|| गुरु गोबिंद सिंह जी के 52 हुक्म ||
गुरु गोबिंद सिंह जी, सिख धर्म के दसवें गुरु, ने अपने अनुयायियों के जीवन को एक धार्मिक, नैतिक और अनुशासित मार्ग पर चलाने के लिए ५२ हुक्म (आदेश) दिए। ये हुक्म न केवल सिख समुदाय के लिए बल्कि हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इन हुक्मों का उद्देश्य व्यक्ति को सच्चाई, ईमानदारी और धर्म की राह पर चलाना है।
५२ हुक्म सिख धर्म के दशम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिए गए ५२ उपदेश हैं। उन्होंने यह उपदेश १७०८ में नांदेड़ (वर्तमान महाराष्ट्र) में दिए थे। ये हुक्म खालसा पंथ की आचार संहिता का आधार हैं। खालसा के अनुयायी इन सभी हुक्मों का पालन करते हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जी के ये ५२ हुक्म हर सिख के जीवन में आचरण और व्यवहार के मूल सिद्धांतों को स्थापित करते हैं। इनका पालन करने से व्यक्ति आध्यात्मिकता और मानवता की राह पर अग्रसर होता है।
|| गुरु गोबिंद सिंह के ५२ उपदेशों की सूची ||
- धर्म दी किरत करनी – धर्म की कीर्ति करना।
- दसवंद देना – कमाई का दसवाँ हिस्सा दान में देना।
- गुरबाणी कंठ करनी – गुरबाणी (गुरु की वाणी) याद करना।
- अमृत वेले उठना – सूर्योदय से पहले उठना।
- सिख सेवक दी सेवा रूचि नाल करनी – श्रद्धा से गुरसिखों की सेवा करना।
- गुरबाणी दे अर्थ सिख विद्वानों से पढ़ने – गुरसिख विद्वानों से गुरबाणी के अर्थ समझना।
- पंज ककार दी रेहत दिरीह कर रखनी – पाँच ककार (कड़ा, कच्छा, कृपाण, केस, कंघा) की मर्यादा का पालन करना।
- शबद दा अभ्यास करना – जीवन में शबद (गुरबाणी) का अभ्यास करना।
- सत स्वरूप सतगुर दा ध्यान धरना – सच्चे गुरु (भगवान) का ध्यान करना।
- गुरु ग्रंथ साहिब जी नू गुरु मानना – श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को गुरु मानना।
- कारजां दे आरम्भ विच अरदास करनी – सभी कार्यों की शुरुआत अरदास से करना।
- जन्म, मरण, विआह मोके जपजी दा पाठ करना – जन्म, मृत्यु, और विवाह के समय जपजी साहिब का पाठ करना।
- जब तक कड़ा प्रसाद वरतदा रहे संगत अडोल बैठे रहे – कड़ा प्रसाद बाँटने तक संगत स्थिरता से बैठे।
- आनंद विआह बिना ग्रहस्थ नहीं करना – विवाह (आनंद कारज) के बिना वैवाहिक जीवन नहीं।
- पर स्त्री माँ, बहन, धि, कर जानी – पराई स्त्री को माँ, बहन, बेटी के समान मानना।
- स्त्री दा मुँह नहीं फटकारना – स्त्री का सम्मान करना।
- जगत जूठ, तम्बाकू, बिखिआ दा त्याग करना – झूठ, तम्बाकू और जहर से दूर रहना।
- रेहतवान गुरसिखों की संगत करनी – रेहत का पालन करने वाले सिखों के साथ संगत करना।
- कम करन विच आलस्य नहीं करना – काम करने में आलस न दिखाना।
- गुरबाणी दी कथा, कीर्तन रोज सुनना – गुरबाणी की कथा और कीर्तन रोज सुनना।
- किसी की निंदा, चुगली और ईर्ष्या नहीं करनी।
- धन, जात, और जवानी का घमंड नहीं करना।
- विचार उच्च और साफ़ रखने चाहिए।
- शुभ कर्मों से कभी पीछे नहीं हटना।
- भगवान को बुद्धि और शक्ति का दाता मानना।
- कसम खाने वालों पर भरोसा नहीं करना।
- स्वतंत्र विचारना और शासन करना।
- राजनीति का अध्ययन करना।
- दुश्मन के साथ साम, दाम, दंड, भेद का उपयोग करना।
- शस्त्र विद्या और घुड़सवारी का अभ्यास करना।
- अन्य धर्मों का सम्मान करें, पर विश्वास गुरबाणी और अकाल पुरख पर रखें।
- गुरु के उपदेशों का पालन करना।
- रहिरास साहिब का पाठ कर अरदास करनी।
- रात में सोहिला का पाठ करना।
- दस्तार (पगड़ी) हमेशा पहननी।
- सिंह का आधा नाम नहीं लेना।
- शराब का सेवन नहीं करना।
- बेटी का रिश्ता केशधारी सिख से ही करना।
- शुभ काम गुरबाणी अनुसार करना।
- चुगली से किसी का नुकसान नहीं करना।
- किसी को कटु वचन नहीं कहना।
- तीर्थ यात्रा केवल गुरुद्वारों की करनी।
- वचन देकर उसका पालन करना।
- जरूरतमंदों की सेवा करनी।
- बेटी की कमाई को भीख समझना।
- दिखावे का सिख नहीं बनना।
- केशों के साथ जीना और मरना।
- चोरी, ठगी, धोखा नहीं करना।
- गुरसिखों पर विश्वास करना।
- झूठी गवाही नहीं देनी।
- किसी को धोखा नहीं देना।
- लंगर और प्रसाद समान रूप से बाँटना।
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