यौहार सच्ची श्रद्धा और सौहार्द के साथ मनाया जाता है।
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