चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘कामदा एकादशी’ कहा जाता है। यह हिंदू संवत्सर की पहली एकादशी होती है। इसे फलदा एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि इसे बहुत ही फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि कामदा एकादशी का व्रत रखने से व्रती को प्रेत योनि से भी मुक्ति मिल सकती है।
कामदा एकादशी की पूर्व संध्या पर, भक्त ‘सात्विक’ भोजन करते हैं, जिसका अर्थ है सरल और पूरी तरह से शाकाहारी भोजन। हिन्दू धर्म के लोग मंत्र का उच्चारण कर भगवान का गुणगान करते हैं। कामदा एकादशी हिंदुओं के लिए एक शुभ उपवास का दिन है। यह भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है और पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, कामदा एकादशी शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, यानी ‘चैत्र’ के महीने में चंद्रमा के वैक्सिंग चरण के 11 वें दिन। यह हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि यह हिंदू नव वर्ष के बाद पहली एकादशी है। कामदा एकादशी को आमतौर पर ‘चैत्र शुक्ल एकादशी’ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह चैत्र नवरात्रि उत्सव के बाद आती है।
कामदा एकादशी 2025 की महत्वपूर्ण तिथि और समय
इस साल, कामदा एकादशी मंगलवार, अप्रैल 8, 2025 को मनाया जाएगा। कामदा एकादशी 2025 के लिए महत्वपूर्ण समय निम्नलिखित हैं:
कामदा एकादशी: मंगलवार, अप्रैल 8, 2025 को
पारण का समय: 09 अप्रैल को प्रातः 06:02 बजे से प्रातः 08:34 बजे तक
एकादशी की आरंभ तिथि: 07 अप्रैल 2025 को शाम 08:00 बजे
एकादशी की समाप्ति तिथि: 08 अप्रैल 2025 को रात्रि 09:12 बजे
कामदा एकादशी की पूजा विधि
- इस दिन, स्नान के बाद, व्रत का संकल्प लें और भगवान की पूजा करें। मन ही मन भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। संभव हो तो, विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें।
- एकादशी व्रत के एक दिन पहले ही नियमों का पालन शुरू कर देना चाहिए। पूरे दिन और रात्रि में संयम से व्यवहार करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- इसके बाद, किसी स्वच्छ स्थान पर भगवान श्रीविष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। भगवान विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि सामग्री से पूजें।
- अंत में, कपूर की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
- समय-समय पर भगवान विष्णु का स्मरण करें और पूजा स्थल के पास जागरण करें।
- एकादशी के अगले दिन, यानी द्वादशी या बारहवें दिन, पारण करें। ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद दक्षिणा सहित विदा करें और फिर भोजन करें। ऊपर दी गई कामदा एकादशी पूजा विधि के द्वार जो उपासक ये व्रत रखता है उसका व्रत सफल हो जाता है
कामदा एकादशी की पौराणिक कथा
प्राचीन समय में भोगीपुर नामक एक नगर था। इस नगर में पुंडरीक नामक राजा राज करता था। यह नगर बहुत ही वैभवशाली और संपूर्ण था। इस नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर और गंधर्व वास करते थे।
वहां ललिता नाम की एक अतिसुंदर अप्सरा अपने पति ललित नामक गंधर्व के साथ रहती थी। दोनों के बीच अत्यंत प्रेम था और एक दूसरे के बगैर दोनों व्याकुल हो जाते थे।
एक बार राजा पुंडरीक के दरबार में अन्य गंधर्वों के साथ ललित भी गान कर रहा था। गाते गाते उसे अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई और ध्यान भटकने के कारण ललित का उसके स्वर पर नियंत्रण नहीं रहा।
सभा में मौजूद कर्कोटक नामक एक नाग ने ललित के स्वर बिगड़ने को भांप लिया और यह बात राजा पुंडरीक को बता दी। यह बात सुनकर राजा पुंडरीक को क्रोध आया और क्रोध में उसने ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया।
पुंडरीक के श्राप से ललित उसी क्षण एक विशालकाय राक्षस बन गया। ललित राक्षस बनके वन में घूमने लगा और वहां उसने बहुत सारी दुखों का सामना किया। जब यह बात ललिता को पता चली तो वह अत्यंत दुखी हुई और वह अपने पति के पीछे-पीछे जंगल में घूमने लगी।
वन में भटकती हुई ललिता अपने पति के कष्टों के निवारण का उपाय ढूंढने लगी। भटकते भटकते ललिता को एक सुंदर आश्रम दिखा जहां एक मुनि बैठे हुए थे। ललिता आश्रम में गई और मुनि को अपनी व्यथा बताई।
ललिता की व्यथा सुनकर मुनि को दया आ गई और उन्होंने ललिता को कामदा एकादशी व्रत करने को कहा। मुनि का आशीर्वाद पाकर गंधर्व पत्नी ने श्रद्धापूर्वक कामदा एकादशी का व्रत किया। कामदा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ललित को श्राप से मुक्ति मिल गई और वह अपने पुराने सुंदर रूप में आ गया।
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