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मत्स्य द्वादशी 2025 – भगवान विष्णु ने क्यों लिया था मत्स्य अवतार? जानें तिथि, पूजा विधि और वेदों की रक्षा की पूरी कथा!

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क्या आप जानते हैं कि सृष्टि के पहले जल प्रलय (First Deluge) के दौरान किस अवतार ने वेदों की रक्षा की थी? यह थे भगवान विष्णु के प्रथम अवतार, ‘मत्स्य’ (Fish) रूप! मत्स्य द्वादशी का पावन पर्व इसी अद्भुत और कल्याणकारी अवतार को समर्पित है।

हर साल मार्गशीर्ष मास (अगहन) के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मत्स्य द्वादशी मनाई जाती है, जो हमें धर्म की रक्षा और ज्ञान के महत्व का स्मरण कराती है। आइए, इस विशेष दिन की तिथि, सरल पूजा विधि और उस महान कथा को विस्तार से जानते हैं जिसने वेदों को बचाया और मानवता का मार्ग प्रशस्त किया।

मत्स्य द्वादशी 2025 – तिथि और शुभ मुहूर्त (Date and Muhurta)

साल 2025 में मत्स्य द्वादशी का पर्व 02 दिसम्बर, 2025 को मनाया जाएगा।

  • द्वादशी तिथि प्रारंभ – 01 दिसंबर 2025, रात 08:30 बजे
  • द्वादशी तिथि समाप्त – 02 दिसंबर 2025, रात 10:45 बजे
  • मत्स्य द्वादशी (उदया तिथि) – सोमवार, 02 दिसंबर 2025

भगवान विष्णु ने क्यों लिया था मत्स्य अवतार? (The ‘Why’ Factor)

मत्स्य अवतार, भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों (Dashavatara) में सबसे पहला माना जाता है। इस अवतार को लेने के पीछे दो मुख्य कारण थे:

  • सृष्टि के आरंभ में, जब ब्रह्मा जी ध्यान में लीन थे, तब ‘हयग्रीव’ नामक एक अत्यंत बलशाली दैत्य ने ब्रह्मा जी से चारों वेदों (Four Vedas) को चुरा लिया। वेदों के हरण से संसार में ज्ञान का लोप हो गया और हर ओर अज्ञानता (Ignorance) का अंधेरा छा गया।
  • उसी समय, कल्प के अंत में एक भयंकर जल प्रलय (Great Flood) आने वाली थी, जिससे पूरी सृष्टि खतरे में थी। भगवान विष्णु ने धर्म, ज्ञान और मानवता को बचाने के लिए यह रूप धारण किया।

वेदों की रक्षा की पूरी कथा! (The Core Story of Vedic Protection)

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कृतयुग (Satyuga) के अंत में सत्यव्रत नामक एक पुण्यात्मा राजा थे, जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे। एक बार राजा सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान कर तर्पण कर रहे थे। तभी उनकी अंजुली (Cupped hands) में एक छोटी-सी मछली आ गई।

मछली ने राजा से प्रार्थना की कि वह उसे बड़े जीवों से बचाएं। राजा ने दयावश उसे एक जलपात्र (Water pot) में रख दिया। कुछ ही देर में मछली का आकार इतना बड़ा हो गया कि राजा को उसे तालाब में डालना पड़ा।

तालाब भी छोटा पड़ने पर राजा ने उसे झील और अंततः समुद्र में डाला। समुद्र में डालने पर वह मछली एक विशालकाय रूप (Gigantic form) में आ गई। तब राजा सत्यव्रत समझ गए कि यह कोई साधारण मछली नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु हैं।

भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में राजा को आने वाले सात दिनों में भयंकर जल प्रलय के बारे में बताया। उन्होंने राजा से कहा कि वे एक विशाल नौका (Boat) का निर्माण करें और उसमें सभी प्रकार की औषधियां, बीज (Seeds) और सप्त ऋषियों (Seven Sages) के साथ विराजमान हो जाएं।

जल प्रलय आने पर, मत्स्य रूपी भगवान ने उस नौका को अपने सींग से बांधकर सुरक्षित रखा। प्रलय के बीच, भगवान विष्णु ने दैत्य हयग्रीव का वध किया और उनसे चोरी हुए वेदों को वापस प्राप्त कर ब्रह्मा जी को सौंपा।

इस प्रकार, मत्स्य अवतार ने न केवल राजा सत्यव्रत और ऋषियों को बचाया, बल्कि वेदों की रक्षा करके ज्ञान और धर्म को भी नष्ट होने से बचाया। जल प्रलय समाप्त होने पर, राजा सत्यव्रत को वैवस्वत मनु (Vaivasvata Manu) की उपाधि मिली, जिन्होंने नई सृष्टि का आरंभ किया।

मत्स्य द्वादशी पूजा विधि (Puja Vidhi)

मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान विष्णु और उनके मत्स्य स्वरूप की पूजा करने से जीवन के सभी दुख दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

  • सामग्री – विष्णु जी की प्रतिमा, पीला वस्त्र, गंगाजल, चंदन, तुलसीदल, पीले फूल, फल, धूप, दीप, नैवेद्य (मिठाई)।
  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ पीले वस्त्र (Yellow clothes) धारण करें। पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करें और व्रत का संकल्प (Pledge) लें।
  • पूजा स्थल पर जल से भरा एक कलश (Pot) स्थापित करें। मत्स्य पुराण के अनुसार, चार कलश स्थापित करना अत्यंत शुभ माना जाता है, जो चारों समुद्रों का प्रतीक हैं।
  • एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं।
  • भगवान को चंदन का तिलक लगाएं, पीले फूल, तुलसीदल, धूप-दीप और नैवेद्य (विशेषकर मिठाई) अर्पित करें।
  • श्रद्धापूर्वक इस मंत्र का जाप करें – “ॐ मत्स्यरूपाय नमः”
  • मत्स्य अवतार की कथा का पाठ करें या सुनें। यह पूजा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा (Key element) है।
  • अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और सभी में प्रसाद वितरित करें। इस दिन जलाशय या नदी में मछलियों को आटे की गोली खिलाना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।

मत्स्य द्वादशी का महत्व (Significance)

  • यह पर्व हमें याद दिलाता है कि ज्ञान (Knowledge) ही सबसे बड़ा धन है और भगवान विष्णु ने इसकी रक्षा के लिए अवतार लिया।
  • सच्चे मन से व्रत और पूजा करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • इस दिन किए गए दान-पुण्य से घर में सुख, समृद्धि और धन-धान्य की वृद्धि होती है।

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