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श्री अहोई अष्टमी व्रत कथा एवं पूजा विधि

Shri Ahoi Ashtami Vrat Katha Avm Pooja Vidhi Hindi

MiscVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| अहोई अष्टमी व्रत पूजा विधि ||

  • प्रातः जल्दी स्नान किया जाता हैं.
  • इसमें दिन भर का निर्जला व्रत किया जाता हैं.
  • शाम में सूरज ढलने के बाद अहोई अष्टमी की पूजा की जाती हैं.
  • इसमें अहोई अष्टमी माता का चित्र बनाया जाता हैं और विधि विधान से उनका पूजन किया जाता हैं.
  • चौक बनाया जाता हैं. इस पर चौकी को रख उस पर अहोई माता एवम सईं का चित्र रखा जाता हैं.
  • सर्वप्रथम कलश तैयार किया जाता हैं. गणेश जी की स्थापना की जाती है, इनके साथ ही अहोई अष्टमी माता का चित्र रखा जाता हैं.
  • आजकल बाजारों में यह चित्र मिल जाता हैं.
  • पूजा के बाद कुछ मातायें जल एवम फलाहार ग्रहण करती हैं.
  • इस दिन कई स्त्रियाँ चांदी की माता बनाती हैं पूजा के बाद इन्हें माला में पिरो कर धारण करती हैं.
  • इस माला को दिवाली के बाद उतारा जाता हैं और बड़ो का आशीष लिया जाता हैं.

|| व्रत कथा ||

॥ श्री गणेशाय नमः ॥

प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपापोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी।

दैवयोग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था! वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई।

कुछ दिनों बाद उसका बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात् दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उसके हाथों एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात उसके सातों बेटों की मृत्यु हो गई।

यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा।

साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। तत्पश्चात् उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ती हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।

|| अहोई माता की जय ||

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