कार्तिकई दीपम (Karthigai Deepam), जिसे ‘दीपों का त्योहार’ भी कहा जाता है, दक्षिण भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाने वाला एक प्राचीन और महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है। यह पर्व तमिल कैलेंडर के ‘कार्तिकई’ (Karthigai) महीने की पूर्णिमा के दिन, जब चंद्रमा कृतिका नक्षत्र (Krittika Nakshatra) के साथ मेल खाता है, तब मनाया जाता है। यह त्योहार ज्ञान के प्रकाश द्वारा अज्ञानता के अंधकार (Darkness of Ignorance) पर विजय का प्रतीक है।
यूं तो यह पर्व भगवान कार्तिकेय (Lord Muruga) के जन्म से जुड़ी कथाओं के लिए भी जाना जाता है, लेकिन इसकी एक सबसे प्रमुख पौराणिक कथा सीधे तौर पर त्रिदेवों – शिव, ब्रह्मा और विष्णु (Trinity – Shiva, Brahma, and Vishnu) – से जुड़ी है, जो इस पर्व के आध्यात्मिक महत्व को एक नई ऊँचाई देती है।
पौराणिक कथा – शिव का ‘ज्योतिर्लिंग’ स्वरूप (The Mythological Tale: Shiva’s ‘Jyotirlinga’ Form)
कार्तिकई दीपम की सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण कथा भगवान शिव (Lord Shiva) के सर्वोच्च प्रभुत्व (Supreme Supremacy) को दर्शाती है।
प्राचीन काल में, एक बार सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा (Lord Brahma, the Creator) और पालनकर्ता भगवान विष्णु (Lord Vishnu, the Preserver) के बीच यह बहस छिड़ गई कि दोनों में से अधिक श्रेष्ठ कौन है। दोनों ही अपने-अपने दायित्वों और शक्तियों के कारण खुद को दूसरे से बड़ा मानने लगे थे।
इस विवाद को शांत करने और सृष्टि में अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए, भगवान शिव एक विशाल और अंतहीन अग्नि स्तंभ (An Endless Pillar of Fire) के रूप में उन दोनों के सामने प्रकट हुए। इस अग्नि स्तंभ को ‘ज्योतिर्लिंग’ (Jyotirlinga) कहा गया।
शिव ने दोनों देवताओं को चुनौती दी: “जो कोई भी इस अग्नि स्तंभ का आदि (शुरुआत) और अंत (End) खोज लेगा, वही सबसे श्रेष्ठ माना जाएगा।”
भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने एक वराह (जंगली सूअर – Boar) का रूप लिया और स्तंभ के निचले छोर (Bottom End) को खोजने के लिए धरती के अंदर गहराई में चले गए।
भगवान ब्रह्मा (Lord Brahma) ने एक हंस (Swan) का रूप लिया और स्तंभ के ऊपरी सिरे (Top End) को खोजने के लिए आकाश की ओर उड़ान भरी।
हजारों वर्षों तक प्रयास करने के बावजूद, न तो ब्रह्मा को स्तंभ का शीर्ष मिला और न ही विष्णु को उसका आधार। विष्णु अपनी हार स्वीकार करते हुए वापस लौटे और उन्होंने पूरी ईमानदारी (Honesty) से भगवान शिव के सामने अपनी अक्षमता (Inability) प्रकट कर दी।
किन्तु, ब्रह्मा जी ने असत्य का सहारा लिया। उन्हें रास्ते में एक केतकी (Ketaki) का फूल मिला, जो शिव के शीर्ष से नीचे आ रहा था। ब्रह्मा ने फूल को झूठी गवाही (False Testimony) देने के लिए राजी किया और शिव से कहा कि उन्होंने शीर्ष खोज लिया है।
झूठ सुनकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने ‘ज्योतिर्लिंग’ स्वरूप को प्रकट करते हुए ब्रह्मा को श्राप दिया कि उनकी पूजा कभी नहीं की जाएगी (हालांकि, भारत में ब्रह्मा का एक ही मंदिर है)। वहीं, भगवान विष्णु की सत्यनिष्ठा (Integrity) से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें हमेशा पूजे जाने का आशीर्वाद दिया।
यह पर्व उसी क्षण का प्रतीक है जब भगवान शिव ने स्वयं को अग्नि के अनंत स्तंभ (Infinite Column of Fire) के रूप में प्रकट किया, यह दर्शाते हुए कि वे ही संपूर्ण ब्रह्मांड का आदि और अंत हैं। तमिलनाडु में, तिरुवन्नामलाई की पवित्र पहाड़ी (Thiruvannamalai Hill) को ही उस ‘ज्योतिर्लिंग’ का भौतिक रूप (Physical Manifestation) माना जाता है, जहाँ इस दिन एक विशाल महादीप (Mahadeepam) जलाया जाता है।
कार्तिकई दीपम का विशेष महत्व (Special Significance of Karthigai Deepam)
कार्तिकई दीपम सिर्फ एक पौराणिक कथा का उत्सव नहीं है, बल्कि यह कई आध्यात्मिक और सामाजिक महत्वों को समेटे हुए है:
अज्ञान पर ज्ञान की विजय (Victory of Knowledge over Ignorance) – यह त्योहार ज्ञान रूपी प्रकाश (Light of Knowledge) से अंधकार रूपी अज्ञानता और अहंकार (Ego) को दूर करने का प्रतीक है। घरों में जलाए जाने वाले मिट्टी के दीये (Clay Lamps) इस बात का संकेत हैं कि हमें अपने भीतर से नकारात्मकता (Negativity) को मिटाकर सकारात्मकता को अपनाना चाहिए।
दीपक-ज्योतिर्लिंग का लघु रूप (Lamp – Miniature of Jyotirlinga) – हर घर में जलाया गया प्रत्येक दीपक भगवान शिव के ‘ज्योतिर्लिंग’ का एक लघु रूप (Miniature Replica) माना जाता है। यह मान्यता है कि इन दीपों को जलाने से घर में भगवान शिव का दिव्य प्रकाश (Divine Light) और आशीर्वाद आता है, जिससे पापों का नाश होता है।
कार्तिकेय का जन्म (Birth of Kartikeya) – एक अन्य कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान कार्तिकेय (स्कंद) का जन्म हुआ था। उन्हें ‘कृतिकाओं’ (छह दिव्य माताओं) द्वारा पाला गया था, और बाद में देवी पार्वती ने उन छह बच्चों को एक बालक में मिला दिया, जिससे कार्तिकेय के छह मुख हुए (Arumugan)। दीप जलाकर कार्तिकेय और उनके दिव्य माता-पिता की पूजा की जाती है।
पारिवारिक बंधन (Family Bonding) – दीपावली की तरह ही, इस दिन लोग अपने घरों को दीपों से सजाते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और पारंपरिक व्यंजन (Traditional Delicacies) बनाते हैं। यह त्योहार परिवार के सदस्यों को एक साथ आने और खुशियाँ साझा करने का अवसर देता है।
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