॥ श्री अन्नपूर्णा स्तोत्र पाठ विधि ॥
- मां अन्नपूर्णा की तस्वीर या मूर्ति रखकर उसके सामने धूप-दीप दिखाकर अन्न अर्पित करें।
- अन्न में चावल, धान, गेहूं का उपयोग कर सकते हैं। इसके बाद स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
- अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को धन धान्य की कमी नहीं होती है।
- हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार जिस घर में अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ होता है, उस घर में कभी अन्न धन की कमी नहीं होती है।
॥ श्री अन्नपूर्णा स्तोत्र एवं अर्थ ॥
अथ श्री अन्नपूर्णास्तोत्रम्
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी,
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी,
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥
अर्थ: हे माता अन्नपूर्णा ! आप सदैव सबका आनन्द बढ़ाया करती हो, आपने अपने हाथ में वर तथा अभय मुद्रा धारण की हैं, आप ही सौंदर्य रूप रत्नों की खान हो, आप ही भक्तजनों के समस्त पाप विनाश करके उनको पवित्र करती हो, आप साक्षात् माहेश्वरी हो और आपने ही हिमालय का वंश पवित्र किया है, आप काशीपुर की अधीश्वरी देवी हो, आप अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
नानारत्न विचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी,
मुक्ताहार विलम्ब मान विलसत् वक्षोजकुम्भान्तरी।
काश्मीराऽगरुवासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी,
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥
अर्थ: हे देवि ! आप अनेक प्रकार के विचित्र रत्नों से जड़े हुए आभूषण धारण करती हो, आप ही ने स्वर्ण-रचित वस्त्र पहन कर मुक्ता माय हार द्वारा दोनों स्तन सुशोभित किए हैं, सारे शरीर पर कुंकुम और अगर का लेपन करके अपनी शोभा बढ़ाई है, आप काशीपुर की अधीश्वरी देवी हो, आप ही अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, हे भगवती अन्नपूर्णा आप कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी,
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी,
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥
अर्थ: हे देवि ! आप योगीजनों को आनंद प्रदान करती हो, आप ही भक्तजनों के शत्रुओं का विनाश करती हो, आप ही धर्मार्थ साधन में प्रीति बढ़ाती हो, आपने ही चन्द्र, सूर्य और अग्नि की आभा धारण कर रखी है, आप ही त्रिलोक अर्थात तीनों भुवनों की रक्षा करती हो, आपके भक्तगण जो इच्छा करते हैं, आप उनको वही सब ऐश्वर्य प्रदान करती हो, हे माता भगवती अन्नपूर्णा ! आप काशीपुर की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी,
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी,
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥
अर्थ: हे अन्नपूर्णे ! आप ही ने कैलाश पर्वत की कंदरा में अपना निवास स्थापित किया है। हे माता ! आप ही गौरी, आप ही उमा और आप ही शंकरी हो, आप ही कौमारी हो, वेद के गूढ़ अर्थ को बताने वाली हो, आप ही बीज मंत्र ओंकार की देवी हो और आप मोक्ष के दरवाजे खोलती हो, आप काशीपुर की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो, हे जननी भगवती अन्नपूर्णा ! कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
दृश्यादृश्य विभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी,
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी।
श्रीविश्वेशमनः प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी,
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥
अर्थ: हे देवि! आप ही स्थूल और सूक्ष्म-समस्त जीवों को पवित्रता प्रदान करती हो, यह ब्रह्माण्ड आपके ही उदर में स्थित है, आपकी लीला में सम्पूर्ण जीव अपना-अपना कार्य करते हैं, आप ही ज्ञानरूप प्रदीप का स्वरूप हो, आप श्री विश्वनाथ का संतोष वर्धन करती हो। हे माता अन्नपूर्णेश्वरी ! आप काशीपुर की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
उर्वी सर्वजनेश्वरी भगवती माताऽन्नपूर्णेश्वरी,
वेणीनीलसमानकुन्तलधरी नित्यान्नदानेश्वरी।
सर्वानन्दकरी सदाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी,
