॥ आरती ॥
आरति करत यसोदा प्रमुदित,
फूली अङ्ग न मात।
बल-बल कहि दुलरावत
आनन्द मगन भई पुलकात॥
आरति करत यसोदा प्रमुदित…
सुबरन-थार रत्न-दीपावलि
चित्रित घृत-भीनी बात।
कल सिन्दूर दूब दधि
अच्छत तिलक करत बहु भाँत॥
आरति करत यसोदा प्रमुदित…
अन्न चतुर्विध बिबिध
भोग दुन्दुभि बाजत बहु जात।
नाचत गोप कुम्कुमा
छिरकत देत अखिल नगदात॥
आरति करत यसोदा प्रमुदित…
बरसत कुसुम निकर-सुर-नर-मुनि
व्रजजुवती मुसकात।
कृष्णदास-प्रभु गिरधर को
मुख निरख लजत ससि-काँत॥
आरति करत यसोदा प्रमुदित…
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