।। आरती ।।
शालिग्राम सुनो विनती मेरी ।
यह बरदान दयाकर पाऊं ।।
प्रात: समय उठी मंजन करके ।
प्रेम सहित सनान कराऊँ ।।
शालिग्राम सुनो विनती मेरी…
चन्दन धुप दीप तुलसीदल ।
वरन -बरन के पुष्प चढ़ाऊँ ।।
शालिग्राम सुनो विनती मेरी…
तुम्हरे सामने नृत्य करूँ नित ।
प्रभु घंटा शंख मृदंग बजाऊं ।।
शालिग्राम सुनो विनती मेरी…
चरण धोय चरणामृत लेकर ।
कुटुंब सहित बैकुण्ठ सिधारूं ।।
शालिग्राम सुनो विनती मेरी…
जो कुछ रुखा सूखा घर में ।
भोग लगाकर भोजन पाऊं ।।
शालिग्राम सुनो विनती मेरी…
मन वचन कर्म से पाप किये ।
जो परिक्रमा के साथ बहाऊँ ।।
शालिग्राम सुनो विनती मेरी…
ऐसी कृपा करो मुझ पर ।
जम के द्वार जाने न पाऊं ।।
शालिग्राम सुनो विनती मेरी…
माधोदास की बिनती एहि है ।
हरी दासन का दास कहाऊं ।।
शालिग्राम सुनो विनती मेरी ।
यह बरदान दयाकर पाऊं ।।
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