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥
अर्थ: हे अन्नपूर्णे! आप पृथ्वी मंडल पर उपस्थित जनसमूह की ईश्वरी हो, आप षडेश्वर्यशालिनी हो, आप ही जगत् की माता हो, आप सबको अन्न प्रदान करती हो। आपके नीलवर्ण केश वेणी रूप से शोभा पाते हैं, आप ही प्राणीगण को नित्य अन्न प्रदान करती हो और आप ही लोकों को अवस्था की उन्नति प्रदान करती हो। हे माता ! आप ही काशीपुर की अधीश्वरी देवी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी,
काश्मीरा त्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी,
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥
अर्थ: हे देवी अन्नपूर्णा! लोग तंत्र विद्या में दीक्षित होकर जो कुछ शिक्षा करते हैं, वह आप ही ने वर्णन करके उपदेश प्रदान किया है। आप ही ने सदाशिव के तीनों भाव (सत्, रज, तम) का विधान किया है, आप ही काश्मीर वासिनी शारदा, अम्बा, भगवती हो, आप ही स्वर्ग, मर्त्य और पाताल इन तीनों लोकों में ईश्वर रूप से विद्यमान रहती हो।
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी,
वामे स्वादुपयोधरा प्रियकरी सौभाग्य माहेश्वरी।
भक्ताभीष्टकरी सदाशुभकरी काशीपुराधीश्वरी,
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥
अर्थ: हे देवी! आप सर्व प्रकार के विचित्र रत्नों से विभूषित हुई हो, आप ही दक्षराज के गृह में पुत्री रूप से प्रकट हुई थीं, आप ही केवल जगत की सुन्दरी हो, आप ही अपने सुस्वादु पयोधर प्रदान करके जगत का प्रिय कार्य करती हो, आप सबको सौभाग्य प्रदान करके माहेश्वरी रूप में विदित हुई हो, आप ही भक्तगणों को वांछित फल प्रदान करती हो और उनकी बुरी अवस्था को शुभ रूप में बदल देती हो। हे माता! केवल आप ही काशीपुर की अधीश्वरी देवी हो, आप अन्नपूर्णेश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी,
चन्द्रार्काग्निसमानकुण्डलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी।
मालापुस्तकपाशसाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी,
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥
अर्थ: हे देवी! आप कोटि-कोटि चन्द्र, सूर्य और अग्नि के समान उज्ज्वल प्रभाशालिनी हो, आप चन्द्र किरणों के तथा बिम्ब फल के समान अधरों से युक्त हो, आप ही चन्द्र, सूर्य और अग्नि के समान उज्ज्वल कुण्डलधारिणी हो, आपने ही चन्द्र, सूर्य के समान वर्ण धारण किया है, हे माता! आप ही चतुर्भुजा हो, आपने चारों हाथों में माला, पुस्तक, पाश और अंकुश धारण किया है। हे अन्नपूर्णे! आप काशीपुर की अधीश्वरी देवी और जगत की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी,
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी,
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥
अर्थ: हे माता अन्नपूर्णा! आप क्षत्रिय कुल की रक्षा करती हो, आप सबको अभय प्रदान करती हो, प्राणियों की माता हो आप कृपा का सागर हो, आप ही भक्तजनों को मोक्ष प्रदान करती हो, और सर्वदा सभी का कल्याण करती हो। हे माता! आप ही विश्वेश्वरी हो, आप ही संपूर्ण श्री को धारण करती हो, आप ही ने दक्ष का नाश किया है और आप ही भक्तों का रोग नाश करती हो। हे अन्नपूर्णे! आप ही काशीपुर की अधीश्वरी और जगत् की माता हो, कृपा करके मुझको भिक्षा प्रदान करो।
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति॥
अर्थ: हे अन्नपूर्णे! आप सर्वदा पूर्ण रूप से हो, आप ही महादेव की प्राणों के समान प्रिय पत्नी हो। हे पार्वती! आप ही ज्ञान और वैराग्य की सिद्धि के निमित्त भिक्षा प्रदान करो, जिसके द्वारा मैं संसार से प्रीति त्याग कर मुक्ति प्राप्त कर सकूं, मुझको यही भिक्षा प्रदान करो।
माता मे पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्॥
अर्थ: हे जननी! पार्वती देवी मेरी माता, देवाधिदेव महेश्वर मेरे पिता शिवभक्त गण मेरे बांधव और तीनों भुवन मेरा स्वदेश है। इस प्रकार का ज्ञान सदा मेरे मन में विद्यमान रहे, यही प्रार्थना है।
॥ इति श्रीशङ्करभगवतः कृतौ अन्नपूर्णास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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