हिंदू धर्म में चंद्र दर्शन का विशेष महत्व है। अमावस्या के बाद जब पहली बार चंद्रमा के दर्शन होते हैं, उसे ‘चंद्र दर्शन’ कहा जाता है। इस दिन चंद्र देव की पूजा और व्रत करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। खासकर जो लोग अपनी कुंडली में चंद्रमा की कमजोर स्थिति से परेशान हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
|| चंद्र दर्शन का महत्व ||
- चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। चंद्र दर्शन के दिन चंद्र देव की पूजा करने से मानसिक शांति मिलती है और मन स्थिर रहता है।
- इस दिन व्रत करने और चंद्र देव की उपासना से जीवन से नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- मान्यता है कि चंद्र दर्शन करने और व्रत रखने से घर में सुख-शांति, समृद्धि और सौभाग्य का वास होता है।
- जिनकी कुंडली में चंद्रमा अशुभ स्थिति में होता है, उन्हें चंद्र दर्शन के दिन व्रत और पूजा करने से ग्रह दोष शांत होते हैं।
|| चंद्र दर्शन व्रत कथा PDF ||
चंद्र दर्शन व्रत से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा भगवान गणेश और चंद्रमा से संबंधित है।
भगवान गणेश और चंद्रमा की कथा
एक बार की बात है, भगवान गणेश मूषक पर सवार होकर कहीं जा रहे थे। मूषक अपनी अजीब चाल में चल रहा था, जिससे भगवान गणेश गिर पड़े। उन्हें गिरते देख, चंद्रदेव को हंसी आ गई। चंद्रदेव की हंसी से भगवान गणेश क्रोधित हो गए और उन्होंने इसे अपना अपमान समझा।
क्रोध में आकर गणेश जी ने चंद्रदेव को श्राप दे दिया कि “आज से तुम्हें कोई देखना पसंद नहीं करेगा। जो भी तुम्हें देखेगा, वह कलंकित हो जाएगा और उस पर झूठा चोरी का आरोप लगेगा।”
गणेश जी के श्राप के कारण चंद्रमा मानसरोवर की कुमुदिनियों में जा छिपा। चंद्रमा के बिना प्राणियों को बड़ा कष्ट हुआ। तब ब्रह्मा जी की आज्ञा से सभी देवताओं ने गणेश जी के व्रत से प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगा। गणेश जी ने कहा कि चंद्रमा शाप से मुक्त तो हो जाएगा, लेकिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) को जो भी चंद्रमा के दर्शन करेगा, उसे चोरी आदि का झूठा लांछन जरूर लगेगा।
स्यमन्तक मणि की कथा से जुड़ाव
इस कथा का संबंध स्यमन्तक मणि की कहानी से भी है, जिसमें भगवान कृष्ण पर झूठा आरोप लगा था। भगवान कृष्ण पर स्यमन्तक मणि चोरी करने का आरोप लगा था, जिससे वे बहुत चिंतित थे। तब नारद मुनि ने उन्हें बताया कि उन्होंने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखा था, जिसके कारण उन्हें यह मिथ्या दोष लगा है। नारद जी ने भगवान कृष्ण को इस दोष से मुक्ति पाने के लिए सिद्धिविनायक व्रत करने की सलाह दी, जिसे करने से भगवान कृष्ण कलंक मुक्त हुए।
मिथ्या दोष से बचने का उपाय
कथा के अनुसार, अगर अनजाने में कोई मनुष्य गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र देव के दर्शन कर लेता है, तो इस दोष से बचने के लिए उसे ‘सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥’ इस मंत्र का जाप करना चाहिए। यह भी कहा जाता है कि अनजाने में चंद्र दर्शन होने पर एक छोटा सा कंकड़ या पत्थर का टुकड़ा किसी के घर की छत पर फेंक दें, ऐसा करने से दोष समाप्त हो जाता है।
|| चंद्र दर्शन व्रत विधि ||
- चंद्र दर्शन के दिन सुबह उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। चंद्र देव का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- पूजा स्थान को साफ करें और संध्या वंदन के समय चंद्रमा के उदय होने का इंतजार करें।
- चंद्रमा के उदय होने के बाद घर की छत या आंगन में जाकर धूप-दीप जलाएं।
- चंद्र देव को जल (अर्घ्य), रोली, चंदन, फूल अर्पित करें। उन्हें सफेद मिठाई, खीर या चावल का भोग लगाएं।
- पूजा करते समय चंद्र देव के मंत्र ‘ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि, तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात ।।’ या ‘ॐ सोमाय नमः’ का स्पष्ट उच्चारण पूर्वक जाप करें।
- पूरे दिन फलाहार व्रत करें और चंद्रमा के दर्शन और पूजा के बाद ही व्रत खोलें।
- इस दिन दान-पुण्य करना भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ब्राह्मणों को चावल, कपड़े और चीनी जैसी सफेद वस्तुओं का दान करना शुभ होता है।
- चंद्र दर्शन का दिन भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन चंद्रमा की पूजा से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि जीवन में सुख-समृद्धि और सकारात्मकता का भी संचार होता है।
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