।। वरलक्ष्मी व्रत पूजा विधि ।।
- वरलक्ष्मी व्रत रखने वाली महिलाओं और पुरुषों को इस दिन प्रातः काल स्नान कर लेना चाहिए।
- सबसे पहले पूजा वाले स्थान पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र करने के बाद व्रत रखने का संकल्प करें।
- मां लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति को लाल कपड़े के ऊपर स्थापित कर लें।
- इसके बाद अक्षत के ऊपर कलश में जल भरकर रख लें।
- कलश को चारों तरफ से चंदन लगा लें।
- पूजा के बाद व्रर लक्ष्मी व्रत की कथा का पाठ करें।
- आरती करके सभी भक्तजनों के बीच प्रसाद बंटवाये।
।।वरलक्ष्मी व्रत कथा।।
हिंदू धर्म में वरलक्ष्मी व्रत की अपनी एक अनूठी मान्यता है, जिसका प्रचलन महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में देखने को मिलता है। इस व्रत के साथ कईं सारी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, मगर हम आपको इससे जुड़ी सबसे सुंदर कथा के बारे में बता रहे हैं। यह कथा स्वयं महादेव ने देवी पार्वती को सुनाई थी। इस कथा के अनुसार, कदाचित मगध राज्य के कुंडी नामक एक नगर हुआ करता था और इसका निर्माण स्वर्ग की कृपा से संभव हुआ था।
कुंडी नामक इस नगर में, चारुमति नाम की एक महिला अपने पूरे परिवार के साथ रहती थी। चारुमति, माता लक्ष्मी की एकनिष्ठ भक्त थी और नित्य उनकी पूजा-आराधना में खुद को लीन रखती थी। अपने सास-ससुर, पति की नित्य सेवा करते हुए, वे एक आदर्श नारी की तरह जीवन यापन किया करती थी।
एक दिन जब चारुमति सो रही थी, तब उसे सपने में माता लक्ष्मी के दर्शन प्राप्त हुए। माता ने उसे स्वप्न में ही इस वरलक्ष्मी व्रत के बारे में बताया और इसका निष्ठापूर्वक पालन करने के लिए कहा। जब अगली सुबह, चारुमति की नींद खुली, तो उसे माता लक्ष्मी की कही हुई बातों का स्मरण हुआ।
चारुमति ने तब नगर की बाकी सारी महिलाओं को, वरलक्ष्मी व्रत के बारे में बताया। सारी महिलायें माता लक्ष्मी की इस पूजा को करने के लिए तैयार हो गईं। तब चारुमति सहित सभी महिलाओं ने विधिवत वरलक्ष्मी व्रत रखते हुए, देवी लक्ष्मी की पूजा की तैयारियां करने लगीं।
विधिवत पूजा के समापन के पश्चात जब सभी महिलाएं कलश की परिक्रमा करने लगीं, तो उन्होंने देखा, कि उनका शरीर स्वर्ण आभूषणों से लद गया है। साथ ही, उन सभी के घर भी स्वर्ण के बन गए और उनके सामने हाथी, घोड़ा इत्यादि कई पशु विचरण करने लगे। यह दृश्य देखकर बाकी महिलाएं अत्यंत विस्मित हुईं और चारुमति का गुणगान करने लगीं, क्योंकि उसने ही महिलाओं को इस व्रत के बारे में बताया था।
चारुमति ने तब उन महिलाओं से कहा, कि यह सब माता लक्ष्मी की ही कृपा का प्रसाद है। इसके बाद वरलक्ष्मी व्रत की महिमा, नगर-नगर फैलने लगी और महिलाओं ने बड़ी निष्ठा के साथ इस व्रत का पालन करना आरंभ किया। तभी से वरलक्ष्मी व्रत, श्रावण महीने की दशमी तिथि को पालित किया जाने लगा।
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