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अन्नपूर्णा देवी कौन हैं? जानें उनके 108 नाम और जयंती का गहरा रहस्य। (Maa Annapurna, The Goddess of Food and Her Secrets)

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भारतीय संस्कृति में अन्न को ‘ब्रह्म’ (The Ultimate Reality) माना गया है, और इसी अन्न की अधिष्ठात्री देवी हैं – माता अन्नपूर्णा। उनका नाम दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘अन्न’ (अनाज/भोजन) और ‘पूर्णा’ (पूर्ण, भरपूर)। यानी, वह देवी जो हर जीव के लिए भोजन के भंडार को हमेशा भरा रखती हैं। इनकी उपासना केवल पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि जीवन में संतुष्टि, समृद्धि (prosperity) और ज्ञान की प्राप्ति के लिए भी की जाती है।

आइए, इस विशेष ब्लॉग में हम जानेंगे कि देवी अन्नपूर्णा कौन हैं, उनके दिव्य 108 नाम क्या हैं, और उनकी जयंती के पीछे छिपा गहरा रहस्य (deep secret) क्या है।

अन्नपूर्णा देवी कौन हैं? (Who is Goddess Annapurna?)

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता अन्नपूर्णा साक्षात् देवी पार्वती का ही एक रूप हैं। जब देवी पार्वती भगवान शिव से विवाह के बाद कैलाश पर वास कर रही थीं, तब एक बार पृथ्वी पर घोर अकाल पड़ा। अन्न और जल की कमी के कारण चारों ओर हाहाकार मच गया।

इस दौरान, भगवान शिव ने संसार को यह समझाने का प्रयास किया कि अन्न और भौतिक सुख (material comforts) केवल एक ‘माया’ (illusion) है, और हर चीज नश्वर (mortal) है। लेकिन जब उन्होंने देखा कि उनके भक्त भूख से पीड़ित हैं, तो माँ पार्वती ने स्थिति को संभाला।

माँ का दिव्य स्वरूप

देवी पार्वती ने संसार के कष्ट को दूर करने के लिए, स्वयं को दिव्य अन्नपूर्णा स्वरूप में प्रकट किया। वह हाथों में एक अक्षय पात्र (inexhaustible bowl) और एक करछी (ladle) धारण किए हुए थीं। यह अक्षय पात्र कभी खाली नहीं होता।

भगवान शिव ने भिक्षु का रूप धारण किया और माता अन्नपूर्णा के सामने भिक्षा मांगी। माता ने उन्हें भिक्षा में अन्न दिया और आश्वासन दिया कि अब पृथ्वी पर कभी अन्न की कमी नहीं होगी। इस घटना के बाद, भगवान शिव ने भी अन्न के महत्व को स्वीकार किया।

यही कारण है कि काशी (वाराणसी) को माँ अन्नपूर्णा की नगरी माना जाता है, जहाँ माना जाता है कि माँ की कृपा से कोई भूखा नहीं सोता। माँ अन्नपूर्णा का आशीर्वाद भोजन के प्रति सम्मान और दरिद्रता (poverty) से मुक्ति प्रदान करता है।

देवी अन्नपूर्णा के 108 नाम (The 108 Divine Names of Maa Annapurna)

माँ अन्नपूर्णा के 108 नाम उनकी शक्ति और गुणों का वर्णन करते हैं। इन नामों का जाप (chanting) करने से जीवन में अन्न, धन और सुख की कभी कमी नहीं होती। यह ‘अन्नपूर्णा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्’ का एक हिस्सा हैं, जो माँ की महिमा को बताता है।
यहाँ उनके कुछ प्रमुख और अर्थपूर्ण नाम दिए गए हैं:

  • अन्नपूर्णा: अन्न से परिपूर्ण।
  • शिवा: शिव की शक्ति।
  • भीमा: भयंकर रूप वाली।
  • पुष्टि: पोषण देने वाली।
  • सरस्वती: ज्ञान की देवी।
  • सर्वज्ञा: सब कुछ जानने वाली।
  • पार्वती: पर्वतराज की पुत्री।
  • दुर्गा: दुखों का नाश करने वाली।
  • भवानी: संसार की उत्पत्ति करने वाली।
  • विश्वमाता: जगत की माता।
  • विलासिनी: आनंदमयी।
  • रुद्राणी: रुद्र की पत्नी।
  • कमलासना: कमल के आसन पर विराजमान।
  • शुभप्रदा: शुभता देने वाली।
  • भक्तवत्सला: भक्तों से स्नेह करने वाली।
  • परमानन्ददा: परम आनंद देने वाली।
  • शान्ति: शांति का स्वरूप।
  • शुभानन्दगुणार्णवा: शुभ आनंद के गुणों का सागर।
  • नित्यसुन्दरसर्वाङ्गी: जिसके सभी अंग नित्य सुंदर हैं।
  • सच्चिदानन्दलक्षणा: सत्य, चेतना और आनंद का प्रतीक।

(ये 108 नाम माँ की समग्र शक्ति का परिचय देते हैं और भक्तों को आध्यात्मिक (spiritual) व भौतिक दोनों तरह के लाभ प्रदान करते हैं।)

अन्नपूर्णा जयंती का गहरा रहस्य (The Deep Secret of Annapurna Jayanti)

अन्नपूर्णा जयंती हर वर्ष मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व केवल माता के अवतरण (incarnation) का उत्सव नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरा दार्शनिक (philosophical) और सामाजिक रहस्य छिपा है।

रहस्य 1: अन्न के महत्व का बोध

जयंती हमें उस पौराणिक कथा की याद दिलाती है जब अन्न के अभाव में सृष्टि संकट में थी। यह हमें सिखाती है कि अन्न ही जीवन है, और उसका अपमान (disrespect) या बर्बादी (wastage) घोर पाप है। जयंती का मुख्य उद्देश्य अन्न के प्रति सम्मान और कृतज्ञता (gratitude) व्यक्त करना है।

रहस्य 2: शक्ति और शिव का संतुलन

यह जयंती देवी पार्वती के “अन्नपूर्णा” रूप को दर्शाती है, जो यह सिद्ध करता है कि ज्ञान (शिव द्वारा प्रदर्शित वैराग्य) और पोषण (माँ द्वारा दिया गया अन्न) के बीच एक संतुलन (balance) होना आवश्यक है। केवल वैराग्य से जीवन नहीं चलता; भौतिक जीवन के लिए अन्न की शक्ति भी जरूरी है।

रहस्य 3: गृहणी (Housewife) का सम्मान

भारतीय परंपरा में, घर की स्त्री को साक्षात् अन्नपूर्णा का स्वरूप माना जाता है। जयंती पर रसोईघर (kitchen) और चूल्हे की पूजा की जाती है। यह प्रथा समाज में यह संदेश देती है कि भोजन बनाने वाली और घर का भरण-पोषण करने वाली स्त्री का सम्मान (respect) करना कितना आवश्यक है। वह घर की वास्तविक अन्नपूर्णा है।

जयंती पर मुख्य कार्य

  • रसोई की पूजा – रसोईघर और चूल्हे/गैस को साफ करके उनकी पूजा की जाती है।
  • अन्न दान – जरूरतमंदों को अन्न, चावल और दाल का दान (donation) किया जाता है।
  • अक्षय भंडार की प्रार्थना – माता से प्रार्थना की जाती है कि घर के अन्न के भंडार कभी खाली न हों।

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