ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मां गंगा हस्त नक्षत्र, व्यतीपात योग, गर करण, आनंद योग में ही शिव की जटाओं से पृथ्वी पर उतरी थीं। इसलिए हस्त नक्षत्र में पूजा-पाठ और मांगलिक कार्य पूर्णत: सफल माने जाते हैं।
गंगा दशहरा का दिन मोक्षदायिनी गंगा माता का पूजन पितरों को तारने, पुत्र, पौत्र और मनोवांछित फल प्रदान करने वाला माना गया है। इस दिन 10 चीजें अन्न, जल, फल, वस्त्र, सुहाग सामग्री, घी, नमक, तेल, शक्कर और स्वर्ण दान देना चाहिए।
गंगा दशहरा 2024 मुहूर्त
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि, 16 जून 2024 को प्रातः 02:32 बजे से आरंभ होगी और अगले दिन, 17 जून 2024 को प्रातः 04:43 बजे पर समाप्त होगी।
- हस्त नक्षत्र का आरंभ – 15 जून 2024, सुबह 08:14 बजे
- हस्त नक्षत्र का समाप्ति – 16 जून 2024, सुबह 11:13 बजे
- व्यतीपात योग का आरंभ – 14 जून 2024, रात 07:08 बजे
- व्यतीपात योग का समाप्ति – 15 जून 2024, रात 08:11 बजे
|| गंगा दशहरा के पूजन विधि ||
- गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य के शरीर, मन और वाणी के ये दस प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।
- गंगा नदी में स्नान न कर पाने की स्थिति में घर के पास किसी नदी या तालाब में स्नान कर सकते हैं।
- यदि वह भी संभव न हो तो घर के पानी में गंगा जल मिलाकर मां गंगा का ध्यान करते हुए स्नान-ध्यान करना चाहिए।
- गंगा दशहरा की पूजा और दान में शामिल की जाने वाली वस्तुओं की संख्या दस होनी चाहिए।
- गंगा नदी में दस बार डुबकी भी लगानी चाहिए।
- स्नान के बाद मां गंगा की पूजा करनी चाहिए।
- इस दौरान गंगा जी के मंत्र का जाप करना लाभकारी होता है।
- गंगा के साथ-साथ राजा भागीरथ और हिमालय देव की भी पूजा करनी चाहिए।
- इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने गंगा जी के तेज वेग को अपनी जटाओं में धारण कर लिया है।
|| गंगा दशहरा व्रत कथा ||
अयोध्या के महाराज राजा दशरथ और श्री राम को आप सभी जानते होंगे, उनके ही पुर्वज राजा भागीरथी को अपने पूर्वजों के तर्पण के लिए गंगाजल की आवश्यकता पड़ी थी। तब उनके पास गंगाजल नहीं था क्योंकि उस समय गंगा जी केवल स्वर्ग में ही बहा करती थीं। यह जानकर राजा भागीरथी बहुत दुखी हुए और मां गंगा को पृथ्वी पर बुलाने के लिए तपस्या करने के लिए चले गए।
उन्होंने सालों तक कठोर तपस्या की लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली जिसके बाद राजा भागीरथी दुखी होकर कैलाश पर्वत चले गए और वहां उन्होंने फिर से कठोर तपस्या की जिसे देखकर मां गंगा राजा से प्रसन्न हुई और उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि आपकी क्या इच्छा है जिसे मैं पूरा कर सकती हूं। मां गंगा को अपने सामने देखकर राजा बहुत खुश हुए और उन्हें धरती पर आने के लिए आग्रह किया।
भागीरथी के आग्रह सुनकर मां गंगा राजा के साथ धरती पर आने के लिए राजी हो गई। लेकिन इसमें भी राजा के सामने एक समस्या खड़ी हुई। मां गंगा (आखिर क्यों महाभारत में गंगा ने मार दिया था अपने 7 बेटों को) का प्रवाह बहुत तेज था अगर वह धरती पर बहती तो आधी पृथ्वी उनके वेग से बह जाती। राजा के इस समस्या का समाधान और कोई नहीं बल्की महादेव बस कर सकते थे, ऐसे में राजा भागीरथी भगवान शिव की तपस्या करनी प्रारंभ की। भागीरथी कभी निर्जल तपस्या करते थे, तो कभी पैर के अंगूठे पर।
राजा की कठोर तपस्या से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और राजा के सामने प्रकट हुए और राजा से आशीर्वाद मांगने के लिए कहा। तब राजा ने भगवान शिव से निवेदन किया कि आप मां गंगा के वेग को अपनी जटा में बांध लें। भगवान भोलेनाथ ने राजा की इच्छा स्वीकार की और ब्रह्मा जी अपने कमंडल से धारा प्रवाहित किए और शिव जी मां गंगा को अपनी जटा में बांध लिए।
करीब 30-32 दिनों तक मां गंगा शिव जी के जटा में बंधी रहीं फिर ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को शिव जी ने अपनी जटा को खोली और मां गंगा को धरती में जाने को कहा। राजा ने मां गंगा के पृथ्वी पर आने के लिए हिमालय के पहाड़ियों के बीच रास्ता बनाया और मां गंगा को धरती पर आने के लिए निवेदन किया।
जब मां गंगा धरती पर आई तब राजा ने उनके जल से अपने पूर्वजों का तर्पण किया। जिस दिन मां गंगा धरती पर आई थी उस दिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पड़ी थी जिसे बाद से इस तिथी को गंगा दशहरा के पर्व के रूप में जाना गया। गंगा दशहरा को मां गंगा के धरती पर आगमन के उत्सव मनाया जाता है।
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