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वट सावित्री व्रत! पतिव्रता का प्रतीक, जानिए व्रत कथा, महत्व, पूजन विधि और लाभ

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वट सावित्री व्रत, हिंदू धर्म में सुहागिन स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत जेष्ठ माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है और इस दिन पत्नियां अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। वट सावित्री व्रत की कहानी पतिव्रता सावित्री के अटूट प्रेम और सतीत्व का प्रतीक है।

वट सावित्री व्रत का मुख्य महत्व पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करना है। यह व्रत पति-पत्नी के बीच अटूट प्रेम और सौहार्द का भी प्रतीक है। वट वृक्ष को भी इस व्रत में पूजा जाता है। वट वृक्ष को दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है और इसकी पूजा करने से पति को लंबी आयु प्राप्त होती है।

वट सावित्री पूजा मुहूर्त

  • अमावस्या तिथि प्रारम्भ – 5 जून, 2024 को शाम 07:54 बजे
  • अमावस्या तिथि समाप्त – 6 जून, 2024 को शाम 06:07 बजे

वट सावित्री व्रत पूजा विधि

  • इस पवित्र दिन, सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें।
  • घर के मंदिर में दीप जलाएं।
  • इस पवित्र दिन, वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है।
  • वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की मूर्ति रखें।
  • फिर मूर्ति और वृक्ष पर जल अर्पित करें।
  • इसके बाद, सभी पूजन सामग्री अर्पित करें।
  • लाल कलावा को वृक्ष में सात बार परिक्रमा करते हुए बांधें।
  • इस दिन, व्रत कथा भी सुनें।
    इस दिन, भगवान का अधिक से अधिक ध्यान दें।

वट सावित्री व्रत कथा

विवाहित महिलाओं के बीच अत्यधिक प्रचलित ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन आने वाले सावित्री व्रत कथा निम्न प्रकार से है: भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था। भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी।

उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि: राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने के कारण से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।

कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।

ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हैं आप? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं। एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।

ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए। सावित्री ने उनसे कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए।

इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है।

सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।
सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी। समय बीतता चला गया। नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया।

हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये साथ में सावित्री भी गईं। जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये। तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये। सावित्री अपना भविष्य समझ गईं।

सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। तभी वहां यमराज आते दिखे। यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं।

यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है। लेकिन सावित्री नहीं मानी।

सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो।

  1. सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा ऐसा ही होगा। जाओ अब लौट जाओ। लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ। सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा।
  2. सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें। यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ। लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा।
  3. इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया। सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।

सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े। दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।

अतः पतिव्रता सावित्री के अनुरूप ही, प्रथम अपने सास-ससुर का उचित पूजन करने के साथ ही अन्य विधियों को प्रारंभ करें। वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से उपवासक के वैवाहिक जीवन या जीवन साथी की आयु पर किसी प्रकार का कोई संकट आया भी हो तो वो टल जाता है।

वट सावित्री व्रत के लाभ

  • वट सावित्री व्रत, हिंदू धर्म में सुहागिन स्त्रियों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि अनेक लाभों से भी युक्त है।
  • यह व्रत का मुख्य लाभ है। व्रत के माध्यम से स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्ध वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।
  • यह व्रत पतिव्रता सावित्री के अटूट प्रेम और सतीत्व का प्रतीक है। व्रत रखने वाली स्त्रियां सावित्री की तरह ही पति के प्रति समर्पित और दृढ़ रहती हैं।
  • व्रत के प्रभाव से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
  • यह व्रत स्त्रियों को नकारात्मक शक्तियों और बुरी आत्माओं से बचाता है।
  • संतानहीन स्त्रियों के लिए यह व्रत संतान प्राप्ति का वरदान माना जाता है।
  • यह व्रत महिलाओं को आत्मविश्वास और शक्ति प्रदान करता है।
  • इस व्रत को रखने से धार्मिक पुण्य प्राप्त होता है।
  • व्रत के माध्यम से स्त्रियों को मानसिक शांति और संतोष प्राप्त होता है।
  • यह व्रत स्त्रियों में सकारात्मक सोच और दृष्टिकोण विकसित करता है।
  • व्रत रखने से स्त्रियों में संयम और अनुशासन की भावना विकसित होती है।
  • वट वृक्ष की पूजा करने से पर्यावरण संरक्षण का संदेश मिलता है।
  • यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि व्रत का फल श्रद्धा और विश्वास के साथ रखने पर ही प्राप्त होता है।
  • वट सावित्री व्रत रखने से स्त्रियां कई तरह के रोगों से मुक्ति प्राप्त कर सकती हैं।
  • व्रत के प्रभाव से ग्रहों की शुभता आती है, जिससे व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
  • व्रत के साथ-साथ यदि कोई मनोकामना की जाए तो उसकी पूर्ति होने की संभावना बढ़ जाती है।

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