भगवान विष्णु को समर्पित पवित्र वामन द्वादशी प्रति वर्ष 2 बार मनाई जाती है। साल 2025 में वामन द्वादशी का व्रत बुधवार 09 अप्रैल 2025 को पड़ रहा है। एक चैत्र माह की शुक्ल द्वादशी तिथि को, और दूसरी बार भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को। विष्णु जी के दस अवतारों में से वामन उनका पांचवां अवतार है। वामन द्वादशी का व्रत जातक के शत्रुओं का नाश करने वाला होता है। ऐसा माना जाता है कि यदि इस दिन श्रावण नक्षत्र हो, तो इस व्रत का महत्व कई गुना अधिक हो जाता है। भक्तों को इस दिन उपवास रखकर भगवान वामन की स्वर्ण प्रतिमा बनवा कर पंचोपचार करना चाहिए, और विधि-विधान से भगवान विष्णु के इस स्वरूप का पूजन करना चाहिए।
इस व्रत के फलस्वरूप श्री हरि अपने भक्तों को जीवन में संपूर्ण सुख व वैभव प्रदान करते हैं, और मरणोपरांत अपने निज धाम वैकुंठ धाम जाने का वरदान देते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस द्वादशी तिथि पर श्री हरि के वामन अवतार की पूजा करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। कहा जाता है कि यदि आप प्रतिदिन भगवान वामन को अर्पित किए हुए शहद का सेवन करते हैं, तो हर प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलेगी। वामन द्वादशी पूजन व व्रत से व्यावसायिक सफलता मिलती है व पारिवारिक क्लेश दूर होता है।
वामन अवतार कथा
भगवान विष्णु ने स्वर्ग लोक पर इन्द्र देव के अधिकार को पुनःस्थापित करवाने के लिए वामन अवतार लिया था। भगवान विष्णु के परमभक्त और अत्यन्त बलशाली दैत्य राजा बलि ने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। भगवान विष्णु के परम भक्त और दानवीर राजा होने के बावजूद, बलि एक क्रूर और अभिमानी राक्षस था। बलि अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर देवताओं और ब्राह्मणों को डराया और धमकाया करता था। अत्यन्त पराक्रमी और अजेय बलि अपने बल से स्वर्ग लोक, भू लोक और पाताल लोक का स्वामी बन बैठा था।
स्वर्ग से अपना अधिकार छीन जाने पर इन्द्र देव अन्य देवताओं के साथ भगवान विष्णु के समक्ष पहुँचे और अपनी पीड़ा बताते हुए सहायता की विनती की। भगवान विष्णु ने इन्द्र देव को आश्वासन दिया कि वे तीनों लोकों को बलि के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने हेतु माता अदिति के गर्भ से वामन अवतार के रूप में जन्म लेंगे।
भगवान विष्णु इन्द्र से किये अपने वचन को पूरा करने के लिए वामन रूप धारण कर उस सभा में पहुँचे जहाँ राजा बलि अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। वामन देव ने भिक्षा के रूप में बलि से तीन पग धरती की याचना की। बलि जो कि एक दानवीर राजा थे, सहर्ष रूप से वामन देव की इच्छा पूर्ति करने के लिए सहमत हो गये।
तत्पश्चात, वामन देव ने अत्यन्त विशाल रूप धारण कर अपने पहले पग से ही समस्त भू लोक को नाप लिया। दूसरे पग से उन्होंने स्वर्ग लोक को नाप लिया। अन्ततः, जब वामन देव अपना तीसरा पग उठाने को हुये तब राजा बलि को यह ज्ञात हुआ कि यह भिक्षुक कोई साधारण ब्राह्मण नहीं अपितु स्वयं भगवान विष्णु हैं।
अतः बलि ने तीसरे पग के लिए अपना शीर्ष वामन देव के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। तब भगवान विष्णु ने बलि की उदारता का सम्मान करते हुए, उसका वध करने के बजाय उसे पाताल लोक में धकेल दिया। भगवान विष्णु ने साथ ही बलि को यह वरदान भी दिया कि वह वर्ष में एक बार अपनी प्रजा के समक्ष धरती पर उपस्थित हो सकता है। राजा बलि की धरती पर वार्षिक यात्रा को केरल में ओणम तथा अन्य भारतीय राज्यों में बलि-प्रतिपदा के रूप में मनाया जाता है।
वामन द्वादशी के अनुष्ठान
वामन द्वादशी के पवित्र दिन पर, अनुष्ठानों को आरंभ करने का सबसे आदर्श तरीका ब्राह्मणों को दही, चावल, और भोजन दान करना है क्योंकि इसे वामन द्वादशी के दिन अत्यधिक शुभ माना जाता है।
भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए, भक्त इस दिन उपवास के साथ-साथ पूजा और अन्य अनुष्ठान भी करते हैं। विष्णु सहस्रनाम और अन्य विभिन्न मंत्रों का पाठ किया जाता है। पढ़े विष्णु मंत्र भगवान विष्णु के नाम का 108 बार पाठ करते हुए, भक्त भगवान को अगरबत्ती, दीपक और फूल चढ़ाते हैं। भक्त शाम को वामन कथा सुनते हैं और फिर भगवान की आरती और भोग अर्पित करने के बाद, वे भक्तों को प्रसाद वितरित करते हैं।
वामन द्वादशी पूजा विधि
इस दिन भगवान विष्णु को उनके वामन रूप में पूजा जाता है। इस दिन उपासक को सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। नित्यक्रिया के बाद स्नान कर और फिर भगावन विष्णु का ध्यान कर दिन की शुरुआत करनी चाहिए। उसके बाद, दिन की शुरुआत में आपको वामन देव की सोने या मिट्टी से बनी हुई प्रतिमा की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए।
इस दिन उपवास का भी विशेष महत्व है, इसलिए भक्त भगवान विष्णु के अवतार वामन देव को प्रसन्न करने के लिए उपवास भी रखते हैं। इस दिन पूजा करने का सबसे उत्तम समय श्रवण नक्षत्र में होता है। इस नक्षत्र में भगवान वामन देव की सोने या मिट्टी से बनी प्रतिमा के सामने बैठकर वैदिक रीति-रिवाजों से पूजा की जानी चाहिए।
इस दौरान भगवान वामन देव की व्रत कथा को पढ़ना या सुनना चाहिए। कथा के समापन के बाद भगवान को भोग लगाकर प्रसाद वितरित करना चाहिए, और फिर ही उपवास खोलना लाभकारी होगा।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन चावल, दही और मिश्री का दान करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है। इस दिन भक्त वामन देव की पूजा पूरे वैदिक विधि और मंत्रों के साथ करते हैं, तो उनके जीवन की सभी समस्याओं का निवारण हो जाता है, अर्थात भगवान वामन अपने उपासकों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
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