Shri Krishna

दामोदर द्वादशी की कथा

Damodar Dwadashi Ki Katha Hindi

Shri KrishnaVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| दामोदर द्वादशी की कथा PDF ||

दामोदर द्वादशी की कथा भगवान श्री कृष्ण की बचपन की एक अत्यंत प्रिय और मार्मिक लीला से जुड़ी है। यह कथा श्रीमद्भागवत पुराण में विस्तार से वर्णित है।

एक समय की बात है, जब भगवान श्री कृष्ण गोकुल में बाल रूप में निवास कर रहे थे। वे अपनी नटखट लीलाओं से पूरे गोकुल को आनंदित करते रहते थे। कभी वे माखन चुराते, कभी गोपियों के घड़े फोड़ते, तो कभी अपने सखाओं के साथ मिलकर शरारतें करते। उनकी इन लीलाओं से माता यशोदा और नंद बाबा अत्यंत प्रसन्न रहते थे, लेकिन कभी-कभी उनकी शरारतें इतनी बढ़ जाती थीं कि माता यशोदा को उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता था।

एक दिन, जब यशोदा माता घर के कामकाज में व्यस्त थीं, बाल कृष्ण ने माखन चुराना शुरू कर दिया। जब माता यशोदा ने उन्हें पकड़ने का प्रयास किया, तो कृष्ण भागने लगे। बहुत प्रयास के बाद माता यशोदा ने उन्हें पकड़ लिया। उस समय यशोदा माता क्रोधित नहीं थीं, बल्कि उनके हृदय में अपने पुत्र के प्रति वात्सल्य प्रेम उमड़ रहा था। उन्होंने सोचा कि अब इस नटखट कृष्ण को सबक सिखाना आवश्यक है, ताकि यह आगे से ऐसी शरारतें न करे।

यशोदा माता ने कृष्ण को एक उखल (ओखली) से बांधने का निर्णय लिया। उन्होंने एक रस्सी ली और कृष्ण के पेट (उदर) पर बांधने लगीं। लेकिन यह क्या! रस्सी जितनी भी लंबी होती, वह कृष्ण के पेट के चारों ओर बांधने पर दो अंगुल छोटी पड़ जाती। माता यशोदा ने घर की सारी रस्सियाँ एकत्रित कर लीं, लेकिन कोई भी रस्सी पर्याप्त लंबी नहीं थी। वह हैरान थीं कि यह कैसे संभव है!

माता यशोदा की इस अथक कोशिश को देखकर और उनके निस्वार्थ प्रेम को देखकर भगवान कृष्ण को उन पर दया आ गई। भगवान, जो ब्रह्मांड के स्वामी हैं, जो किसी भी बंधन में नहीं बंधते, वे अपनी भक्त माता यशोदा के निस्वार्थ प्रेम और वात्सल्य के आगे स्वयं को समर्पित कर दिया। उन्होंने स्वयं को बंधने दिया।

जब माता यशोदा ने रस्सी से कृष्ण को बांध दिया, तो वे उस उखल को लेकर आंगन में घूमने लगे। इसी उखल से बंधे हुए कृष्ण ने नलकूबर और मणिग्रीव नामक दो वृक्षों का उद्धार किया, जो कुबेर के पुत्र थे और श्राप के कारण वृक्ष बन गए थे। कृष्ण के स्पर्श से वे दोनों अपने मूल स्वरूप में वापस आ गए और भगवान की स्तुति कर वैकुंठ को चले गए।

इस लीला के बाद ही भगवान कृष्ण को ‘दामोदर’ के नाम से जाना जाने लगा, जिसका अर्थ है ‘जिसके पेट (उदर) पर रस्सी (दाम) बंधी हो’। यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान को केवल प्रेम और भक्ति से ही प्राप्त किया जा सकता है। उनकी लीलाएं हमें यह भी बताती हैं कि भगवान अपने भक्तों के लिए कुछ भी कर सकते हैं और प्रेम की शक्ति किसी भी भौतिक शक्ति से बढ़कर है।

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