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राजा नल दमयंती कथा

Nal Damyanti Katha Hindi

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|| राजा नल दमयंती कथा ||

महाभारत महाकाव्य में एक प्रसंग के अनुसार, नल और दमयन्ती की कथा महाराज युधिष्ठिर को सुनाई गई थी। युधिष्ठिर को जुए में सब कुछ हारने के बाद अपने भाइयों के साथ 12 वर्षों का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास सहना पड़ा। वनवास के दौरान, धर्मराज युधिष्ठिर के आग्रह पर महर्षि बृहदश्व ने नल-दमयन्ती की कथा सुनाई।

निषाद देश में वीरसेन के पुत्र नल नामक एक राजा थे। वे बड़े गुणवान्, परम सुन्दर, सत्यवादी, जितेन्द्रिय, सबके प्रिय, वेदज्ञ एवं ब्राह्मणभक्त थे। उनकी सेना बहुत बड़ी थी और वे स्वयं अस्त्रविद्या में निपुण थे। वे वीर, योद्धा, उदार और प्रबल पराक्रमी भी थे।

उन्हीं दिनों विदर्भ देश में भीष्मक नामक राजा राज्य करते थे। उन्होंने दमन ऋषि को प्रसन्न करके उनके वरदान से चार संतानें प्राप्त कीं: तीन पुत्र दम, दान्त, और दमन तथा एक पुत्री दमयन्ती। दमयन्ती लक्ष्मी के समान रूपवती थी।

निषध देश से जो लोग विदर्भ देश में आते थे, वे महाराज नल के गुणों की प्रशंसा करते थे। यह प्रशंसा दमयन्ती के कानों तक भी पहुँची थी। इसी प्रकार, विदर्भ देश से आने वाले लोग राजकुमारी के रूप और गुणों की चर्चा महाराज नल के समक्ष करते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि नल और दमयन्ती एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हो गए।

दमयन्ती का स्वयंवर हुआ, जिसमें न केवल धरती के राजा बल्कि देवता भी आ गए। नल भी स्वयंवर में जा रहे थे, पर देवताओं ने उन्हें रोककर कहा कि वे स्वयंवर में न जाएं क्योंकि उन्हें पहले से पता था कि दमयन्ती नल को ही चुनेगी।

सभी देवताओं ने नल का रूप धर लिया। स्वयंवर में कई नल खड़े थे, जिससे सभी परेशान थे कि असली नल कौन है। लेकिन दमयन्ती ने आंखों से ही असली नल को पहचान लिया। सभी देवताओं ने उनका अभिवादन किया। इस प्रकार, दमयन्ती ने नल को पहचानकर अपना जीवनसाथी चुन लिया।

नवदंपत्ति को देवताओं का आशीर्वाद मिला। दमयन्ती निषध नरेश राजा नल की महारानी बनीं और दोनों सुखपूर्वक समय बिताने लगे। दमयन्ती पतिव्रताओं में शिरोमणि थीं और अभिमान से परे थीं। समयानुसार दमयन्ती के गर्भ से एक पुत्र और एक कन्या का जन्म हुआ। दोनों बच्चे माता-पिता के समान सुंदर रूप और गुणों से संपन्न थे।

लेकिन समय सदा एक सा नहीं रहता। दुख-सुख का चक्र निरंतर चलता ही रहता है। महाराज नल गुणवान्, धर्मात्मा और पुण्यस्लोक थे, किन्तु उनमें एक दोष था – जुए का व्यसन। नल के भाई पुष्कर ने उन्हें जुए के लिए आमंत्रित किया।

खेल आरंभ हुआ और भाग्य प्रतिकूल होने के कारण नल हारने लगे। सोना, चांदी, रथ, राजपाट सब हाथ से निकल गया। महारानी दमयन्ती ने प्रतिकूल समय जानकर अपने दोनों बच्चों को विदर्भ देश की राजधानी कुण्डिनपुर भेज दिया।

इधर नल जुए में सब कुछ हार गए। उन्होंने अपने शरीर के सारे वस्त्राभूषण उतार दिए और केवल एक वस्त्र पहनकर नगर से बाहर निकले। दमयन्ती भी मात्र एक साड़ी में पति का अनुसरण कर रही थीं।

एक दिन राजा नल ने सोने के पंख वाले कुछ पक्षी देखे। उन्होंने सोचा कि यदि इन्हें पकड़ लिया जाए तो इन्हें बेचकर निर्वाह के लिए कुछ धन कमाया जा सकता है। यह सोचकर उन्होंने अपना वस्त्र पक्षियों पर फेंका, लेकिन पक्षी वह वस्त्र लेकर उड़ गए।

अब राजा नल के पास तन ढकने के लिए भी कोई वस्त्र नहीं था। नल अपनी अपेक्षा दमयन्ती के दुःख से अधिक व्याकुल थे। एक दिन जंगल में दोनों एक वृक्ष के नीचे एक ही वस्त्र से तन छिपाए पड़े थे।

दमयन्ती को थकावट के कारण नींद आ गई। राजा नल ने सोचा कि दमयन्ती को मेरे कारण बड़ा दुःख सहन करना पड़ रहा है। यदि मैं इसे इसी अवस्था में यहीं छोड़कर चल दूँ तो यह किसी तरह अपने पिता के पास पहुँच जाएगी।

यह विचारकर उन्होंने तलवार से उसकी आधी साड़ी काट ली और उसी से अपना तन ढककर दमयन्ती को उसी अवस्था में छोड़कर चल दिए।

जब दमयन्ती की नींद टूटी तो वह अपने को अकेला पाकर करुण विलाप करने लगी। भूख और प्यास से व्याकुल होकर वह अचानक अजगर के पास चली गई और अजगर उसे निगलने लगा। दमयन्ती की चीख सुनकर एक व्याध ने उसे अजगर का ग्रास होने से बचाया। किंतु व्याध स्वभाव से दुष्ट था। उसने दमयन्ती के सौंदर्य पर मोहित होकर उसे अपनी काम-पिपासा का शिकार बनाना चाहा।

दमयन्ती ने उसे शाप देते हुए कहा कि यदि मैंने अपने पति राजा नल को छोड़कर किसी अन्य पुरुष का चिन्तन किया हो तो इस पापी व्याध के जीवन का अभी अंत हो जाए।

दमयन्ती की बात पूरी होते ही व्याध के प्राण-पखेरू उड़ गए। दैवयोग से भटकते हुए दमयन्ती एक दिन चेदिनरेश सुबाहु के पास और उसके बाद अपने पिता के पास पहुँच गई। अंततः दमयन्ती के सतीत्व के प्रभाव से एक दिन महाराज नल के दुखों का भी अंत हुआ। दोनों का पुनर्मिलन हुआ और राजा नल को उनका राज्य भी वापस मिल गया।

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