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श्री विजया एकादशी व्रत कथा एवं पूजा विधि

Shri Vijaya Ekadashi Vrat Katha Avm Pooja Vidhi Hindi

MiscVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| पूजा विधि ||

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
  • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
  • भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
  • भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
  • अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
  • भगवान की आरती करें।
  • भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा
  • माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
  • इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
  • इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।

|| व्रत विधि ||

  • इस दिन भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर उनकी धूम, दीप, पुष्प, चंदन, फूल, तुलसी आदि से आराधना करें, जिससे कि समस्त दोषों का नाश हो और आपकी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकें।
  • भगवान विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है इसलिए इस दिन तुलसी को आवश्यक रूप से पूजन में शामिल करें।
  • भगवान की व्रत कथा का श्रवण और रात्रि में हरिभजन करते हुए उनसे आपके दुखों का नाश करने की प्रार्थना करें।
  • रात्रि जागकरण का पुण्य फल आपको जरूर ही प्राप्त होगा। व्रत धारण करने से एक दिन पहले ब्रम्हचर्य धर्म का पालन करते हुए व्रती को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।
  • व्रत धारण करने से व्यक्ति कठिन कार्यों एवं हालातों में विजय प्राप्त करता है।

|| विजया एकादशी व्रत कथा ||

एक बार युधिष्ठिर के मन में फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी व्रत के बारे में जानने की इच्छा हुई तब उन्होंने इसके बारे में भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- भगवान श्रीकृष्ण ने एकादशी व्रत के बारे में उनको बताते हुए कहा कि फाल्गुन कृष्ण एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। विजया एकादशी व्रत कार्यों में सफलता के लिए है। इस व्रत को करने से पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष भी मिलता है। इसकी कथा इस प्रकार है-

एक बार नारद जी ने ब्रह्मदेव से विजया एकादशी व्रत की विधि और महत्व के बारे में पूछा, तब ब्रह्म देव ने उनको बताया कि त्रेता युग में कैकेयी ने जब दशरथ जी से राम को वनवास भेजने को कहा तो पिता की आज्ञा से श्री राम पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 साल के लिए वन चले गए। उस दौरान रावण माता सीता का हरण कर लेता है। फिर प्रभु राम जी से हनुमान की मुलाकात होती है। हनुमान की मदद से वानर सेना सीता की खोज कर लेती है और लंका जाने के लिए समुद्र पार करने का उपाय सोचा जाता है।

एक दिन लक्ष्मण ने प्रभु राम को बताया कि पास में ही वकदालभ्य ऋषि का आश्रम है, वहां चल कर वकदालभ्य ऋषि से समुद्र पार करने और लंका जाने का सुझाव मांगते हैं। इस पर श्रीराम वकदालभ्य ऋषि के आश्रम में जाते हैं और ऋषि को प्रणाम करते हैं। समुद्र पार कैसे किया जाए? इस समस्या के समाधान के लिए उनके पास आने का प्रयोजन बताते हैं।

तब वकदालभ्य ऋषि ने कहा कि आप फाल्गुन कृष्ण एकादशी को विजया एकादशी का व्रत विधि विधान से करें और भगवान विष्णु का पूजन करें। यह व्रत आप अपने अनुज, सेनापति और अन्य प्रमुख साथियों के साथ कर सकते हैं। इस व्रत को करने से आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा और आप लंका पर विजय प्राप्त करेंगे।

वकदालभ्य ऋषि के बताए अनुसार श्रीराम ने अपने सभी प्रमुख सहयोगियों के साथ विजया एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से वानर सेना सहित प्रभु राम समुद्र को पार करके लंका पहुंच गए। रावण के साथ भीषण युद्ध हुआ और वह मारा गया। श्रीराम की लंका पर विजय हुई और माता सीता को लेकर वे अयोध्या लौट गए।

जो भी व्यक्ति विधि विधान से विजया एकादशी का व्रत करता है, उसे कठिन से कठिन कार्यों में सफलता मिलती है। ब्रह्म देव ने नारद जी को बताया था कि विजया एकादशी का व्रत मनुष्यों को हर कार्य में सफलता देने वाली है।

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