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श्री रोहिणी व्रत कथा एवं पूजा विधि

Rohini Vrat Katha Pooja Vidhi Hindi

MiscVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| रोहिणी व्रत कथा ||

प्राचीन कथा के अनुसार चंपापुरी राज्य में राजा माधवा, और रानी लक्ष्मीपति का राज्य था। उनके सात बेटे और एक बेटी थी। एक बार राजा ने बेटी रोहिणी के बारे में ज्योतिषी से जानकारी ली तो उसने बताया कि रोहिणी का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक के साथ होगा। इस पर इसके बाद राजा ने स्वयंवर का आयोजन किया, इसमें रोहिणी-अशोक का विवाह करा दिया गया। बाद में रोहिणी-अशोक राजा रानी बने।

एक समय हस्तिनापुर के वन में श्री चारण मुनिराज आए, उनके दर्शन के लिए राजा पहुंचे और धर्मोपदेश ग्रहण किया। बाद में पूछा कि उनकी रानी शांतचित्त क्यों है, तब उन्होंने बताया कि इसी नगर में एक समय में वस्तुपाल नाम का राजा था, जिसका धनमित्र नाम का मित्र था, जिसकी दुर्गंधा नाम की कन्या पैदा हुई।

लेकिन धनमित्र परेशान रहता था कि उसकी बेटी से विवाह कौन करेगा। लेकिन बाद में उसने धन का लालच देकर वस्तुपाल के बेटे श्रीषेण से दुर्गंधा का विवाह कर दिया। इधर दुर्गंधा की दुर्गंध से परेशान होकर श्रीषेण एक माह में ही कहीं चला गया।

इसी समय अमृतसेन मुनिराज वहां आए। धनमित्र और दुर्गंधा उनके दर्शन के लिए पुहंचे। यहां धनमित्र ने दुर्गंधा के भविष्य के विषय में पूछा तो उन्होंने बताया कि गिरनार पर्वत के पास एक नगर में भूपाल नाम के राजा का राज्य था। राजा की सिंधुमती नाम की रानी थी।

एक दिन राजा रानी वन जा रहे थे, तभी मुनिराज को देखा तो रानी को घर लौटकर आहार की व्यवस्था करने को कहा। रानी घर तो लौट आई लेकिन गुस्से में मुनिराज के लिए कड़वी तुम्बी का आहार तैयार कराया, इससे मुनिराज को बहुत कष्ट और उनकी मृत्यु हो गई।

राजा को इसका पता चला तो उन्होंने रानी को महल से निकाल दिया। पाप के कारण रानी को कोढ़ भी हो गया और आखिर में उसकी मृत्यु हो गई और नर्क में गई। यहां दुख भोगने के बाद पहले वह पशु योनि में उत्पन्न हुई और बाद में तुम्हारे घर दुर्गंधा नाम की कन्या के रूप में पैदा हुई।

इस पर धनमित्र ने ऐसे व्रत के बारे में पूछा जिससे उसका पाप कटे, जिसपर मुनि अमृतसेन ने उन्हें रोहिणी व्रत का महत्व और विधि बताई। दुर्गंधा ने ऐसा ही किया और संन्यास व मृत्यु के बाद स्वर्ग गई, वहां से तुम्हारी रानी बनी।

इसके बाद राजा अशोक ने अपनी कहानी के बारे में पूछा तो मुनिराज ने बताया कि भील के जन्म में तुमने भी मुनिराज को कष्ट दिए थे। इससे मृत्यु के बाद नर्क होते हुए और कई योनियों में भ्रमण करते हुए व्यापारी के घर पैदा हुए। इसके बाद मुनिराज के बताने पर रोहिणी व्रत किया और अगले जन्म में राजा बने। इस तरह राजा, रानी रोहिणी व्रत के प्रभाव से मोक्ष को प्राप्त किए।

|| रोहिणी व्रत पूजा विधि ||

  • रोहिणी व्रत रखने वाले व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए।
  • नए वस्त्र धारण करने के बाद व्रत का संकल्प लें।
  • सूर्य देव को अर्घ्य देते हुए ॐ सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें।
  • एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर मां लक्ष्मी की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें। मां लक्ष्मी को नए वस्त्र और श्रृंगार अर्पित करें।
  • इसके बाद देवी लक्ष्मी को फल, फूल, धूप-दीप आदि चढ़ाएं।
  • लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें।
  • मां लक्ष्मी को भोग लगाएं और आरती करें।
  • इस व्रत का पारण रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर मार्गशीर्ष नक्षत्र में किया जाता है।
  • शाम के समय व्रत का पारण करें और चंद्र को अर्घ्य दें।

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