|| विनायक चतुर्थी व्रत कथा ||
विनायक चतुर्थी की व्रत कथा का वर्णन अनेक पुराणों में मिलता है, विशेषतः यह कथा भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी से जुड़ी हुई है।
शिव-पार्वती का चौपड़ खेल और बालक का निर्णय
एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के तट पर चौपड़ का खेल खेल रहे थे। खेल के दौरान यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि विजेता कौन होगा और पराजय किसे प्राप्त होगी? इस दुविधा को दूर करने के लिए शिव जी ने घास-फूस से एक बालक का निर्माण किया और उसमें प्राण डालकर उसे न्यायाधीश बना दिया।
खेल तीन बार खेला गया और हर बार माता पार्वती ही जीतीं, किंतु वह बालक भूलवश हर बार भगवान शिव को विजेता घोषित करता रहा। बालक के इस निर्णय से माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उसे अपाहिज होने का श्राप दे दिया। बालक ने अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी।
तब माता पार्वती ने कहा कि शीघ्र ही नागकन्याएं यहां आएंगी जो भगवान गणेश की पूजा करेंगी। उनके कहे अनुसार तुम भी व्रत करना, जिससे तुम्हें श्राप से मुक्ति मिलेगी। बालक ने विधिपूर्वक गणेश जी का व्रत किया। इससे प्रसन्न होकर श्री गणेश जी ने उसे पुनः संपूर्ण स्वरूप प्रदान किया और भगवान शिव और माता पार्वती के पास पहुंचने का वरदान दिया।
बालक जब कैलाश पर्वत पहुंचा, तो उसने पूरी कथा भगवान शिव को सुनाई। माता पार्वती उस दिन से शिव जी से रूठ गई थीं। तब भगवान शिव ने भी बालक के अनुसार 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती का क्रोध शांत हो गया।
भगवान शिव द्वारा व्रत की विधि जानकर माता पार्वती को भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा हुई। तब उन्होंने भी 21 दिन तक गणेश जी का व्रत किया और दूर्वा, फूल, लड्डुओं से पूजन-अर्चन किया। व्रत के अंतिम दिन कार्तिकेय माता पार्वती से मिलने आए। तभी से यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया और ऐसा विश्वास है कि यह व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करता है।
पृथ्वी की परिक्रमा करने की कथा और गणेश जी की बुद्धिमत्ता
एक अन्य प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार देवगण अनेक संकटों से घिरे हुए थे। वे भगवान शिव से सहायता मांगने कैलाश पर्वत पहुंचे। उस समय भगवान शिव के साथ कार्तिकेय और गणेश जी भी उपस्थित थे।
शिव जी ने दोनों पुत्रों से पूछा, “तुम दोनों में से कौन देवताओं की सहायता के लिए उपयुक्त है?” दोनों ने स्वयं को सक्षम बताया। तब शिव जी ने परीक्षा लेते हुए कहा, “जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, वही देवताओं की सहायता करेगा।”
कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर सवार होकर निकल पड़े, जबकि गणेश जी सोच में पड़ गए। उनके वाहन चूहे पर पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करना कठिन था। फिर उन्होंने एक गूढ़ निर्णय लिया, उन्होंने अपने माता-पिता, भगवान शिव और माता पार्वती की सात बार परिक्रमा की और उन्हें नमस्कार किया।
जब कार्तिकेय लौटे, तो उन्होंने स्वयं को विजेता घोषित किया। तब शिव जी ने गणेश जी से पूछा कि उन्होंने पृथ्वी की परिक्रमा क्यों नहीं की? गणेश जी ने उत्तर दिया:
“माता-पिता के चरणों में ही समस्त ब्रह्मांड है। उनकी परिक्रमा ही सच्ची पृथ्वी परिक्रमा है।”
इस उत्तर से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने श्री गणेश को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा करने वालों के तीनों ताप ,दैहिक, दैविक और भौतिक दूर होंगे। उन्हें सुख, समृद्धि, पुत्र-पौत्र, धन-वैभव की प्राप्ति होगी और उनके जीवन में कोई अभाव नहीं रहेगा।
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