जय श्री श्याम! यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि करोड़ों भक्तों की अटूट आस्था का प्रतीक है। जब भी कोई भक्त विपदा में होता है, तो सबसे पहले जिसका नाम पुकारता है, वो हैं- खाटू श्याम जी!
क्या आप जानते हैं कि “हारे का सहारा” कहे जाने वाले ये देव, महाभारत काल के एक महापराक्रमी योद्धा थे? जिनकी एक प्रतिज्ञा ने उन्हें ‘शीश के दानी’ (Head Donor) बना दिया और स्वयं भगवान कृष्ण ने उन्हें कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया। आइए, हम वीर बर्बरीक (Veer Barbarik) के जन्म से लेकर उनके खाटू श्याम बनने तक की अज्ञात और प्रेरणादायक यात्रा का विस्तार से वर्णन करते हैं।
कौन थे वीर बर्बरीक? (Who Was Veer Barbarik?)
खाटू श्याम जी का मूल नाम बर्बरीक था। उनका परिचय महाभारत के सबसे शक्तिशाली वंशों में से एक से था:
- दादा – महाबली भीमसेन (पांडव)
- दादी – हिडिम्बा (राक्षसी)
- पिता – महाबली घटोत्कच
- माता – मोरवी (असुर मुर की पुत्री)
बर्बरीक के जन्म के समय उनके केश बब्बर शेर (Lion-like) जैसे थे, इसलिए उनका नाम बर्बरीक रखा गया। उनमें अपने दादा भीम का बल और दादी हिडिम्बा की मायावी शक्तियाँ समाहित थीं।
तीन अमोघ बाणों का रहस्य (Secret of the Three Invincible Arrows)
बर्बरीक ने अपनी माता की प्रेरणा से भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर, स्वयं भगवान शिव ने उन्हें तीन अचूक (Invincible) बाण प्रदान किए। ये बाण इतने शक्तिशाली थे कि अकेले ही तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर सकते थे।
इन बाणों की विशेषता
- पहला बाण उन सभी को चिह्नित करता था, जिनका वध करना है।
- दूसरा बाण चिह्नित किए गए सभी लक्ष्यों को नष्ट कर देता था।
- तीसरा बाण कार्य पूर्ण होने पर वापस तरकश (Quiver) में लौट आता था।
इसी असीम शक्ति के कारण बर्बरीक को ‘तीन बाण धारी’ (Teen Baan Dhari) भी कहा जाता है।
युद्धभूमि में एक अनोखी प्रतिज्ञा (A Unique Vow on the Battlefield)
जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ, तो वीर बर्बरीक ने भी युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी माता मोरवी को वचन दिया:
“माता! मैं उस पक्ष की ओर से युद्ध करूँगा जो हार रहा होगा और युद्ध में कमजोर पड़ जाएगा।”
यह वचन ही उनकी कहानी का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ (Turning Point) था।
कृष्ण की चिंता और परीक्षा
भगवान कृष्ण, जो स्वयं त्रिकालदर्शी (One who knows the past, present, and future) थे, जानते थे कि बर्बरीक के इन तीन बाणों से कौरव और पांडवों, दोनों की सेनाएं कुछ ही क्षणों में नष्ट हो जाएंगी। यदि बर्बरीक हारने वाले पक्ष में शामिल होते, तो कौरवों की जीत निश्चित थी, जिससे धर्म की स्थापना नहीं हो पाती। इसलिए, भगवान कृष्ण एक ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक के पास पहुँचे और उनकी शक्ति की परीक्षा लेने का निश्चय किया।
शीश का दान और अमरता का वरदान (The Offering of the Head)
कृष्ण ने ब्राह्मण वेश में बर्बरीक से पूछा कि तुम तीन बाणों से क्या कर सकते हो? बर्बरीक ने अभिमानपूर्वक कहा कि ये तीन बाण पूरी सेना को पल भर में समाप्त कर सकते हैं। कृष्ण ने एक पीपल के पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा कि क्या तुम इस पेड़ के सभी पत्तों को एक ही बाण से भेद सकते हो?
बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और बाण छोड़ा। बाण ने सभी पत्तों को छेद दिया और फिर सीधे कृष्ण के पैर पर चला गया, जहां उन्होंने एक पत्ता छिपा रखा था।
यह देखकर कृष्ण मुस्कुराए और कहा, “हे वीर! तुम्हारी शक्ति तो अद्भुत है, पर क्या तुम हमें दान में कुछ दे सकते हो?” बर्बरीक ने तुरंत हामी भरी। तब कृष्ण ने उनका शीश (Head) दान में माँगा।
बर्बरीक, अपने वचन के पक्के (True to his word), बिना किसी संकोच के हंसते-हंसते अपना शीश काटने को तैयार हो गए।
कलयुग के देव खाटू श्याम
बर्बरीक के इस महान बलिदान और दानवीरता से प्रसन्न होकर, भगवान कृष्ण ने उन्हें निम्न अमूल्य वरदान दिए:
- कलयुग के देव – “हे वीर! आज से तुम कलियुग में मेरे श्याम (कृष्ण) नाम से पूजे जाओगे।”
- हारे का सहारा – “तुम्हारा यह बलिदान अद्भुत है। आज से जो भी भक्त जीवन के किसी भी क्षेत्र में हार (Loss) कर तुम्हारे पास आएगा, तुम उसका सहारा बनोगे।”
- खाटू में निवास – उनका शीश वर्तमान राजस्थान के खाटू नामक स्थान पर स्थापित हुआ, इसीलिए वे खाटू श्याम के नाम से विख्यात हुए।
यह वरदान वीर बर्बरीक को क्षत्राणी (Warrior) धर्म के साथ-साथ ब्राह्मण (त्याग और ज्ञान) और वैश्य (सेवा) धर्म का सार देकर कलियुग का एकमात्र ऐसा देव बना गया, जो केवल भक्ति (Devotion) से प्रसन्न होते हैं।
श्याम बाबा के कुछ रोचक तथ्य (Interesting Facts About Shyam Baba)
- वाहन – लीला घोड़ा।
- प्रसिद्ध नाम – हारे का सहारा, शीश का दानी, तीन बाण धारी, लखदातार।
- मंदिर – राजस्थान के सीकर जिले में स्थित, खाटू श्याम मंदिर (Khatu Shyam Mandir)
- खासियत – दुनिया का शायद यह एकमात्र मंदिर है जहाँ शीश की पूजा होती है।
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